ऐसा देश है मेरा / साहित्य...........863
कहानी
संजू श्रृंगी, कोटा
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श्यामली आज सुबह से बहुत खुश थी। वह प्रसन्नता से गुनगुनाती हुई तेजी से घर के काम निबटा रही थी। और खुश क्यों न हो,उसके पति समीर जो सेना में थे,आज लम्बे समय के बाद घर जो आ रहे थे। वहीं लेटा हुआ नन्हा अर्जुन मां को टुकुर-टुकुर देखता हुआ हौले हौले मुस्कुरा रहा था,मानो अपने पिता के आने की खुशी साझा कर रहा हो। श्यामली बड़ी बेसब्री से जिस घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी आखिर वो घड़ी भी आ ही गई ।जब वर्दी पहने समीर को श्यामली ने सामने खड़े देखा तो कुछ पलों के लिए जैसे समय थम सा गया और श्यामली सब कुछ भूल कर देर तक बस समीर के आलिंगन से बंधी रही।
पहले श्यामली का समय बड़ी मुश्किल से कटता था मगर समीर के आने के बाद वही समय जैसे पंख लगाकर उड़ने लगा। शुरू का एक सप्ताह कब गुजर गया पता भी न चला। समीर जी भर कर अपने बेटे अर्जुन को दुलार करता और अपनी बांहों में झुलाता । वह अक्सर श्यामली से कहता---" मेरा बेटा भी एक दिन बड़ा होकर मेरी तरह देश की सेवा करेगा , मैं इसे एक वीर सैनिक के रूप में देखना चाहता हूं।" सुनकर श्यामली की आंखों में एक गर्व भरी चमक तैर जाती और वह मुस्कुरा देती । तभी अचानक समीर को खबर मिली कि सीमा पर तनाव के कारण उसकी आगामी छुट्टियां निरस्त कर दी गई है और उसे तुरंत वापस अपने कर्मक्षेत्र लौटना होगा। न चाहते हुए भी श्यामली ने पति समीर को क्षुब्ध हृदय और नम आंखों से विदाई दी।समीर ने जाते-जाते कहा--- "श्यामली,तुम अपना और मेरे बेटे अर्जुन का ख्याल रखना। मैं जल्दी ही तुम्हारे पास वापस आने की कोशिश करूंगा।" श्यामली ने चेहरे पर फीकी सी मुस्कुराहट लाते हुए स्वीकृति में धीरे से अपना सिर हिलाया।
पति के फ़र्ज़ और नियति से समझौता कर श्यामली अर्जुन के साथ वापस अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त हो गई। और आखिर एक दिन वही हुआ जिसकी श्यामली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। तिरंगे में लिपटे हुए समीर का पार्थिव शरीर जब घर लाया गया तो श्यामली की चीत्कार ने आकाश का कलेजा भी दहला दिया। अचानक आए इस वज्रपात ने श्यामली को पूरी तरह तोड़कर रख दिया। अपने बेटे अर्जुन का भविष्य चुनौती बनकर उसके सामने खड़ा था। समीर के कहे वाक्य उसके कानों में अक्सर गूंजते -- "श्यामली मैं अपने बेटे को अपनी तरह देश की रक्षा में सौंपना चाहता हूं"। समीर की यादों के साथ ही आंसुओं की दो बूंदें उसके गालों पर ढुलक आती।
और अंततः श्यामली ने जीने के लिए अपने जीवन का उद्देश्य बनाया कि वह समीर का सपना जरूर पूरा करेगी । वह अर्जुन को बिल्कुल वैसा ही सच्चा देशभक्त सिपाही बनाएगी जैसा कि समीर चाहते थे।अर्जुन की रगों में भी पिता की तरह देशभक्ति का जज़्बा दौड़ रहा था और वह भी पिता की भांति एक वीर सैनिक बनना चाहता था।
समय जैसे पंख लगाकर उड़ गया और जब अर्जुन सेना में भर्ती हुआ तो राधा की आंखों में गर्व की चमक के साथ डर और चिंता की परछाई भी थी। शीघ्र ही अर्जुन की पोस्टिंग सीमा पर हो गई और अपनी मेहनत और लगन से अर्जुन जल्दी ही सेना में "कैप्टन" के पद पर पहुंच गया। शुरू में श्यामली को अकेलापन बहुत सताया मगर फिर उसने खुद को कुछ सामाजिक कार्यों में व्यस्त कर लिया । अर्जुन को मां के अकेलेपन की बहुत फिक्र रहती, वह फोन पर अक्सर कहता --" अपना ख्याल रखना मां ,और मेरी चिंता बिल्कुल मत करना।"
कहते हैं कि इतिहास खुद को फिर से दोहराता है और यही श्यामली के साथ भी घटित हुआ। कारगिल की चोटियों में दुश्मन से मुकाबला करते हुए आखिर 'कैप्टन अर्जुन' भी शहीद हो गया। तकदीर के इस भयावह खेल ने श्यामली के जीवन से वह आखिरी सहारा भी छीन लिया जिस पर उसकी सांसों की डोर टिकी हुई थी। तिरंगे में लिपटा हुआ अर्जुन का शव देखकर श्यामली अपनी सुध-बुध खो बैठी । होश आने के बाद वह बस देर तक अपलक शून्य में निहारती रही । इस घटना के बाद श्यामली अपना मानसिक संतुलन खो बैठी। वह कभी बेवजह हंसने लगती ,कभी अचानक रोने लगती और अक्सर तिरंगे को अपने सीने से लिपटाए इधर उधर घूमती रहती । गांव वालों को श्यामली से गहरी सहानुभूति थी,आखिर उसने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने पति और बेटे सहित अपने संपूर्ण अस्तित्व की बलि दे दी थी।
15 अगस्त का दिन था ,गांव के विद्यालय में जश्न का माहौल था ।आज गांव का हर व्यक्ति गर्व महसूस कर रहा था क्योंकि गांव के दोनों शहीद पिता-पुत्र को मरणोपरांत सम्मान देने के लिए बड़े बड़े अधिकारी गांव में पधारे थे। सभी की हार्दिक इच्छा थी कि एक शहीद की मां और पत्नी होने के नाते यह सम्मान श्यामली के हाथों में ही दिया जाए ।परंतु मानसिक रूप से विक्षिप्त श्यामली को सम्मान प्रदान करने के लिए वहां तक लाना आसान कार्य नहीं था।
तभी गांव के विद्यालय में राष्ट्रध्वज लहराया और राष्ट्रगान गूंजने के साथ ही अचानक रिमझिम बारिश होने लगी। राष्ट्रगान की समाप्ति के साथ ही अकस्मात् सभी की निगाहें श्यामली पर टिक गई। श्यामली अपने हाथ में तिरंगा लहराते हुए खुशी से इधर-उधर दौड़ रही थी...झूम रही थी....नाच रही थी.....गा रही थी। यह दृश्य देखकर आसमान तो आंसू बहा ही रहा था मगर साथ ही वहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति की आंखों से अश्रुधारा छलक रही थी। आज सच्चे अर्थों में श्यामली अपने पति और पुत्र को सच्ची श्रद्धांजलि दे रही थी और उस सम्मान समारोह में सभी के साथ मिलकर आजादी का जश्न मना रही थी।
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