अंता मांगरोल विधानसभा उप चुनाव की चाबी सत्ताईस हज़ार मुस्लिम वोटर्स के हाथ में हैं वोह बिखरे तो जीती हुई बाज़ी किनारे की हार में बदल जाना निश्चित है, इस चुनाव में मुख्यमंत्री, दो पूर्व मुख्यमंत्री, एक पूर्व उप मुख्यमंत्री कई सांसद, लोकसभा अध्यक्ष सहित विधायकों की साख दांव पर है
कोटा, अंता, बारां, 26 अक्टूबर, राहुल गाँधी के निर्देशों की पालना में , भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस का अल्पसंख्यक विभाग अगर माइक्रो मैनेजमेंट के तहत हाड़ोती , खासकर बारां , अंता क्षेत्र में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता ,, मददगार होता , तो अंता उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याक्षी प्रमोद जेन भाया को , आज ट्राइंगल नहीं फॉर ऐंगल फाइट में भी जीतने के लिए दर दर जाकर मशक़्क़त नहीं करना पढ़ती , उनकी बाज़ी एक तरफा जीत की थी, जो खटास की जुस्तजू में है, अल्पसंख्यकों के पैतींस हज़ार वोटों में से तीस हज़ार वोट अगर प्रमोद भाया को एक मुश्त भी पढ़ जाते तो उनकी जीत एक तरफा थी , लेकिन बारां में हालत बिगड़ने , गिरफ्तारियों और लाठीवर के वक़्त घायलों की मदद के वक़्त अल्पसंख्यक विभाग की उपेक्षित व्यवस्था के चलते आज प्रमोद भाया के खिलाफ अनावश्यक अंदरूनी माहौल बना हुआ है , और प्रमोद भाया से टक्कर ले रहे प्रत्याक्षी उनकी जीती हुई बाज़ी भी हार की निगाह से देख रहे हैं , जो किनारे पर गिनती के न्यूनतम तीन अंको तक हार जीत सिमट सकती है , ,सभी जानते है कांग्रेस में अल्पसंख्यक विभाग का गठन इसीलिए किया गया है के कांग्रेस के मूल संगठन के अलावा अल्पसंख्यक में आने वाली जाती , समाज से जुड़े लोगों पर कोई भी अन्याय , ज़ुल्म ज़्यादती हो तो इस विभाग के शीर्ष पदाधिकारियों को मुखर होकर उनकी मदद करना चाहिए , लेकिन बारां में पिछले दिनों आर एस एस पथ संचलन और मार्ग विवाद को लेकर जो लाठीवार हुआ , मुक़दमे दर्ज हुए , उस मौके पर अल्पसंख्यक विभाग का कोई भी प्रदेश या राष्ट्रिय पदाधिकारी यहां हाल पूंछने भी नहीं आया खुद प्रमोद भाया अल्पसंख्यक समाज से थे , उनसे भी लोगों को काफी उम्मीदें थी , जो सिमट कर रह गईं , अंता , मांगरोल विधानसभा में लगभग पेंतीस हज़ार से भी अधिक अल्पसंख्यक मतदाता हैं , जिनमे आठ हज़ार जेन , सिक्ख , क्रिश्चियन वोटर्स है , बाक़ी सत्ताईस हज़ार वोटर्स मुस्लिम समाज से हैं , और हर बार चुनाव में लगभग बाइस हज़ार वोटर्स पढ़ते हैं जिनमे से इक्कीस हज़ार पूरे वोट कांग्रेस को पढ़ते है , और प्रमोद भाया चुनाव में ज़िंदाबाद हो जाते है , इस बार समीकरण अलग है , चतुर्कोणीय संघर्ष है , एक एक वोट की क़ीमत है , वोट बिखर रहे हैं , चुनावी समीकरण में एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के हाथों में कमान है , तो दूसरी तरफ निर्दलीय नरेश मीणा ने ताल ठोक रखी है , अगर नरेश मीणा जीतते है , तो कोटा,. बारां और झालावाड़ तीनों के खिलाफ , विधानसभा में कच्चे चिट्ठों के सवालों की बौछार होगी , विधानसभा में सवाल हुए तो जवाब देना अधिकारियों की मजबूरी और अख़बारों को छापना मजबूरी होगा , तो फिर इनकी तो छोडो , लेकिन