30 मार्च को राजस्थान अपना 65 वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा
है। राजस्थान का अपना गौरवमयी इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।आपको आज बताने जा रहा है
एक वीर योद्धा की कहानी जिसने राजा की सेना में आगे रहने के लिए अपना सिर
काटकर किले में फेंक दिया था...
उदयपुर। राजस्थान का इतिहास यहां के राजपूतों के हजारों वीरता
की सच्ची गाथाओं के लिए भी जाना जाता है। उन्हीं गाथावों मे से एक है
जैतसिंह चुण्डावत की कहानी। मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह की सेना की दो
राजपूत रेजिमेंट चुण्डावत और शक्तावत में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए
एक प्रतियोगिता हुई थी। इस प्रतियोगिता को राजपूतों की अपनी आन, बान और
शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देने वाली कहावत का एक अच्छा उदाहरण
माना जाता है।
मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह की सेना में विशेष पराक्रमी होने के कारण
चुण्डावत खांप के वीरों को ही युद्ध भूमि में अग्रिम पंक्ति में रहने का
गौरव मिला हुआ था। वह उसे अपना अधिकार मानते थे। किन्तु शक्तावत खांप के
वीर राजपूत भी कम पराक्रमी नहीं थे। उनकी भी इच्छा थी की युद्ध क्षेत्र में
सेना में आगे रहकर मृत्यु से पहला मुकाबला उनका होना चाहिए। उन्होंने मांग
रखी कि हम चुंडावतों से त्याग, बलिदान व शौर्य में किसी भी प्रकार कम नहीं
है। युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार हमें मिलना चाहिए। इसके लिए एक
प्रतियोगिता रखी गई जिसे जीतने के लिए चुण्डावत ने अपना सिर खुद धड़ से अलग
कर किले में फेंक दिया था।
सभी जानते थे कि युद्ध भूमि में सबसे आगे रहना यानी मौत को सबसे पहले
गले लगाना। मौत की इस तरह पहले गले लगाने की चाहत को देख महाराणा धर्म-संकट
में पड़ गए। किस पक्ष को अधिक पराक्रमी मानकर युद्ध भूमि में आगे रहने का
अधिकार दिया जाए?
इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने एक कसौटी तय की, जिसके अनुसार यह
निश्चित किया गया कि दोनों दल उन्टाला दुर्ग (किला जो कि बादशाह जहांगीर के
अधीन था और फतेहपुर का नवाब समस खां वहां का किलेदार था) पर अलग-अलग दिशा
से एक साथ आक्रमण करेंगे व जिस दल का व्यक्ति पहले दुर्ग में प्रवेश करेगा
उसे ही युद्ध भूमि में रहने का अधिकार दिया जाएगा।
प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए दोनों दलों के रण-बांकुरों ने उन्टाला
दुर्ग (किले) पर आक्रमण कर दिया। शक्तावत वीर दुर्ग के फाटक के पास पहुंच
कर उसे तोड़ने का प्रयास करने लगे तो चुंडावत वीरों ने पास ही दुर्ग की
दीवार पर रस्से डालकर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया। इधर शक्तावतों ने जब
दुर्ग के फाटक को तोड़ने के लिए फाटक पर हाथी को टक्कर देने के लिए आगे
बढाया तो फाटक में लगे हुए लोहे के नुकीले शूलों से सहम कर हाथी पीछे हट
गया।
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