तुम एक इंतज़ार ही तो हो...!!
वो जो दो धड़कनों के बीच में
वक़्त होता है न
खाली सा, शांत सा, जिसमें शून्य रहता है
मगर जिसमें अगली धड़कन की उम्मीद होती है
पलकें जब झपक कर खुलतीं हैं,
तो किसी को ढूंढती हैं
ये जो बंद हो कर खुलने का सिलसिला है न,
इसे तलाश कहते हैं
तुम वो हो...
सड़क को देखा है कभी,
हमेशा चलती रहती है
लोग रुकते हैं,
कहीं मुड़ने के लिए,
किसी और सड़क से जुड़ने के लिए
वो इंतज़ार जो वो सड़क करती है
किसी के लौटने का
तुम वो हो...
हाँ, तुम एक इंतज़ार ही तो हो..

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