अखण्ड टाइम्स संवाददाता का साक्षात्कार :
Akhtar Khan Akela
अख़्तर खान अकेला से बातचीत
#संवाददाता: अख़्तर साहब, सबसे पहले यही पूछना चाहूँगा कि कोटा मेले से मुशायरे को हटाने पर आपका शुरुआती रिएक्शन क्या था?
अख़्तर खान अकेला: देखिए, यह केवल एक कार्यक्रम हटाने का मामला नहीं है। यह हमारी तहज़ीब, हमारी भाषा, और हमारे अदब पर सीधा हमला है। दशकों से यहाँ क़व्वाली, ग़ज़ल और मुशायरे होते आए हैं। अचानक इन्हें डिलीस्ट करना संविधान की भावना और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ़ है।
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संवाददाता: लेकिन विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस नेताओं की चुप्पी भी सवाल खड़े कर रही है। आपका क्या मानना है?
अख़्तर खान अकेला: बिल्कुल! यही तो सबसे बड़ा दुख है। जो लोग जनता के वोटों से आते हैं, वही इस मुद्दे पर खामोश हैं। पूर्व मंत्री, विधायक, महापौर—सब चुप। कांग्रेस रस्म-अदायगी में लगी रही। अब जिम्मेदारी सिर्फ राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विभाग और उसके अध्यक्ष इमरान प्रतापगढ़ी पर डाल दी गई है।
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संवाददाता: आपने इमरान प्रतापगढ़ी से बात की। उनकी प्रतिक्रिया कैसी रही?
अख़्तर खान अकेला: जी हाँ, मैंने उन्हें टेलीफ़ोनिक बातचीत में पूरी स्थिति बताई। मैंने उनसे कहा कि वे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी और राज्यपाल से बात करें। साथ ही मैंने सुझाव दिया कि कोटा में जल्द से जल्द क़ौमी एकता संगम का राष्ट्रीय तहज़ीबी मुशायरा आयोजित किया जाए। यह सबसे अच्छा जवाब होगा उन लोगों को जो हमारी तहज़ीब से दुश्मनी रखते हैं।
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संवाददाता: कुछ लोग कह रहे हैं कि यह राजनीतिक द्वेष का नतीजा है। आप सहमत हैं?
अख़्तर खान अकेला: बिल्कुल। यह सब व्यक्तिगत खुन्नस और नफरत का नतीजा है। जब संविधान सबको बराबरी देता है, तो किसी धर्म, भाषा या अदब को मेले से बाहर करना ग़ैर-संवैधानिक है। और यह सब लोकसभा अध्यक्ष के संसदीय क्षेत्र में हो रहा है, जो और भी चिंताजनक है।
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संवाददाता: आगे की कार्ययोजना क्या होगी? अगर सुनवाई न हुई तो?
अख़्तर खान अकेला: मैंने साफ़ कहा है—अगर इस मामले में सुधार नहीं होता, तो कांग्रेस की राष्ट्रीय लीगल सेल को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जाकर इंसाफ़ की लड़ाई लड़नी चाहिए। और अगर फिर भी मुशायरा नहीं होता, तो हम खुद राष्ट्रीय स्तर का बड़ा मुशायरा आयोजित करेंगे, ताकि सबको समझ आ जाए कि अदब और तहज़ीब किसी सत्ता की मोहताज नहीं।
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संवाददाता: आख़िरी सवाल—आप इस पूरे विवाद को कैसे याद रखना चाहेंगे?
अख़्तर खान अकेला: इसे मैं लोकतंत्र और तहज़ीब की अग्निपरीक्षा मानता हूँ। अगर हम चुप रहे तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा। और अगर हम खड़े हुए तो आने वाली पीढ़ियाँ कहेंगी—"कोटा ने अदब और तहज़ीब के लिए आवाज़ उठाई थी।"
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अखंड टाइम संवाददाता का अ
ख़्तर खान अकेला से साक्षात्कार।
Arun Unfiltered
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