कुछ माह पहले सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ न्यायधीशों ने एक मत होकर ,सुप्रीमकोर्ट के बाहर आकर ,,पत्रकारों के ज़रिये देश को ,सुप्रीमकोर्ट के हालात बताते हुए ,,देश में लोकतंत्र ,न्याय ,बचाने की गुहार लगाई थी ,यह कोई छोटी घटना नहीं थी ,,विश्व के सबसे बढे लोकतांत्रिक इस देश की ही नहीं ,,बल्कि पुरे विश्व के लिए यह चौंका देने वाली घटना थी ,एक जज को ,सुप्रीमकोर्ट जज बनने से रोकने के लिए बार बार सरकार ने सिर्फ इसलिए इंकार किया क्योंकि इन जज साहिब ने केंद्र सरकार के राष्ट्रपति शासन के गलत आदेश को उलटने की हिम्मत दिखाई थी ,पुराना इतिहास रहा है ,,तत्काल प्रभाव से सेवानिवृत्ति के बाद कुछ जज ,,सिर्फ पूर्व जज रह जाते है ,और कुछ जज महत्वपूर्ण पदों पर ,आयोगों ,में ,,जांच आयोगों में फिर आ जाते है ,यह नियुक्तियां सिर्फ सरकार अपनी इच्छा से देने के अधिकार रखती है ,अब तो पहली बार सेवानिवृत जज विश्वहिंदू परिषद के अध्यक्ष बनकर आये है ,खेर यह सब बातें नई तो है ,लेकिन हालातों में अभी और क्या होगा देखने की बात ,है ,,देश के चार जजों की बगावत ,उनका तरीक़ा हमे अच्छा नहीं लगा था ,,हमने उन्हें कंडेम किया था ,लेकिन अब जब हम देश के हालात अख़बारों के ज़रिये रोज़ देख रहे तो उन जजों की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो ,,गुहार थी ,जो बेबसी ,जो लाचारी थी साफ़ नज़र आ रही है नंगे पन ,,बेहयाई की स्वतंत्र्ता की में बात नहीं कर रहा ,समझ तो सब गए ,होंगे ,,,इसके पूर्व सेवानिवृत्ति से पहले एक सुप्रीमकोर्ट के जज सरकार के टकराव को लेकर खूब रोये थे ,उन्होंने सरकार के खिलाफ न्यायिक आज़ादी को बचाने के लिए वैधानिक संघर्ष भी किया था ,वोह जीते भी ,,खेर अब फिर यह जज साहिब जा रहे है ,कब किस पद पर बैठेंगे ,बैठेंगे भी या नहीं पता नहीं ,लेकिन एक सच तो मानना पढ़ेगा जो आवाज़ें उठने लगी है ,उससे तो लगता ,है ,,जैसे सरकारों को नई सरकार की प्र्रक्रिया शुरू होने के बाद ,,सभी कामों से रोक दिया जाता है ,,जैसे सेवानिवृत्ति के पहले अधिकारीयों के प्रमुख फैसलों पर नज़र रहती है ,वैसे ही न्यायिक सिस्टम में भी जब सेवानिवृत्ति नज़दीक हो ,कॉलिजेनियम नए जज का नाम सुझा दे तो महत्वपूर्ण पोलिसिमेटर से संबंधित फैसले आखरी लम्हे में सुनाने पर तो रोक लगना ही चाहिए ,,इतना ही नहीं ,सेवानिवृत्ति के बाद दो साल तक कोई भी जज ,किसी भी आयोग वगेरा में या लाभ के पद पर नियुक्त नहीं होगा ,यह पाबंदी भी होना ही चाहिए ,,वर्तमान हालातों में जस्टिस लोया की मोत जब संदिग्ध होने का आधार आज भी नहीं मिल सका ,है ,,जब क़ानून में लेजिस्लेचर द्वारा पारित सिस्टम को ख़ारिज करने का हक़ सुप्रीमकोर्ट ने ले लिया है ,मज़हबों की आस्थाये अब फैसल होने लगी है ,,तो फिर देश में उन चार जजों की बेबसी ,लाचारी ,,फिर उनके खिलाफ कोई कार्यवाही हुए बगैर ,,उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों में बदलाव किये बगैर ,,जो कुछ हुआ वोह केसा है ,,हम सब देख रहे है ,अब वही आवाज़ बुलंद करने वाले इस सिस्टम के सर्वोच्च होने जा रहे ,है उन्हें बधाई ,,जाने वाले को भी बधाई ,,,,,बस देश को समीक्षा की ज़रूरत है ,,,, क्योंकि सुप्रीमकोर्ट देश के हर नागरिक की गार्जियन है ,हर सिस्टम की गार्जियन है ,,वोह सिस्टम आम आदमी तक पहुंचे इसके लिए राज्य स्तर पर भी सुप्रीमकोर्ट की सर्किट बेंच ,और संभाग स्तर पर हायकोर्ट की सर्किट बेंच के प्रावधान भी होना चाहिए ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 सितंबर 2018
हालातों में अभी और क्या होगा देखने की बात ,है
