इस पर दायर याचिका पर सुनवाई करते
हुए सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च को बड़ा फैसला दिया है. अब सोशल मीडिया पर
किसी पोस्ट को लेकर IT एक्ट की धारा 66A के तहत ना तो कोई मामला दर्ज होगा
और ना ही किसी की तुरंत गिरफ्तारी हो सकेगी.
जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस आर एफ नरीमन
की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए
संविधान के तहत उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को साफ तौर
पर प्रभावित करती है. कोर्ट ने प्रावधान को अस्पष्ट बताते हुए कहा, ‘किसी
एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वो दूसरे के लिए नहीं भी हो
सकती है.’
याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल ने इस एक्ट में
गिरफ्तारी के प्रावधान को चुनौती दी थी. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम
कोर्ट ने यह फैसला दिया.
इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल
मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी
को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी. पहले पुलिस को किसी को भी गिरफ्तार करने
का अधिकार था. लेकिन अब वो अधिकार खत्म हो गया है.
इसका मतलब ये भी नहीं है कि अब कोई भी कुछ
इंटरनेट पर लिख दे. अब भी अगर कोई आपत्तिजनक सामग्री इंटरनेट पर दिखती है
तो कोई भी व्यक्ति उसके खिलाफ अदालत में भारतीय दंड संहिता की आम धाराओं के
तहत मुकदमा दर्ज करवा सक
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