लोगों को हर वक़्त हंसाने वाले पीरज़ादा, सज्जादा नशीन , अज़ीज़ जावा, कोटा को रुला कर चले गए,
कोटा 1 जून, जो ज़िंदा दिल हुआ करते हैं , वोह मर कर भी लोगों के दिलों में ज़िंदा रहा करते हैं , जो अज़ीज़ हुआ करते हैं , वोह हर दिल अज़ीज़ रहा करते हैं , जो , जावा मोटर साइकिल के एक मात्र ज़िम्मेदार , दमदार इंजीयनियर हुआ करते हैं ,वोह अज़ीज़ से अज़ीज़ जावा हुआ करते हैं , जी हां दोस्तों में बात कर रहा हूँ, लोगों के बीच ठहाकों के साथ , ज़िंदा दिली का अहसास छोड़ने वाले हाजी अज़ीज़ जावा की , जिन्हे अल्लाह ने हम से अचानक बिना किसी , दुःख तकलीफ के छीन लिया , अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुक़ाम अता फरमाए , कोटा की सर ज़मीन पर ही नहीं , देश भर के अलग अलग आस्थानों में , मुंगावली , भोपाल , कलियर शरीफ ,, पीर साहब के नाम से मशहूर , हज़रत अज़ीज़ जावा साहब को कौन नहीं जनता , उम्र चाहे छियासी की हो , लेकिन 39 साल की जवानी पर आकर , वोह रुक गए थे, ओर इसी उम्र के मिजाज में, , खुशमिजाज़ी के साथ , यारों के यार बनकर महफिलों की रौनक बनने वाले अज़ीज़ जावा साहब ,लोगों को हंसाते थे , गुदगुदाते थे , हिम्मत दिलाते थे , मोहब्बत और खुलूस के साथ , अपना खास बनाते थे , ,अपने जीवन काल में , एक जावा मोटर साइकल के इंजीनियर मिस्त्री के नाते उन्होंने कोटा में हर मोटरसाईकल का इलाज किया , एक वक़्त था , के इनके यहां लाइन लगकर लोग अपनी मोटरसाइकलें ठीक करवाते थे , फिर इनका नाम अज़ीज़ से अज़ीज़ जावा बन गया , वालिद हमदर्द दवाखाना चलाते थे , इसीलिये आप हिकमत और दवाओं के मामलों में भी काफी जानकार थे , , बचपन में वालिद के साथ , ऊँगली पकड़ कर , हज़रत अहमद अली उर्फ़ जंगली शाह बाबा के यहाँ आते थे , उनसे सीखते थे , उनकी खिदमत करते थे , उनके बार बार ,पैदल जाने के हज , और रूहानियत के सूफियाना क़िस्से सुना करते थे , बस बाबा साहब के इन्तिक़ाल के बाद , उनकी वल्ल्भ नगर सोफिया स्कूल के पास , बढ़ी दरगाह बनाई गई , हर साल बाबा साहब के उर्स बहतरीन तरीके से करवाए जाने लगे , देश भर के मशहूर महंगे क़व्वालों के साथ , उर्स के दिनों में यहां , जंगल में मंगल के नाम पर, मेला लगने लगा ,फिर वक़्त बदला ,, तो उर्स में क़व्वालियों के साथ , उर्दू अदब को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय मुशायरे की शुरुआत हुई , देश भर के मशहूर शायर जो कोटा मेले दशहरे में लाखों रुपयों में भी आने से इंकार कर देते हैं , वोह मशहूर शायर हाजी अज़ीज़ जावा साहब के एक बुलावे पर ,, बिना किसी हील हुज्जत के इनकी मोहब्बत में कोटा पहुंच कर अपनी शायरी को न्योछावर कर देते थे , ,हाजी अज़ीज़ जावा , मौलाना असारुल हक़ , जो राज्य सभा सांसद के साथ , पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रा गांधी के निकटतम थे , उनके