हमारे कोटा ज़िले के विभिन्न प्रशासनिक अधिकारी के प्रमुख पदों पर
सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी अम्बिकादत्त शर्मा ने कोटा में व्याप्त
चिकित्सा अव्यवस्था का खाका खेंचा है ,,जब एक ज़िम्मेदार ,,सेवानिवृत
प्रशासनिक अधिकारी जिसकी हर जगह पहचान ,,रसूख है ,,जो कुशल प्रशासनिक
अधिकारी के अलावा कोटा के प्रमुख प्रशासक रहे है ,,उनके अस्पताल के प्रबंधन
के बारे में ऐसे अनुभव है तो फिर कोटा कलेक्टर रोहित गुप्ता ,,कोटा के
,,विधायक ,कोटा के सांसद ,,और कोटा के मेडिकल प्रशासन सहित प्रभारी जिला
सचिव अधिकारी के लिए तो बेहद नहीं बेहद से
भी बहुत बेहद शर्मनाक बात है ,,कुशल प्रशासनिक रहे ,अम्बिकादत्त
चतुर्वेदी ने ,अपने साहित्यक अंदाज़ ,,,में अस्पताल अव्यवस्था का दर्द उकेरा
है ,उनके ही अल्फ़ाज़ों में ज़रा पढ़िए ,,,,,,,,,,,,,पढ़िए ज़रूर ,,,,,,,Ambika
Dutt Chaturvedi
5 hrs ·
5 hrs ·
परसों मेरे छोटे भाई दिनेश की सासू मां की तबियत खराब होने पर उन्हें कोटा लेकर आए
वे उनियारा के पास अलीगढ़(रामपुरा) रहती हैं
बूढ़ी हैं
कोटा संभाग मुख्यालय है
यहां बड़ा सरकारी अस्पताल है वहां लेकर गए
महाराव भीमसिंह चिकित्सालय के दरवाजे पर ट्रोली खींचने वाले गुटखा गाल में दबाए लड़के के व्यवहार से लेकर महिला जनरल वार्ड तक बेरुखी और उदासीनता के व्यवहार तथा वहां के हालात की तफसील अपने रोजनामचे में दर्ज की है
कैसी बदख्वारी है
कैसी त्राहि त्राहि मची है
कहा नहीं जा सकता
करुणा और वितृष्णा से मन भर भर जाता है
सार रुप में कह सकते हैं-
अगर नर्क देखना हो तो सरकारी शिफ़ाखाने में जाना चाहिए
रौरव नर्क देखना हो तो सरकारी शिफ़ाखाने के जनरल वार्ड में जाना चाहिए
और अगर नर्क का भी नर्क कुम्भीपाक नर्क देखना हो तो सरकारी शिफ़ाखाने के जनरल वार्ड के शौचालय में जाना चाहिए
विश्वगुरु कहलाने की अहमन्यता के पाखंड से भरे हम महान नागरिकों को ,
हमारी जन कल्याणकारी सरकारों के सामंती स्वभाव वाले जन सेवकों को
कदाचित समय मिले तो वहां एक बार अवश्य जाना चाहिए
आप अगर कुछ न कर सकें तो कम से कम इस बात पर अफसोस तो कर ही सकते हैं कि
हमारी सरकारों की प्राथमिकता में
गरीब, असहाय ,बीमार पीड़ित जनता की तकलीफों के मुकाबले
भ्रष्ट लोक सेवकों को बचाने का बिल ज्यादा ऊपर है
वे उनियारा के पास अलीगढ़(रामपुरा) रहती हैं
बूढ़ी हैं
कोटा संभाग मुख्यालय है
यहां बड़ा सरकारी अस्पताल है वहां लेकर गए
महाराव भीमसिंह चिकित्सालय के दरवाजे पर ट्रोली खींचने वाले गुटखा गाल में दबाए लड़के के व्यवहार से लेकर महिला जनरल वार्ड तक बेरुखी और उदासीनता के व्यवहार तथा वहां के हालात की तफसील अपने रोजनामचे में दर्ज की है
कैसी बदख्वारी है
कैसी त्राहि त्राहि मची है
कहा नहीं जा सकता
करुणा और वितृष्णा से मन भर भर जाता है
सार रुप में कह सकते हैं-
अगर नर्क देखना हो तो सरकारी शिफ़ाखाने में जाना चाहिए
रौरव नर्क देखना हो तो सरकारी शिफ़ाखाने के जनरल वार्ड में जाना चाहिए
और अगर नर्क का भी नर्क कुम्भीपाक नर्क देखना हो तो सरकारी शिफ़ाखाने के जनरल वार्ड के शौचालय में जाना चाहिए
विश्वगुरु कहलाने की अहमन्यता के पाखंड से भरे हम महान नागरिकों को ,
हमारी जन कल्याणकारी सरकारों के सामंती स्वभाव वाले जन सेवकों को
कदाचित समय मिले तो वहां एक बार अवश्य जाना चाहिए
आप अगर कुछ न कर सकें तो कम से कम इस बात पर अफसोस तो कर ही सकते हैं कि
हमारी सरकारों की प्राथमिकता में
गरीब, असहाय ,बीमार पीड़ित जनता की तकलीफों के मुकाबले
भ्रष्ट लोक सेवकों को बचाने का बिल ज्यादा ऊपर है
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