नई दिल्ली. राजनीति में अपने विरोधियों की ओर से भी हमेशा सम्मान पाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आज 'भारत रत्न' हो गए। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी प्रोटोकॉल तोड़ते हुए उनके घर जाकर उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।
उनके घर पर एक करीबी ने dainikbhaskar.com को बताया कि जब इस बारे में
उन्हें आरएसएस व भाजपा के एक बड़े नेता की ओर से सूचना दी गई तो उनके
चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। वह बस सूचना देने वाले व्यक्त्िा को
एकटक निहारते रहे।
सम्मान के एलान के बाद सुषमा गई थीं मिलने
भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के मौके पर सुषमा स्वराज उनसे मिलने गई
थीं। तब बाहर आकर उन्होंने कहा था कि इस सूचना पर अटल जी मुस्कुराए थे।
अटलजी सालों से बीमार हैं और बिस्तर पर ही रहते हैं। हा (अल ही में उनके
अस्वस्थ होने का उल्लेख करते हुए भाजपा के एक सदस्य ने लोकसभा में अल्जाइमर
एवं डिमेंशिया जैसी बीमारियों से पीड़ित बुजुर्ग लोगों के इलाज एवं देखभाल
के लिए सरकार से व्यापक कदम उठाने की मांग की थी। यानी अटलजी इन्हीं
बीमारियों से ग्रस्त हैं। दिल्ली के 6, कृष्णा मेनन मार्ग स्थित घर पर
उनसे गिने-चुने लोग ही मिल पाते हैं।
अटलजी के एक करीबी शख्स के मुताबिक 2002 में लखनऊ में एक प्रेस
कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने पहली बार अपनी तबीयत ठीक नहीं होने की बात
सार्वजनिक करते हुए पत्रकारों के सवालों के जवाब नहीं दिए थे। उसके बाद
उनकी तबीयत बिगड़ती रही। 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद से वह सक्रिय
राजनीति से एकदम अलग हो गए और घर पर ही रह रहे हैं।
90 साल के वाजपेयी कई साल से अल्जाइमर और डिमेंशिया से ग्रस्त हैं।
बीजेपी डॉक्टर सेल के पूर्व राष्ट्रीय कन्वेनर डॉ राम सागर सिंह के अनुसार
एक साल पहले वह अटलजी से मिले थे। वो बोलना चाहते थे, लेकिन बोल नहीं पा
रहे थे। उनका वजन भी पहले से आधा हो गया था। किसी को पहचान भी नहीं पा रहे
थे।
क्या है अल्जाइमर डिमेंशिया ?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सेक्रटरी जनरल के के अग्रवाल के अनुसार डिमेंशिया भूलने की बीमारी है। बिना किसी कारण, उम्र अधिक होने के कारण किसी व्यक्ति को डिमेंशिया हो तो इसे अल्जाइमर डिमेंशिया कहते हैं। अगर ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, आधुनिक जीवनशैली या फिर सिर में चोट लग जाने के कारण डिमेंशिया हो तो इसे नॉन अल्जाइमर कहते है। अल्जाइमर में मुख्यत: पांच बातें होती है। पहला मेमोरी लॉस हो जाना, यानी व्यक्ति को कुछ भी याद नहीं रहता है। दूसरा, कैलकुलेशन नहीं कर पाना यानी व्यक्ति 2 और 2 कितना होता है, नहीं बता पता है। तीसरा, लैंग्वेज भूल जाना यानी भाषा का ज्ञान खत्म हो जाना। कब क्या और किसे क्या बोलना है पता नहीं चल पाता है। चौथा, रीजनिंग खत्म हो जाना यानी मरीज फर्स्ट प्लोर और थर्ड प्लोर में अंतर नहीं कर पाता है। पांचवां, निर्णय लेने की क्षमता खत्म हो जाना।
अग्रवाल के अनुसार अमूमन 60 साल की उम्र के आसापास होने वाली इस
बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है। हालांकि बीमारी के शुरुआती दौर
में नियमित जांच और इलाज से इस पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है।
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