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10 नवंबर 2025

स्कूलों की जर्जर इमारतें, मोत बांट रही हैं, इधर वन्दे मातरम राष्ट्रीय गीत के 150 वर्षों में 2014 से केंद्र में लोकसभा, राज्य सभा , राज्यों में स्पष्ट बहुमत होने पर भी इस गीत को डिमांड होने पर भी क़ानूनी संरक्षण नहीं दिया

 

स्कूलों की जर्जर इमारतें, मोत बांट रही हैं, इधर वन्दे मातरम राष्ट्रीय गीत के 150 वर्षों में 2014 से केंद्र में लोकसभा, राज्य सभा , राज्यों में स्पष्ट बहुमत होने पर भी इस गीत को डिमांड होने पर भी क़ानूनी संरक्षण नहीं दिया, दूसरी तरफ गो संरक्षण टेक्स के नाम पर अरबों की वार्षिक वसूली के बाद भी गांय को राष्ट्रमाता का दर्जा नहीं दिया, जनता की गुमराही, मुद्दों का भटकाव बस ओर नाकामयाबी को छुपाने के लिए जज़्बात भड़काऊ, तो समझो देशवासियों, समझो जानम,
कोटा सांसद लोकसभा अध्यक्ष हों , कोटा से शिक्षा मंत्री मदन जी दिलावर हों , ऊर्जा मंत्री हीरा लाल जी नागर हों , विधायक जी हों , पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा जी सिंधिया हों , खुद मुख्यमंत्री भजनलाल जी हों , देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी हों , जो भी हों , वोह झालावाड़ पिपलोद स्कूल में बच्चों की मोत ओर पर्याप्त मुआवज़े पर तो चुप रहे , इधर राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था के नाम पर कोर्स चेंजिंग , ड्रेस चेंजिंग , भ्रामक योजनाए वगेरा शुरू कर दी गईं, , लेकिन स्कूली बच्चों के कल्याणकारी योजना , शैक्षणिक सुधार के नाम् पर कोई विज़न राजस्थान सरकार का नहीं रहा, इसीलिए झालावाड़ स्कूली हादसे , स्कूलों के भवन निर्माण की घटिया सामग्री , वगेरा वगेरा जैसे मुद्दों को भटकाने , दबाने के लिए शिक्षा के नाम पर कभी वन्देमातरम का भटकाव , कभी सूर्य नमस्कार तो कभी योगा अभ्यास की अनिवार्यता के नाम पर खुद की नाकामयाबियों को छुपाने की कोशिशें है , भाजपा के नेता ,संघ से जुड़े ,लोग कुछ देश के लिए बेहतर करने वाले हो सकते हैं , लेकिन बहुत कुछ ऐसे हैं जो करते कुछ नहीं , और शार्ट कट में सरकार में बने रहना चाहते है , कभी गो वंश संरक्षण के नाम पर मोब्लिचिंग के नाम पर , गो हत्या रोकने के नाम पर तो कभी वन्देमातरम राष्ट्रगीत के नाम पर सियासत सिर्फ सियासत करते है , गांय को राष्ट्र माता का दर्जा, वन्देमातरम गीत को प्रिवेंशन ऑफ नेशनल ओर एक्ट के दण्डात्मक प्रावधान में शामिल करने के मामले इन्होंने कुछ आवाज़ भी नहीं उठाई और किया भी कुछ नहीं, सिर्फ गुमराह करना इनका काम है, लेकिन देश जानता है के भाजपा की केंद्र में और राज्यों में सरकारें हैं , लोकसभा , विधानसभा में स्पष्ट बहुमत है , फिर भी अब तक गांय को राष्ट्रमाता का दर्जा नहीं दिया गया , बीफ एक्सपोर्ट पूरी तरह से देश में प्रतिबंधित नहीं किया गया , जबकि देश में वन्देमातरम को भाजपा सरकार ने डेढ़ सो साल होने पर भी , उसके सम्मान के लिए कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं किये हैं , भारत में इस मामले को लेकर ,, माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका के दौरान वन्देमातरम गीत की आस्था को लेकर कहा था , के देश में सभी धर्मों वाले भी अपनी अपनी धार्मिक पुस्तकों पर आस्था रखते हैं , लेकिन उसके लिए पृथक से क़ानून की आवश्यकता नहीं यह आस्थाओ का प्रश्न है , वन्देमातरम गीत को क़ानूनी दर्जा दिलवाने और इसके अपमान पर प्रिवेंशन ऑफ़ नेशनल ओर