हाईकमान को भी खुश करना है , ऐसे में प्रमोद भाया अगर दुःख सुख के खुले रूप में साथी होते ,,, अख़बारों में निष्पक्ष एक बयान भी जारी कर देते ,, बारां की ज़ुल्म ज़्यादती, लाठीवार, पुलिस धरपकड़, कोटा मेले से मुश्आ एयर की कटौती के खिलाफ एक शब्द भी अखबार में छपवा देते, खुद की सोशल मीडिया वॉल पर विरोध जता देते तो, हम लोग उसकी कटिंगे बताकर , हमारे वोटर्स से एक तरफा वोटिंग की इल्तिजा करते , लेकिन ,अल्पसंख्यको में शिकायत है के हमारे पार्षद के टिकिट काट दिए गए ,, हमारा अल्पसंख्यक बारां जिला अध्यक्ष था उसे हटा दिया गया , चलो टिकिट इसलिए नहीं दिए गए के चुनाव हार जाएंगे , तो सरकार आने पर , सरकारी प्रसाद पर्यन्त पदों पर ज़िम्मेदार मुस्लिम समाज के लोगों को विशेष दर्जा देकर नियुक्त नहीं किया गया , उनकी उपेक्षा होती तो कोई बात नहीं गत कार्यकाल में, मांगरोल निवासी एक रमज़ान खान अंसारी नाम के व्यक्ति की जेल अभिरक्षा में मृत्यु हो गई , ,परिजनों ने आरोप लगाया , विडिओ जारी किया के उसे पुलिसकर्मियों ने लोहे के पाइप से पीटा और फिर उसे इलाज के लिए जयपुर ले गए जहाँ उसकी मृत्यु हो गई , परिजनों में कांग्रेस शासन होते हुए , जांच की मांग की दोषियों को सज़ा देने की मांग की लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई , कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया , जबकि विरोध होने , धरने लगने पर , डेमेज कंट्रोल के लिए माधोपुर पूर्व विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार बने दानिश अबरार मृतक रमजान के परिजनों से मिलने गए , इन्साफ दिलाने के वायदे किये , लेकिन उनके परिजनों को मुआवज़े के नाम पर सरकार से एक फूटी कोढ़ी भी नहीं मिली जबकि दोषियों के खिलाफ कोई जांच भी नहीं बिठाई गई , ,तब प्रमोद भाया केबिनेट मंत्री थे , उनसे भी परिजन मिले थे , अब हाल ही में बारां में आर एस एस पथ संचलन के वक़्त मार्ग विवाद में अचानक उपजे संघर्ष के बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पढ़ी ,, धरपकड़ शुरू हुई , ऐसे मामले में इन्साफ के लिए लोगों को उम्मीद थी प्रमोद भाया प्रशासन और पीड़ितों के बीच खुले रूप में सेतु बनेंगे , लेकिन ऐसा हुआ नहीं , खेर वोह नहीं साथ आये तो जिला कांग्रेस , अल्पसंख्यक विभाग , राज्य अल्पसंख्यक विभाग , राष्ट्रिय अल्पसंख्यक विभाग ने भी तो कोई संज्ञान ही नहीं लिया , बारां के कई दर्जन पीड़ित परिवारों की सुध ही नहीं ली , अब पानी सर से ऊपर हो गया है , ,ऐसे में अल्पसंख्यक वोटर्स में गुस्सा है , नाराज़गी है , हालांकि माफीनामे चल रहे हैं , डेमेज कंट्रोल में दलालों की पो बाराह रही ,, लेकिन एक जुट वोट , जो सिर्फ कांग्रेस के लिये ही आरक्षित थे उनके बिखरने का खतरा बना हुआ है , एक ज़रा सी अल्पसंख्यक विभाग की उपेक्षित व्यवस्था के चलते , अंता उप चुनाव में कांग्रेस की एक तरफा जीत कड़े से भी कड़े मुक़ाबले पर आ टिकी है , एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के उम्मीदवार है , तो दूसरी तरफ नरेश मीणा निर्दलीय है एक अन्य है , लेकिन मुक़ाबला तो चतुर्कोणीय नहीं त्रिकोणीय ही संभावित है ,एक