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07 फ़रवरी 2021

राजस्थानी हास्य रस के प्रसिद्ध कवि श्री विश्वामित्र दाधीच द्धारा लिखित हिंदी भाषा का उपन्यास "वेदवती" का विमोचन

 

पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा द्धारा पुरुस्कृत  राजस्थानी हास्य रस के प्रसिद्ध कवि श्री विश्वामित्र दाधीच द्धारा लिखित हिंदी भाषा का उपन्यास "वेदवती" का विमोचन समारोह आज रविवार को दोपहर महर्षि दधीचि छात्रावास भवन में किया गया ।

इस अवसर पर ख्यातनाम समीक्षक और उपन्यासकार प्रबोधकुमार गोविल ने कहा कि वेदवती उपन्यास पाठकों को नवरस का आनन्द प्रदान करता है । यह कृति आधुनिक मानस में चिंतन का कुछ नया अध्याय जोड़ती है । कवि का उद्देश्य परम्पराओ से परिचित कराना है । 

कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो इंदु बंसल ने कहा कि उपन्यास स्त्री मनोभावों और त्याग की कथा कहता है । यह उपन्यास संवेगात्मक विकास हर्ष, उत्कंठा, प्रसन्नता का संचार भी करता है । वेदवती के माध्यम से स्त्रियों के समर्पण त्याग और उनकी महिमा को इस उपन्यास में जिस तरह से दर्शाया गया है,वह स्त्रियों को गौरवान्वित बनाता है । 

मुख्य वक्ता श्री विजय जोशी ने कहा कि,कहानी लिखने वाले का भाव उसकी भाषा मे निहित है,जो भाषा समाज को दिशा दे,ज्ञान का बोध कराये,वह भाषा उत्तम है । विश्वामित्र जी वेदवती को जीवंत किया है,17 अध्याय में वेदवती के माध्यम से स्त्रियों के सभी तरह के रूप को दिखाने का प्रयास किया है । मूल कथा के साथ उप कथा का होना ,किसी भी कथा को पूर्ण बनाता है। विजय जोशी ने उपन्यास वेदवती पर प्रकाश डालते हुए कहा की, यह एक आख्यान पर आख्यान परक उपन्यास है। हाडोती भाषा में यह पहला पौराणिक उपन्यास है। शैली अत्यंत सरल है तथा पात्रों का विकास क्रमशः हुआ है। विश्वामित्र दाधीच मेष उपन्यास के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण किया है।

विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध कवि अंबिकादत्त ने कहा एक रचनाकार रचना के माध्यम से अंतर्द्वंद का चित्रण करता है। उन्होंने कहा कि सामान्यतः हम जिन्हें जानते हैं उसे ही पौराणिक मानते है,हम स्वीकार करते हैं, हर एक विधा को समझने के लिए उसके आंतरिक अनुशासन की आवश्यकता होती है । साहित्य में कल्पना का महत्व बहुत अधिक होता है,कई कृतियां कल्पना के कारण ही कालजयी रचनाएं हो गई, उन्होंने कव्वे की कहानी का उदाहरण देते हुए कहा कि,क्या यह संभव है कि कोई कौवा इतना समझदार हो, लेकिन यह रचना में छिपा हुआ संदेश है जो हमें ग्रहण करना चाहिए। अच्छी रचना वह होती है, जिसमें से रचनाकार गायब हो जाता है,और कृति स्वयं बोलती है।

कवि विश्वामित्र ने आत्मा वक्तव्य में कहा कि मैंने यह उपन्यास मित्रों की प्रेरणा तथा भावी पीढ़ी को दिशा बोध की दृष्टि से लिखा है। मुझे इसकी सामग्री संकलित करने में कुछ तथ्यों और कुछ कल्पना का मिश्रण करना पड़ा है उन्होंने कहा कि मैं इस उपन्यास के माध्यम से नारी चरित्र के बलिदान की गाथा को आधुनिक संदर्भों से जोड़ना चाहता हूं । आज के युवा नहीं जानते की, इतिहास में क्या हुआ है,बच्चों को और बड़ों को वेदवती के बारें में बताना जरूरी था । आम जन में केवल महर्षि ऋषि को जाना जाता है । महर्षि ऋषि के जीवन में महिला के योगदान के बारे में पूरे भारत में कही कोई परिचय नहीं है । विश्व सुंदरी,व प्रतापी राजा की पुत्री होने के बाद भी सन्यासी के साथ रहकर पूरा जीवन बिताने वाली महिला के बारें में भारत वर्ष के लोगों का जानना जरूरी है ।


इससे पूर्व महर्षि दाधीच छात्रावास समिति के अध्यक्ष प्रदीप दाधीच ने अतिथियों का स्वागत किया और स्वागत भाषण में उनका अभिनंदन किया। इस अवसर पर संचालन करते हुए प्रसिद्ध कवि एवं व्यंग कार डॉ अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि यह कृति पौराणिक उपन्यासों मृत्युंजय तथा द्रोपदी की परंपरा में एक और कदम है। डॉक्टर चतुर्वेदी ने कहा कि हाडोती में लज्जाराम मेहता से लेकर डॉ शांति भारद्वाज और विजय जोशी तक उपन्यास लेखन की परंपरा है भाई दाधीच की रचना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की ,यह पुरातन और आधुनिकता के संगम पर खड़ी है। उन्होंने कई उदाहरण देते हुए कहा कि, उपन्यास लेखन से पूर्व कच्चा माल इकट्ठा करने के लिए बहुत श्रम करना पड़ता है । इस अवसर पर महर्षि दाधीच महिला मंडल और कार्यकारिणी की ओर से रचनाकार विश्वामित्र दाधीच का अभिनंदन भी किया गया। अंत में सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए ।


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