देश के सुप्रीमकोर्ट फैसलों में मुद्दों पर असहमति का दौर शुरू हो गया है
,,सुप्रीमकोर्ट की बेंच में मुद्दों पर असहमति कोई नई बात नहीं है ,लेकिन
वर्तमान हालातो में ,फैसलों में असहमति किसने की यह महत्वपूर्ण हो गया ,है
,,शबरीमाला मंदिर प्रवेश मामले में असहमति जताने वाली महिला जज ,महिलाओं की
भावनाये ,,मज़हब की गरिमा को समझने वाली बनकर अपनी टिप्पणी करती है ,तो
मस्जिद में नमाज़ के मुद्दे पर एक मुस्लिम जज जो इस्लाम धर्म के प्रमुख
जानकार भी है वोह अपनी पृथक टिप्प्पणी पर तार्किक तरीके से ऐसे
मुद्दों को फुलकोर्ट में रेफर करने की सिफारिश करते है ,,,मालेगांव
गिरफ्तारी पर भी एक जज ऐसी गिरफ्तारियों पर अपनी अलग राय देते है ,,इसके
पूर्व ट्रिपल तलाक़ के मामले में भी सर्वसम्मत फैसला नहीं था ,,,,फैसलों में
भी अब अधिकतम तोर पर लोकतंत्र स्थापित हो गया है ,बहुमत से फैसले होने लगे
,, अच्छे संकेत है ,लेकिन विशेषग्यता टिप्पणियों ,,संबंधित मामलात के
जानकार मामलों के जज के सुझावों को बहुमत के नाम पर अलग थलग कर जो फैसले हो
रहे है ,उससे वोह जज जो अपना विनम्र मत रखते है अकेलापन तो महसूस करते
होंगे ,,देश में महत्वपूर्ण बात यह है के असहमति जताने वाले जज भी ,,बहुमत
के आगे हार जाने के बाद ,,इस फैसले को मुस्कुराकर स्वीकार करते ,है ,यही है
लोकतंत्र की सही ज़िंदगी ,अपनी बात ,अपना हक़ ,विनम्रता ,विधिक जानकारियों
के साथ रखो ,बहुमत के आगे हार जाओ ,तो मुस्कुरा कर बहुमत को स्वीकार करो
,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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