साथ इनकी नज़दीकियां , उनके कामकाज में इनका सहयोग , इन्हे दिल्ली से लेकर जयपुर कोटा के लोगों का मददगार बनाता रहा , इनकी जीप में बढे बढे मंत्रियों का सफर होता रहा , यह मुस्कुराते रहे , खिलखिलाते रहे , ठहाके लगाते रहे और , अपने दोस्तों , साथियों के साथ खुजमिज़ाज़ माहौल में , पार्टियों के आयोजक बनते रहे , बहतरीन शायर , बहतरीन अदाकार , बेहतरीन क़व्वाल , साहित्य की समझ रखने वाले , अज़ीज़ जावा , मुंबई का सफर करते थे , तो फिल्म इंडस्ट्रीज़ में फ़िल्मी कलाकारों के हमजोली, साथी बन जाते थे , मशहूर राष्ट्रिय ही नहीं , अंतराष्ट्रीय क़व्वालों को , कोटा दावत देकर बुलाते थे , और हज़ारों की सख्या में लोग उनकी क़व्वाली का लुत्फ़ दीवानगी की हदें पार करके उठाते थे , ,अज़ीज़ जावा की दूर की सोच थी , वोह जंगली शाह बाबा परिसर में , एक यतीम खाना , एक मदरसा , मल्टीस्पेशिलिटी हॉस्पिटल, अपनी ज़िंदगी में बनाना चाहते थे , उन्होंने इसके लिए , नगर निगम , नगर विकास न्यास , सांसद दुर्रू मिया , सांसद अबरार अहमद , विधायक कोष और निजी लोगों की मदद से , अपने अथक प्रयासों से रात दिन एक करके , बाबा जंगलिशाह परिसर भंवर शाह तकिया में , इमारतें बनवाईं , महफ़िल खाना बनवाया , दरगाह परिसर को आधुनिकीकृत करवाया , महफ़िल खाने के ऊपर कमरे बनवाये , इनकी सोच थी , के आम ज़रूरत मंद मुस्लिम भाई अपने छोटे बढे फंक्शन , ,साफ़ सफाई के खर्च में ही , यहां कर ले, इसीलिए , महफ़िल खाना बनने के बाद , सिर्फ साफ़ सफाई के खर्च के बदले , ,अज़ीज़ जावा ने कोटा के आम लोगों के लिए महफ़िल खाने के दरवाज़े खोल दिए और ज़रूरतमंद गरीब लोग , इस मुफ्त , साफ़ सफाई खर्च के बदले महफ़िल खाने में अपने बढे से बढे फंक्शन करने लगे , लेकिन अचानक इस व्यवस्था को , वक़्फ़ ने अपने नियंत्रण में ले लिया और फिर , साफ़ सफाई के खर्च की जगह ,, जबरिया दान रसीद ,, पांच हज़ार रूपये , साफ़ सफाई खर्च , बिजली जनरेटर खर्च और ,,महंगे टेंट के किराए के नाम पर, यह महफ़िल खाना गरीबों की जगह अमीरों की कॉमर्शियल कमाई की महफ़िल बन गया , ,अज़ीज़ जावा ज़िंदा दिली के साथ , दबंग थे , ज़िम्मेदार थे , अपने हक़ के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ने का जज़्बा रखते थे , ,महफ़िल खाने पर जब वक़्फ़ के क़ब्ज़ाने की बात हुई तो इनके खून पसीने से ,, कढ़ी महनत से बनाये गए इस महफ़िल खाने को , कॉमर्शियल और कमाई का ज़रिया बनने से रोकने के लिए इन्होने जद्दो जहद की , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में , जब वोह महफ़िल खाने के विस्तार का लोकार्पण करने आने वाले थे , तो अज़ीज़ जावा उन्हें ज्ञापन देकर सच से अवगत कराना चाहते थे , लेकिन मुखबिरों ने सी आई डी को गलत सुचना दी , और इन्हे अशोक गहलोत की यात्रा के वक़्त ,, इन्ही के हुजरे में, नज़र बंद करने के