एक वोट क़ीमती है , और एक थोक वर्ग का वोट जो सीधा बाइस हज़ार की बढ़त दिलवाता था , वोह असमंजस में हो जाने से या कहो के वोह उनके ऊपर हुए ज़ुल्म ज़्यादती के वक़्त उनकी मदद के मामले में उपेक्षित रुख से वोह हताहत हैं , नाराज़ है , सियासी प्रतिनिधित्व , संगठन में प्रतिनिधित्व , सरकार अगर होती है , तो प्रसाद पर्यन्त पदों में उन्हें नियुक्ति मिलना चाहिए थी इस घोर उपेक्षा पर अब वहां चर्चा होने लगी है , दूसरी तरफ निर्दलीय उम्मीदवार ऐसे नाराज़ वोटर्स को फंसाने के लिये, फंदा डालकर बैठे हैं , तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के सिपहसालार ,, मोर्चा संभाले हुए है , दो तीन हज़ार वोट भी बिखरे तो समझ लो , किनारे पर आकर ही तीन अंकों वोह भी न्यूनतम तीन अंकों की गिनती से मुक़ाबला डूब जाने जैसी स्थिति के असमंजस का है , अब डेमेज कंट्रोल के लिए अल्पसंख्यकों के विधायक , नेताओं को बुलाया भी जा रहा है , लेकिन वोह जब अल्पसंख्यकों को उनकी ज़रूरत थी तब कहाँ थे , क्यों रमज़ान के परिजनों को इंसाफ नहीं दिया क्यों सरकारी और संगठन के पदों में हिस्सेदारी में हक़ नहीं दिया , इन सवालों का क्या जवाब देंगे , और फिर अगर कांग्रेस हार गई तो डराने के लिए भी कुछ ख़ास नहीं है ,, क्योंकि अब यह वर्ग डर के मारे अपने वोट को बिगाड़ता नहीं , ,खुलकर अपने हक़ के लिए इस्तेमाल करना चाहता है , जो बुरे वक़्त में उनका मददगार रहा उसी का साथी बनना चाहता है और जिसने बुरे वक़्त में डबल क्रॉस किया , उपेक्षा की , नज़र अंदाज़ किया उसे तो मज़ा चखाने वालों की संख्या ज़ीरो प्रतिशत से , दस प्रतिशत तक बढ़ती जा रही है , इन वोटर्स में हिम्मत आ रही है, इसलिए कांग्रेस ने अगर वक़्त चलते अपने अल्पसंख्यक विभाग को या तो भंग नहीं किया या , फिर अल्पसंख्यकों के हर ज़िले वार , ब्लॉकवार , राज्यवार , मुद्दों पर उनका ईमानदारी से मददगार नहीं बनाया दुखदर्द का साथी नहीं बनाया तो फिर यह ट्रेंड पूरे राजस्थान फिर पूरे देश में दुखदाई होगा , इसलिए वक़्त रहते अल्पसंख्यक विभाग में ईमानदार , कर्मठ , ज़मीन से जुड़े लोग , जो अगर कांग्रेस में भी अल्पसंख्यकों की उपेक्षा कर रहा है , अत्याचार कर रहा है , तो आँखों में आँखें डालकर ,, इन्साफ का संघर्ष करने की ताक़त रखता हो , ऐसे लोग अगर आगे आये तो भविष्य सुरक्षित है , नहीं तो उत्तर प्रदेश , बिहार , आसाम , पश्चिमी बंगाल ,, गुजरात ,, उड़ीसा , आंध्रा ,, केरल तो हम देखते ही आ रहे हैं , फिर मत कहना के यह आग अगर अंदर भड़क रही थी , तो एक सच्चे कोंग्रेसी होने के नाते पहले चेताया क्यों नहीं ,,बारां ज़िले की इस अंता मांगरोल विधानसभा में मुख्यमंत्री भजनलाल, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित , सांसद दुष्यंत, कई सांसद, विधायकों, भाजपा, कोंग्रेस के नेताओं की साख दांव पर लगी है, लेकिन जिन्होंने यह सोचा के यह वोटर तो अपने हैं जाएंगे कहां, ओर दुख सुख में खुले रूप से ईमानदारी से साथी नहीं बने, सियासी ओर संगठन में उचित प्रतिनिधित्व में हक़ नहीं दिया तो फिर मत कहना चिड़िया चुग गई खेत, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)