[पंडित जी मसनद लगाकर बैठे हैं, सामने हुक्का रखे, और #रमजानी_भाई बड़े जोश में फेसबुक पोस्ट लेकर आ पहुँचे…]
“पंडित जी, सुनिए! देखिए! ये
Akhtar Khan Akela
अख्तर खान अकेला साहब की फेसबुक पोस्ट है — वायरल हो रही है!
लिखा है — ‘हादसे इतने हैं मेरे वतन में… अखबारों को निचोड़ो तो खून निकलता है… बिकते हैं न्यूज़ चैनल, बिकते हैं अखबार, ओरिजनल पत्रकार रोने को मजबूर होते हैं… और पत्रकारिता दिवस पर बिकाऊ मुर्दों को भी मुबारकबाद देनी पड़ती है।’
पंडित जी, इस पर आपका क्या विचार?”
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[पंडित जी, एक लंबा ‘हुंह’ करके, हुक्के का कश खींचते हैं]
“अरे रे रे… रमजानी भाई! क्या कड़वा सच ले आए हो आज!
कहावत याद आई — ‘कड़वी दवा, सबसे असरदार।’
ये अख्तर खान अकेला साहब की पोस्ट कड़वी ज़रूर है, लेकिन दवा की तरह है भैया, नींद से जगाने वाली!
देखो —
आजकल न्यूज़ चैनल क्या दिखाते हैं?
‘तोता नाच गया, बिल्ली भाग गई, नेता थिरक गया!’
हादसे, मर्ज, महँगाई, बेकारी — सब किनारे।
और जो बेचारा असली पत्रकार है, जिसने सच दिखाने की कसम खाई — वो चैनलों से बाहर, अखबारों में हाशिए पर, या सोशल मीडिया पे भटक रहा है।
रमजानी भाई (गुस्से में):
“हां पंडित जी, असली पत्रकार डरा हुआ है! अल्पसंख्यक पत्रकार तो दुगना डरा है — कहीं नाम लो, तो ऊपर से नीचे तक जाँच बैठ जाती है!”
पंडित जी (सिर हिलाते हुए):
“सही कह रहे हो, रमजानी भाई!
कहावत है — ‘असली मोती की क़दर मोती जानता है, व्यापारी नहीं।’
आज असली पत्रकारों की क़दर न सरकार कर रही, न चैनल, न मालिक। वो बेचारे अपने जमीर के आगे रोते हैं, और ऊपर से ‘पत्रकारिता दिवस’ पर उन्हीं को मुबारकबाद देनी पड़ती है, जो दिन-रात बिके हुए हैं!
लेकिन सुनो…
पंडित जी कहते हैं —
‘ये वक़्त भी बदलेगा।’
क्योंकि इतिहास गवाह है — झूठ हमेशा ताकतवर दिखा, लेकिन आख़िर में सच ही जीता।
चाणक्य से लेकर गांधी तक, कबीर से लेकर कलाम तक — सबने ये ही कहा:
‘सच बोल, चाहे अकेला पड़ जाए, लेकिन झूठ के पीछे मत भाग।’
रमजानी भाई, अख्तर खान अकेला की इस पोस्ट में सिर्फ अल्पसंख्यकों की बात नहीं है, ये हर उस आवाज़ की बात है जो आज दम घुटने के कगार पर है — और पंडित जी उन सबको एक ही मंत्र देते हैं:
‘डटे रहो, सच्चाई की मशाल लिए रहो, आँधियाँ आएँगी, लेकिन बुझने मत देना!’
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[पंडित जी मुस्कुराते हैं, हुक्का रखते हैं, और बोले:]
“चलो रमजानी भाई, अगली बार ऐसी ही कोई कड़वी पोस्ट लेकर आना, ताकि जमीर की नींद खुलती रहे!
जय सत्य, जय पत्रकारिता!”
Arun Unfiltered
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