अपनों से खूब लड़ें लेकिन दूर न जाएँ

मुझे भी खूब लड़ना है, उसे भी बस सताना है
मुझे भी मान जाना है, उसे भी मान जाना है
कि अपनी दास्ताने इश्क की मजबूरियाँ यूँ हैं
मुझे भी झूठ कहना है उसे भी सच छुपाना है
बड़ी मुद्दत हुई है आँख में आँसू नहीं आये
मुझे भी खूब कहना है, उसे भी सब सुनाना है
कि अपने दरमियाँ इक बात है बेहद ज़रूरी सी
मुझे उसकी जरूरत है उसे भी दिल लगाना है
कि इन नाकामियों के दौर में तन्हा नहीं हैं ‘सिंह’
मुझे भी दर्द है दिल में, उसे भी गम पुराना है
___________________©®समीक्षा सिंह जादौन
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