सदियों, बेरुखी सहती मिट्टी ने मुहब्बत चखी..
रुखे होठ प्यास की जुबान बोले
और ..
एहसास के दरिया मे
जिन्दगी तर हुई
मिट्टी ने जवानी देखी
धूप मे पसरी मुहब्बत
रुहों ने समेटा
अब मिट्टी के समय के सफ़हे कोरे नही थे ..
मौसम ने
हरे नर्म पत्तियों की कलम से मुहब्बत लिखी
पर मिट्टी की मुहब्बत मौसम के संग..!!
थोड़ी बेतुकी थी ...
हजारों उलझनें ,तमाम मसअले ..
मिट्टी के एक रंग, मौसम के जाने कितने
अब मौसम ने समझदारी सीखी
हिसाब जोड़ा घटाया पाया..
मिट्टी से गंदे होने का डर सताया ..
मौसम ने समझदारी दिखाई
और मिट्टी से मुहब्बत तोड़ी ..
समझदारी कहां मुहब्बत करने देती है....
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