For God says ग़रीबों को ना सताओ, अगर ये अतिक्रमी भी हैं तो क्या इन्हें मानव गरीमा युक्त जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार नहीं है?
क्या देश की ज़मीन और संसाधनों पर इनका कोई अधिकार नहीं है?
दिल्ली में चुनाव नहीं है तो क्या राजनीतिक दलों की दिल्ली वालों के लिये कोई जिम्मेदारी नहीं है?
क्या विपक्ष की चुप्पी और सत्ता का आम आदमी के साथ व्यवहार भारतीय संविधान की मूल भावना को आहत करने वाला नहीं है?
क्या देश की सभी ज़मींनो और संसाधनों पर सरकार और सरकारियों का हक़ अधिकार रह गया है?
लोगों से उनकी सम्पत्तियां छीनी जा रही हैं, नागरिकता छीनी जा रही है लेकिन विपक्ष कहीं नही है, विरोध टीवी डिबेटों तक सिमट कर रह गया है।
विपक्ष खास तौर से राहुल गांधी अर्थात् कांग्रेस से अनुरोध है कि कृपया मोहब्बत की दुकान ऐसी लगे शौरूम तक सीमित ना रखें, मोहब्बत की दुकान यहां नहीं चलेगी, इसे सड़कों पर लायें, ये ग़रीब बस्तियां में चलेगी, इसे ग़रीबों, किसानों, दलितों और अल्पसंख्यकों की पहुंच से बाहर ना रखें।
सिर्फ चुनावों के लिये सतही सक्रियता से लोकतंत्र का भला नहीं होगा, देश का भला नहीं होगा, देश के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, संविधान की रक्षा नहीं की जा सकेगी।
--हलीम "रैहान"
एडवोकेट
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