आठ अप्रेल बंजारा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है ,,इस अवसर पर बंजारा
फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश बंजारा ने कोटा जगपुरा स्थित बंजारा
मंदिर में माथा टेक कर सभी बंजारों से एक जुट होकर इस दिवस को ,,संघर्ष
दिवस ,,के रूप में बनाने का आह्वान किया ,,कैलाश बंजारा ने समाज के लोगों
से आह्वान किया के वोह शिक्षा से जुड़कर खुद को समाज में स्थापित करे
,,उन्होंने कहा के भाजपा शासन में बंजारा समाज सुरक्षित नहीं है और
राजस्थान में अब तक एक साल में एक दर्जन से भी अधिक योजनाबद्ध प्राणघातक
हमले बंजारों की बस्तियों पर हुए है ,,कैलाश बंजारा ने कहा के बंजारा दिवस
हमारे आत्मचिंतन का दिवस है इस दिन हमे सोचना होगा ,,चिंतन करना होगा के
हमने अपने समाज को न्याय दिलवाने ,,बराबरी का दर्जा दिलवाने ,,शोषण से
मुक्ति दिलवाने उनके उत्थान के लिए वर्ष भर में क्या कार्य किये ,,कैलाश
बंजारा ने कहा के अगर विश्व दिवस पर हम अपना रिपोर्ट कार्ड तय्यार करने लगे
तो निश्चित तोर पर हर साल हम अपनी कमियां दूर कर खुद को स्थापित कर सकेंगे
,,,,, दोस्तों 8 अप्रिल 1981के दिन रोमा जिप्सी व विश्व बंजारावो की बैठक
जर्मनी में हुयी थी जिसमे भारत से स्व. रामसिंग भानावत व स्व. रणजीत नाईक
जी ने भाग लिया था। उस दिन को समाज की एकता के लिए “विश्व गोर बंजारा दिवस”
के रूप में मनाने का निर्णय कई वर्ष पहले समाज के बुद्दीजीवियोने लिया था
इसलिये इस दिन को विश्व गोर बंजारा समाज का एकता दिवस के रूप में मनावो और
गोर बंजारा समाज को एक करने का प्रयास करो और गोर बंजारा समाज की शान बढावो
। दोस्तों “गोर बंजारा संघर्ष समिति भारत” परिवार की और से पुरे विश्व के
गोर बंजारा समाज व देश वासीयो को विश्व गोर बंजारा दिवस की हार्दिक शुभ
कामनाए।,,,,बंजारा या 'खानाबदोश' (Nomadic people) मानवों का ऐसा समुदाय है
जो एक ही स्थान पर बसकर जीवन-यापन करने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान
पर निरन्तर भ्रमणशील रहता है। एक आकलन के अनुसार विश्व में कोई ३-४ करोड़
बंजारे हैं। कई बंजारा समाजों ने बड़े-बड़े साम्राज्य तक स्थापित करने में
सफलता पायी।,,,,, भारत में वर्तमान में बंजारा समाज कई प्रांतों से निवास
करता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश
तथा मप्र प्रांतों में बंजारा समाज की संख्या अधिक है। पूरे देश में अपनी
एक अलग ही संस्कृति में जीने वाले इस समाज को अपनी विशिष्ट पहचान के रूप
में जाना जाता है। वैसे भारतीय संविधान अनुसार समाज विकास के लिए प्रदेश
स्तर पर अलग-अलग कानून बनाये गये है, जिसके कारण बंजारा जाति को किसी
प्रदेश में अनुसूचित जनजाति में तो किसी प्रदेश में पिछड़ा वर्ग या विमुक्त
जाति की सूची में रखा गया है। देश में बंजारा समाज हेतु एक जैसा कानून नहीं
होने से यह समाज आज भी विकास की मुख्य धारा से नहीं जुड़ गया है। इसके कारण
मप्र सहित कई प्रांत के बंजारा जाति के लोग अपनी रोजी-रोटी हेतु अलग-अलग
प्रांतों में पलायन कर अपनी अजीविका चला रहे है। राजनैतिक दृष्टि से यह
समाज अपनी पहचान तक नहीं बना पाया है। वर्तमान में मप्र बंजारा जाति की
जनसंख्या लगभग दस लाख है, फिर भी प्रदेश, जिला व ब्लाक स्तर पर इस समाज का
प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण समाज आज भी विकास की राह देख रहा है। शासन
को चाहिए की बंजारा समाज जिसकी संस्कृति ने भारत देश की संस्कृति से
मिलती-जुलती है। ऐसे समाज को सरकारी व गैर सरकारी, राजनैतिक संगठनों में कम
से कम इतना प्रतिनिधित्व तो दिया ही जाना चाहिए, जिससे सदियों से पिछड़े
समाज के विकास का रास्ता प्रबल हो। समय होते हुवे यदि शासन स्तर पर समाज की
कोई ठोस पहल नहीं की जाती है। समाज अब अपने अधिकारों के लिए और अधिक समय
तक इंतजार नहीं करेगा व अपने स्तर पर विकास हेतु भावी राजनीति बनाने में
जुट सकता है,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)