एक्ट के मामले में दंडात्मक प्रावधान की मांग की गई थी , लेकिन इस मामले में एक कमेटी बनाने के निर्देश दिए और आखिर में , इस कमेटी ने भी कोई कार्यवाही नहीं की , एक तरफ तो भाजपा वन्देमातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा देती है और दूसरी तरफ कमेटी बनाने के बाद भी वन्देमातरम मामले में भाजपा सरकार ने कोई अध्यादेश जारी नहीं किया क़ानून नहीं बनाया उलटे भाजपा सरकार में ही बनी कमेटी की रिपोर्ट भी आ गई , एक तरफ तो वन्देमातरम को लेकर भाजपा का दोहरा चरित्र देश के सामने है , स्कूलों की स्थिति ,शिक्षा का स्तर , बच्चों की सुरक्षात्मक उपाय , देश की कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन , राज्य की सुरक्षात्मक और कल्याणकारी योजनाए ताक में रखी हैं , सरकारें असफल है , तो फिर मुद्दों को भटकाने के लिए , जब सुप्रीम कोर्ट तक इन मुद्दों को , ऐच्छिक कह चुकी है , संवैधानिक , क़ानूनी बाध्यता नहीं बताई है , तो फिर यह लोग जो अपना विभाग भी सही ढंग से सँभाल पाने में असमर्थ हैं , वोह अपनी नाकामयाबी छुपाने , स्कूलों के घटिया निर्माण और बिगड़ी शिक्षा व्यवस्था के मामले में , खुद इनकी ही सरकार के मंत्री द्वारा शिक्षा विभाग के घटिया निर्माण को उजागर किये जाने के बाद , इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी खुद अपने उपर लेने से बचने के लिए , राजस्थान में स्कूलों , मदरसों , विभागों में , राष्ट्रगीत के नाम पर , संविधान और सुप्रीमकोर्ट के निर्देशों के विपरीत मनमानी की जा रही है , इस मामले में , राष्ट्रगान जन गण मन के लिए भी पहले टाकिजों में चलाने का आदेश हुआ था , फिर उसकी गाइड लाइन सुप्रीमकोर्ट ने ही बदल दी , कोई बाध्यता नहीं है , अपमान करना अपराध है , लेकिन गाना बाध्यता नहीं ,, तो फिर यह आदेश अवैध हुए ना , इसी तरह से गो वंश संरक्षण अधिनियम के प्रावधान बनाये ही नहीं गए , अरबों अरब रूपये गो सेज़ , गो टेक्स के नाम पर वसूलने के बाद भी , गांयों के संरक्षण के लिए सिर्फ और सिर्फ बाबा जी का ठुल्लू है , बीफ कंपनियों से चंदा लिया जा रहा है , तो देश को सवाल पूंछने का हक़ तो बनता है , ,फिल्म कभी ख़ुशी कभी गम में , राष्ट्रगान के अपमान को चुनौती दी गई थी , गाइड लाईन बनी , फिर कार्यवाही खारिज हुई , सुप्रीम कोर्ट ने बाध्यता खत्म की , राष्ट्रगीत वन्देमातरम मामले में केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया , प्रिवेंशन नेशनल ऑनर एक्ट तक में इसे शामिल नहीं किया , जबकि इलाहबाद हायकोर्ट के मुस्लिम जज ने ,गांय को राष्ट्र माता का दर्जा देकर , गांय के राष्ट्रिय संरक्षण के लिए कड़े क़ानून की सिफारिशें केंद्र सरकार से की हैं , लेकिन भाजपा नेताओं के हाथी के दांत खाने के और दिखा के और है , इसीलिये इस मामले में वन्देमातरम गीत को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश अवलोकनार्थ पेश है , ,,
दिल्ली उच्च न्यायालय
गौतम आर मोरारका बनाम भारत संघ एवं अन्य,
*नई दिल्ली स्थित दिल्ली उच्च न्यायालय में
+ WP(C)सं.10867/2016
% निर्णय की तिथि: 17 अक्टूबर, 2017
गौतम आर मोरारका... याचिकाकर्ता
माध्यम से: श्री प्रवीण एच. पारेख, वरिष्ठ अधिवक्ता।
श्री सुमित गोयल, सुश्री के साथ
रितिका सेठी और सुश्री राशि
गुप्ता, एडवोकेट
बनाम
भारत संघ और एएनआर .....प्रतिवादी
माध्यम: सुश्री सुपर्णा श्रीवास्तव, सीजीएससी
सुश्री संजना दुआ और सुश्री के साथ
अलिंडा भडवाल, आर- के लिए सलाहकार
1&2.
