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25 फ़रवरी 2021

जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये क़़ुरआन तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब

जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये क़़ुरआन तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब है (41)
कि झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाजि़ल हुयी है (42)
(ऐ रसूल) तुमसे भी बस वही बातें कहीं जाती हैं जो तुमसे और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है (43)
और अगर हम इस क़ु़रआन को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाजि़ल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खू़ब क़़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि इमानदारों के लिए तो ये (कु़रआन अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कु़रआन) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है (44)
(और नहीं सुनते) और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इसमें एख़्तेलाफ किया गया और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उनमें कब का फैसला कर दिया गया होता, और ये लोग ऐसे शक में पड़े हुए हैं जिसने उन्हें बेचैन कर दिया है (45)
जिसने अच्छे अच्छे काम किये तो अपने नफे़ के लिए और जो बुरा काम करे उसका बवाल भी उसी पर है और तुम्हारा परवरदिगार तो बन्दों पर (कभी) ज़ुल्म करने वाला नहीं (46)
क़यामत के इल्म का हवाला उसी की तरफ़ है (यानि वही जानता है) और बगै़र उसके इल्म व (इरादे) के न तो फल अपने पौरों से निकलते हैं और न किसी औरत को हमल रखता है और न वह बच्चा जनती है और जिस दिन (ख़़ुदा) उन (मुशरेकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहाँ हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चूके हैं कि हम में से कोई (उनसे) वाकिफ़ ही नहीं (47)
और इससे पहले जिन माबूदों की परसतिश करते थे वह ग़ायब हो गये और ये लोग समझ जाएगें कि उनके लिए अब मुख़लिसी नहीं (48)
इन्सान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ़ पहुँच जाए तो (फौरन) न उम्मीद और बेआस हो जाता है (49)
और अगर उसको कोई तकलीफ़ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख़्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें (50)
(वह अलग) और जब हम इन्सान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ़ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चैड़ी दुआएँ करने लगता है (51)
(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़़ुरआन) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफ़त में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है (52)
हम अनक़रीब ही अपनी (क़ु़दरत) की निशानियाँ अतराफ़ (आलम) में और ख़़ुद उनमें भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है (53)
देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रूबरू हाजि़र होने से शक में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है (54)

सूरए हा मीम अस सजदह ख़त्म

 

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