कुछ माह पहले सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ न्यायधीशों ने एक मत होकर ,सुप्रीमकोर्ट के बाहर आकर ,,पत्रकारों के ज़रिये देश को ,सुप्रीमकोर्ट के हालात बताते हुए ,,देश में लोकतंत्र ,न्याय ,बचाने की गुहार लगाई थी ,यह कोई छोटी घटना नहीं थी ,,विश्व के सबसे बढे लोकतांत्रिक इस देश की ही नहीं ,,बल्कि पुरे विश्व के लिए यह चौंका देने वाली घटना थी ,एक जज को ,सुप्रीमकोर्ट जज बनने से रोकने के लिए बार बार सरकार ने सिर्फ इसलिए इंकार किया क्योंकि इन जज साहिब ने केंद्र सरकार के राष्ट्रपति शासन के गलत आदेश को उलटने की हिम्मत दिखाई थी ,पुराना इतिहास रहा है ,,तत्काल प्रभाव से सेवानिवृत्ति के बाद कुछ जज ,,सिर्फ पूर्व जज रह जाते है ,और कुछ जज महत्वपूर्ण पदों पर ,आयोगों ,में ,,जांच आयोगों में फिर आ जाते है ,यह नियुक्तियां सिर्फ सरकार अपनी इच्छा से देने के अधिकार रखती है ,अब तो पहली बार सेवानिवृत जज विश्वहिंदू परिषद के अध्यक्ष बनकर आये है ,खेर यह सब बातें नई तो है ,लेकिन हालातों में अभी और क्या होगा देखने की बात ,है ,,देश के चार जजों की बगावत ,उनका तरीक़ा हमे अच्छा नहीं लगा था ,,हमने उन्हें कंडेम किया था ,लेकिन अब जब हम देश के हालात अख़बारों के ज़रिये रोज़ देख रहे तो उन जजों की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो ,,गुहार थी ,जो बेबसी ,जो लाचारी थी साफ़ नज़र आ रही है नंगे पन ,,बेहयाई की स्वतंत्र्ता की में बात नहीं कर रहा ,समझ तो सब गए ,होंगे ,,,इसके पूर्व सेवानिवृत्ति से पहले एक सुप्रीमकोर्ट के जज सरकार के टकराव को लेकर खूब रोये थे ,उन्होंने सरकार के खिलाफ न्यायिक आज़ादी को बचाने के लिए वैधानिक संघर्ष भी किया था ,वोह जीते भी ,,खेर अब फिर यह जज साहिब जा रहे है ,कब किस पद पर बैठेंगे ,बैठेंगे भी या नहीं पता नहीं ,लेकिन एक सच तो मानना पढ़ेगा जो आवाज़ें उठने लगी है ,उससे तो लगता ,है ,,जैसे सरकारों को नई सरकार की प्र्रक्रिया शुरू होने के बाद ,,सभी कामों से रोक दिया जाता है ,,जैसे सेवानिवृत्ति के पहले अधिकारीयों के प्रमुख फैसलों पर नज़र रहती है ,वैसे ही न्यायिक सिस्टम में भी जब सेवानिवृत्ति नज़दीक हो ,कॉलिजेनियम नए जज का नाम सुझा दे तो महत्वपूर्ण पोलिसिमेटर से संबंधित फैसले आखरी लम्हे में सुनाने पर तो रोक लगना ही चाहिए ,,इतना ही नहीं ,सेवानिवृत्ति के बाद दो साल तक कोई भी जज ,किसी भी आयोग वगेरा में या लाभ के पद पर नियुक्त नहीं होगा ,यह पाबंदी भी होना ही चाहिए ,,वर्तमान हालातों में जस्टिस लोया की मोत जब संदिग्ध होने का आधार आज भी नहीं मिल सका ,है ,,जब क़ानून में लेजिस्लेचर द्वारा पारित सिस्टम को ख़ारिज करने का हक़ सुप्रीमकोर्ट ने ले लिया है ,मज़हबों की आस्थाये अब फैसल होने लगी है ,,तो फिर देश में उन चार जजों की बेबसी ,लाचारी ,,फिर उनके खिलाफ कोई कार्यवाही हुए बगैर ,,उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों में बदलाव किये बगैर ,,जो कुछ हुआ वोह केसा है ,,हम सब देख रहे है ,अब वही आवाज़ बुलंद करने वाले इस सिस्टम के सर्वोच्च होने जा रहे ,है उन्हें बधाई ,,जाने वाले को भी बधाई ,,,,,बस देश को समीक्षा की ज़रूरत है ,,,, क्योंकि सुप्रीमकोर्ट देश के हर नागरिक की गार्जियन है ,हर सिस्टम की गार्जियन है ,,वोह सिस्टम आम आदमी तक पहुंचे इसके लिए राज्य स्तर पर भी सुप्रीमकोर्ट की सर्किट बेंच ,और संभाग स्तर पर हायकोर्ट की सर्किट बेंच के प्रावधान भी होना चाहिए ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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