कोरम:
माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्रीमान. जस्टिस सी.हरि शंकर
निर्णय (मौखिक)
गीता मित्तल, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश
1. याचिकाकर्ता का कहना है कि 24 जनवरी 1950 को संविधान पर हस्ताक्षर करने के लिए गठित भारतीय संविधान सभा ने 'वंदे मातरम' गीत को 'जन गण मन' के बराबर दर्जा दिया है। याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील श्री प्रवीण एच. पारेख ने हमारे समक्ष दलील दी है कि संविधान सभा ने भी माना था कि 'वंदे मातरम' गीत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी और इसे राष्ट्रगान के समान ही सम्मान दिया जाना चाहिए। यह तर्क देते हुए कि इसके गायन और इसके पालन हेतु प्रोटोकॉल के संबंध में कोई नियम नहीं बनाए गए हैं, रिट याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत 'वंदे मातरम' गीत को उचित वैधानिक मान्यता प्रदान की जानी चाहिए । यह अधिनियम राष्ट्रीय प्रतीकों के अनादर और अपमान को रोकने के लिए बनाया गया था। इन तर्कों के आधार पर, रिट याचिकाकर्ता निम्नलिखित प्रार्थनाएँ प्रस्तुत करता है:
"(क) गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पारित आदेश संख्या 19/6/2014 - सार्वजनिक दिनांक 30.05.2016 को रद्द करने के लिए उचित रिट या आदेश जारी करना;
(ख) राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के संबंध में उचित आदेश/निर्देश जारी करने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने हेतु परमादेश रिट या कोई अन्य उपयुक्त रिट जारी करें और राष्ट्रीय गीत के सम्मान और गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए इसे गाए/बजाए जाने के दौरान बरती जाने वाली शिष्टाचार की बात करें, जैसा कि राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' के संबंध में प्रतिवादी संख्या 1 (अनुलग्नक पी-5) द्वारा पहले ही जारी किए गए आदेशों और निर्देशों की तर्ज पर किया गया है।
(ग) परमादेश रिट या कोई अन्य उपयुक्त रिट जारी कर प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए कि वे राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के संबंध में प्रावधानों को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 में संशोधन के लिए एक उपयुक्त विधेयक लाने पर विचार करें ताकि राष्ट्रीय गीत को वह सम्मान और गरिमा सुनिश्चित हो सके जिसका वह हकदार है; और
(घ) ऐसे और अतिरिक्त आदेश पारित करना जो वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा न्याय के हित में उचित और आवश्यक समझे जाएं।"
WP(C)सं.10867/2016 पृष्ठ 2 का 6
2. यह सर्वविदित है कि यह न्यायालय प्रतिवादियों को कानून बनाने और उसे प्रभावी बनाने के लिए परमादेश रिट जारी नहीं कर सकता। इसलिए, प्रार्थना (ग) अस्वीकार्य है और इसमें मांगे गए कोई भी निर्देश पारित नहीं किए जा सकते।
3. प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया जाता है, जिन्होंने इसके जवाब में 2 फरवरी, 2017 को एक विस्तृत हलफनामा दायर किया है। इस अदालत को सूचित किया गया है कि याचिकाकर्ता ने 6 फरवरी, 2013 और 20 नवंबर, 2013 को अभ्यावेदन दिए थे, जो रिट याचिका में किए गए अनुरोधों और प्रस्तुतियों के संदर्भ में थे, जिसमें उपरोक्त कानून में संशोधन करने और 'वंदे मातरम' गीत के गायन और वादन के संबंध में दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई थी।
