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23 नवंबर 2025

सादिक़ अली साहब की वाल से साभारज़ सीरीज़

 

सादिक़ अली साहब की वाल से साभारज़ सीरीज़ -17- MAAPRI Tonk
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान, टोंक में राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह के शुभागमन (1986)पर साहबज़ादा शौकत अली ख़ां द्वारा पढ़े गए तौसीफ़नामे और उसके बाद के ऐतिहासिक पलों को चश्मे तसव्वुर से देखिए:
ड्रामा स्क्रिप्ट: "गले मिलती तारीख़"
स्थान:मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान, टोंक का सभागार।
समय: दोपहर का समय।
किरदार:
1. राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह: (गंभीर, लेकिन चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान)
2.नवाब मासूम अली ख़ां : (एज़ाज़ी नवाब ऑफ़ टोंक ,शालीन, नवाबी अंदाज़, आदाब से लबरेज़)
3.साहबज़ादा शौकत अली ख़ां: (संस्थान के डायरेक्टर, प्रभावशाली वक्ता,स्कॉलर)
4.शहर के गणमान्य नागरिक: (सभागार में बैठे हुए)
5.नैरेटर:(दृश्य का आरम्भ)
(सभागार सजा हुआ है। गणमान्य नागरिक अपनी-अपनी जगह पर विराजमान हैं। मंच पर राष्ट्रपति ज़ैल सिंह और नवाब मासूम अली ख़ां साथ-साथ बैठे हैं। एक तरफ़ साहबज़ादा शौकत अली ख़ां, एक फ़ाइल लिए, तौसीफ़नामा पढ़ने के लिए तैयार खड़े हैं।)
साहबज़ादा शौकत अली ख़ां: (आदाब से सिर झुकाकर, आवाज़ में जोश और अदब लिए)
"हुज़ूर, माननीय राष्ट्रपति जी, नवाब साहब, और यहाँ उपस्थित सभी गणमान्य जन। आज का दिन टोंक शहर के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। जब हमारे बीच देश के सर्वोच्च शासक, ज्ञानी ज़ैल सिंह जी तशरीफ़ लाए हैं, तो यह ज़रूरी है कि उनके स्वागत में जो तौसीफ़नामा पेश किया जाए, वह सिर्फ़ काग़ज़ी शब्द न हो, बल्कि तारीख़ के पन्नों से निकली एक जीती-जागती सच्चाई हो।"
(सभागार में सन्नाटा छा जाता है। सब ध्यान से सुन रहे हैं। राष्ट्रपति जी गंभीरता से शौकत अली ख़ां की ओर देख रहे हैं।)
शौकत अली ख़ां: (आवाज़ में और भी गहराई लाते हुए)
"हुज़ूर, तारीख़- ख़ुद को दोहराने की एक अजीब सी आदत रखती है। आज से कोई डेढ़ सौ साल पहले लाहौर के एक महल में एक मुलाक़ात हुई थी। एक तरफ़ थे महाराजा रणजीत सिंह, शेर-ए-पंजाब, और दूसरी तरफ़ थे नवाब अमीरुद्दौला अमीर खां, अफ़ग़ानी पठान नेता और मुजाहिद-ए-आज़ादी। दोनों की तलवारें दुश्मन के ख़ून से तर थीं। और उस दिन उन दोनों महान विभूतियों ने एक समझौता(1809) किया। समझौता था अंग्रेज़ों को इस हिन्दुस्तान की धरती से बेदख़ल करने का!"
(सभागार में एक सरगोशी सी दौड़ जाती है। राष्ट्रपति जी की आँखों में एक नई चमक दिखाई देती है।)
शौकत अली ख़ां: (आवाज़ में भावनात्मक ज्वार लाते हुए)
"और हुज़ूर, जब यह ऐतिहासिक समझौता हुआ, तो महाराजा रणजीत सिंह और नवाब अमीर खां एक-दूसरे से गले मिले थे! यह कोई साधारण गले मिलना नहीं था। यह एक सरदार और पठान का मिलन था, यह हिन्दुस्तान की एकजुटता का सबसे बुलंद इज़हार था।"
(अब शौकत अली ख़ां सीधे राष्ट्रपति और नवाब की ओर देखते हुए अपनी आवाज़ और तेज़ करते हैं।)
शौकत अली ख़ां:
"और आज, हुज़ूर, तारीख़ फिर से अपने आप को दोहरा रही है! कल लाहौर में अमीर ख़ां, महाराजा रणजीत सिंह से मिलने गए थे। और आज... आज टोंक में महाराजा रणजीत सिंह के जानशीन, हमारे माननीय राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह जी, नवाब अमीर खां के जानशीन, नवाब मासूम अली ख़ां साहब के शहर टोंक में, उनसे मिलने तशरीफ़ लाए हैं!"
(यह सुनते ही राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह तुरंत अपनी कुर्सी से उठ खड़े होते हैं। उनके चेहरे पर इतिहास की गूँज और भावनाओं की एक लहर दौड़ रही है। वह नवाब मासूम अली ख़ां की ओर बढ़ते हैं। नवाब साहब भी तुरंत उठ खड़े होते हैं।दोनों महानुभाव, इतिहास को फिर से जीते हुए, एक-दूसरे से गले मिलते हैं। सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है।)
(कुछ पलों के बाद, जब तालियाँ थमती हैं, राष्ट्रपति जी अपनी सीट पर लौटते हैं, लेकिन उनकी आँखें अब भी नवाब साहब पर टिकी हैं। वह नवाब साहब को अपने बराबर वाली कुर्सी पर बैठाते हैं। फिर वह शौकत अली खां की ओर मुड़ते हैं और बहुत ही नर्मी और प्यार से फ़रमाते हैं।)
राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह: (मुस्कुराते हुए)
"बेटा, फिर पढ़ो। ज़ोर से पढ़ो।"
शौकत अली ख़ां:(गद्गद स्वर में, फिर से वही पंक्तियाँ पढ़ते हैं)
"...और आज टोंक में महाराजा रणजीत सिंह के जानशीन ज्ञानी ज़ैल सिंह, नवाब अमीर खां के जानशीन नवाब मासूम अली खां से मिलने तशरीफ़ लाए हैं!"
(फिर से ज़ोरदार तालियाँ बजने लगती हैं। तालियों की इस गूँज के बीच, दोनों सरदार एक बार फिर गले मिलते हैं। यह दृश्य इतना मार्मिक और हृदयस्पर्शी था कि कई दर्शकों की आँखें नम हो जाती हैं।)
शौकत अली ख़ां: (अपनी आवाज़ को संयमित करते हुए, अंतिम पंक्तियाँ पढ़ते हैं)
"और यह दोस्ताना मरासिम, दोस्ती का यह रिश्ता, ता हयात, हमेशा क़ायम रहे!"
(सभागार में एक बार फिर गूँजती तालियाँ। राष्ट्रपति जी नवाब साहब का हाथ थामे हुए हैं, और दोनों के चेहरे पर एक अमिट मुस्कान है। यह सिर्फ़ दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों, दो इतिहासों और एक अखंड भारत की भावना का पुनर्जन्म है।)
(पर्दा गिरता है)

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