बाद ही मुख्यमंत्री का कार्यक्रम करवाया गया ,, कितने ही बढे सुरक्षा के घेरे में रहने वाले मंत्री हों , पार्टियों के नेता हों , यह कभी उनसे डरे नहीं ,, आँख में आँख मिलाकर उनसे सवाल जवाब करने की हिम्मत रखने वाली यह शख्सियत आज भी याद है , जिसने एक मंत्री को ,,काफी खरी खोटी सूना कर , अलग थलग कर दिया था , ,अज़ीज़ी जावा किसी पार्टी , किसी दल के नहीं थे , वोह कांग्रेस में भी थे , तो भाजपा में भी थे , तो राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच में भी थे , क्योंकि नितिन गडकरी केंद्रीय मंत्री नागपुर के वली शाह की एक बढ़ी दरगाह के दिल से खिदमतगार हैं , जहाँ यह भी जाते रहे और इसीलिए अज़ीज़ जावा की नितिन गडकरी से , वहां पहुंचने वाले संघ के इंद्रेश जी से , और कई कांग्रेस भाजपा के मंत्रियों से रूबरू मुलाक़ात रही , , मेरी अज़ीज़ जावा साहब से रोज़ नियमित बातचीत होती थी , हफ्ते में एक आध बार हम रूबरू मिला भी करते थे , अभी कल ही तो उन्होंने आजिज़ी से याद करते हुए दावत का इसरार किया था , लेकिन वक़्त की किल्ल्त की वजह से उनसे दूसरे दिन आने की इल्तिजा की ,, किसे पता था , के वोह दूसरा दिन आएगा ही नहीं , यक़ीनन , कोटा की सूफियाना , पीरी, फ़क़ीरी ,,इस शख्सियत के दुनिया से, उनके अचानक इस तरह चले जाने से ,,, बहुत बढ़ा नुक़सान है ,, जिसकी भरपाई मुश्किल ही नहीं ,, ना मुमकिन है , ,यूँ तो उन्होंने अपनी ज़िंदगी में , सज्जादा नशीन रहते हुए , बढे साहिबज़ादे , फ़ारुक़ होंडा को , जंगलीशाह बाबा दरगाह का गद्दी नशीन बना दिया था , लेकिन देश भर से आने वाले मुरीद ,, उनसे मोहब्बत रखने वाले ज़ायरीनों का वोह जिस तरह से मेज़बान बनकर ख्याल रखते थे , शायद वोह उनके लिए अब यादगार रहे , अज़ीज़ जावा कहते थे , के अल्लाह ने उन्हें विश्व का सबसे मालदार शख्सियत बनाया है , क्योंकि , उनके बच्चे , उनकी बेटियां ,दामाद , पोते , पोतियां , नवासे , और भाई , भतीजे , मरते दम तक उनके इशारों पर चलने वाले रहे , एक लकीर खेंचने के बाद ,, किसी ने भी उस लकीर को कभी उंघाला हो ऐसा कोई वाक़िया सामने नहीं आया , बस अपनी बैठक , अपना हुजरा, एक टेलीफोन , एक इशारा बेटे को , बहु ,, को दोस्तों को , किया, और जो चाहा वोह हो गया , ,उनके परिवार, मुरीद , मित्रजनों, , सभी के मुंह पर हां बाबूजी , हां बाबूजी , जैसा आप कहो , वैसा बाबूजी ,बस सर पर हाथ रखवाया एक तरफ बैठ गए यही मोहब्बत ,, यही सआदतमंदी ,, उन्हें सभी से अलग , खास से भी खास बना देती है , अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुक़ाम अता फरमाए ,,, उनके बच्चों , मुरीदों , चाहने वालों , रिश्तेदारों , नातेदारों को , सब्र अता फरमाए ,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
akhtar khan akela

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)