4. हमें यह भी सूचित किया गया है कि रिट याचिकाकर्ता ने पहले भी इस न्यायालय में WP(C) संख्या 662/2014 के तहत रिट याचिका दायर की थी। इन कार्यवाहियों में, 29 जनवरी, 2014 को एक आदेश पारित किया गया था जिसमें गृह मंत्रालय को 6 फरवरी, 2013 और 20 नवंबर, 2013 के अभ्यावेदनों पर कानून के अनुसार विचार करने और उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया था।
5. उपरोक्त निर्देशों के अनुसरण में, याचिकाकर्ता के अभ्यावेदनों के आधार पर एक समिति गठित की गई, जिसकी 29 मार्च, 2016 को बैठक हुई और याचिकाकर्ता के अभ्यावेदनों पर विचार किया गया। इस समिति द्वारा की गई सिफ़ारिशों के परिणामस्वरूप 30 मई, 2016 को प्रतिवादियों द्वारा जारी आदेश में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित बातें भी शामिल थीं:
8. चूंकि, विस्तृत चर्चा के बाद, समिति ने 29 मार्च, 2016 को आयोजित अपनी बैठक में सिफारिश की थी कि इस संबंध में वर्तमान में यथास्थिति बनाए रखी जाए, तथा आशा व्यक्त की कि भारत का प्रत्येक नागरिक हमारे स्वतंत्रता संग्राम में इस गीत की ऐतिहासिक भूमिका को याद रखेगा तथा जब इसे बजाया या गाया जाए तो इस गीत के प्रति उचित सम्मान प्रदर्शित करेगा;
9. जबकि, किसी रचनात्मक कृति के प्रति सम्मान दर्शाने का एकमात्र तरीका क़ानूनी संरक्षण नहीं है। अरबों भारतीयों का रामचरितमानस और महाभारत में गहरा सम्मान और अटूट आस्था है। दुनिया भर के ईसाई भी इसी तरह बाइबल में आस्था रखते हैं; कालिदास और शेक्सपियर की रचनाएँ दुनिया भर में, सदियों से पूजनीय हैं और रही हैं; और आरतियाँ अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ गाई जाती हैं। फिर भी, इनमें से किसी को भी, वास्तव में, क़ानूनी संरक्षण की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में, ऐसी रचनात्मक और/या धार्मिक प्रकृति की कृतियाँ क़ानून से परे और ऊपर कही जा सकती हैं। एक राष्ट्र का केवल एक ध्वज और एक राष्ट्रगान होता है;
इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य गीतों या प्रार्थनाओं के प्रति कोई कम सम्मान है, या नागरिकों को अन्य गीतों, पुस्तकों या प्रतीकों का सम्मान करने, गाने और भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ने से रोका जाता है;
10. जबकि, हमारे स्वतंत्रता संग्राम से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ, भावपूर्ण 'वंदे मातरम' एक शाश्वत गीत है जो बिना किसी अनिवार्यता या कानून के लंबे हाथों द्वारा लागू किए, सम्मान और प्रेम का अधिष्ठाता है। यह वीरता, समर्पण और मातृभूमि के प्रति प्रेम का पर्याय बन गया है, और भारत के नागरिकों के हृदय और मस्तिष्क में अपनी जगह बनाए रखने के लिए इसे किसी बैसाखी की आवश्यकता नहीं है;
11. जबकि भारतीय 'राज्य' और राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान के आधिकारिक प्रतीक होने के नाते, जिन्हें समान रूप से प्यार और सम्मान दिया जाता है, उन्हें संहिताबद्ध करने की आवश्यकता है, वहीं वंदे मातरम भारत के लोगों की भावनाओं और मानस में एक अद्वितीय और विशेष स्थान रखता है, जिसे किसी औपचारिक समर्थन या संहिताबद्ध करने की आवश्यकता नहीं है।
12. अतः, आवेदक का अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता। आवेदक को सलाह दी जाती है कि वह वंदे मातरम के प्रति अपने स्पष्ट प्रेम और सम्मान को युवाओं में इसके प्रचार और प्रसार में परिवर्तित करें, तथा इसका अर्थ और महत्व समझाएँ; यह 'वंदे मातरम' के लिए उनका एक बड़ा योगदान हो सकता है । "
6. इस बात पर विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है कि 'वंदे मातरम' स्वतंत्रता संग्राम से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, जैसा कि समिति और प्रतिवादियों ने कहा है, यह एक शाश्वत गीत है जो कानून के लंबे हाथों से नियंत्रित या लागू किए बिना सम्मान और प्रेम का स्रोत है। यह स्वीकार किया जाता है कि यह गीत वीरता, समर्पण और मातृभूमि के प्रति प्रेम का पर्याय बन गया है।
7. प्रतिवादियों की ओर से सुश्री सुपर्णा श्रीवास्तव, वरिष्ठतम सीजीएससी ने इस न्यायालय को सूचित किया है कि रिट याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना के समान ही एक प्रार्थना, WP(C) संख्या 98/2017 अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ एवं अन्य में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष की गई थी। इस प्रार्थना पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 17 फरवरी, 2017 को विचार किया और निम्नलिखित आदेश दिया:
"याचिकाकर्ता की विद्वान वकील सुश्री आशा उपाध्याय के साथ वरिष्ठ विद्वान वकील श्री विकास सिंह को सुना गया।
वर्तमान रिट याचिका में प्रार्थना (ए) निम्नलिखित प्रभाव की है: -
"क) भारत के संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित महान स्वर्णिम लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 51ए की भावना के अनुरूप राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत और राष्ट्रीय ध्वज को बढ़ावा देने और प्रचार करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करना। "
विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विकास सिंह ने कहा कि यह रिट याचिका संख्या 855/2016 के समान है।
इसमें पारित आदेश का अवलोकन करने पर, हमें यह नहीं लगता कि यह पूरी तरह से प्रार्थना (क) से संबंधित है, क्योंकि हमारा पूर्व आदेश 'राष्ट्रीय गीत' या 'राष्ट्रीय ध्वज' से संबंधित नहीं है। यह स्पष्ट रूप से ध्यान देने योग्य है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 51ए(क) 'राष्ट्रीय गीत' का उल्लेख नहीं करता है। यह केवल राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का उल्लेख करता है। उक्त अनुच्छेद इस प्रकार है:
"51ए. मूल कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि -
(क) संविधान का पालन करना तथा उसके आदर्शों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।"
इसलिए, जहां तक ​​राष्ट्रीय गीत का सवाल है, हम किसी भी बहस में शामिल होने का इरादा नहीं रखते हैं।"
8. उपरोक्त के मद्देनजर, हालांकि रिट याचिकाकर्ता के साथ कोई विवाद नहीं हो सकता है कि 'वंदे मातरम' गीत उस सम्मान और आदर का हकदार है जिसे प्रतिवादियों द्वारा मान्यता दी गई है और जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त आदेश में नोट किया है, हम रिट याचिका में की गई प्रार्थनाओं को स्वीकार करने में असमर्थ हैं।
तदनुसार यह रिट याचिका खारिज की जाती है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सी. हरि शंकर, जे अक्टूबर 17, 2017 एमके डब्ल्यूपी(सी)सं.10867/2016 पृष्ठ 6 का 6

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