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26 मार्च 2025

अखंड टाइम्स एक्सक्लूसिव साक्षात्कार: कोटा कोचिंग माफिया, छात्रों की मानसिक स्थिति और शिक्षा की गिरती साख

 

अखंड टाइम्स एक्सक्लूसिव साक्षात्कार: कोटा कोचिंग माफिया, छात्रों की मानसिक स्थिति और शिक्षा की गिरती साख
संवाददाता: अख्तर खान अकेला जी, नमस्ते। कोटा और सीकर जैसे शहर कभी शिक्षा के केंद्र माने जाते थे, लेकिन आज वहां आत्महत्याओं की ख़बरें आम हो गई हैं। हाल ही में बिहार के एक छात्र की आत्महत्या ने फिर इस संकट को उजागर कर दिया है। आप इस स्थिति को कैसे देखते हैं?
अख्तर खान अकेला: नमस्ते। यह बेहद दुखद है। कोटा आज शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि एक मानसिक तनाव का दोज़ख बन चुका है। कोचिंग संस्थानों की मनमानी और बेतहाशा दबाव ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है। माता-पिता अपनी जमा-पूंजी झोंककर बच्चों को यहां भेजते हैं, और बदले में उन्हें मिलता है—अत्यधिक तनाव, अकेलापन, अवसाद और कभी-कभी मौत। आत्महत्या की बढ़ती घटनाएँ सिर्फ एक संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित लूटतंत्र का परिणाम हैं।
संवाददाता: आपने कोचिंग माफिया और सरकारी निष्क्रियता की बात की। क्या कोचिंग रेगुलेशन बिल इस स्थिति को सुधार सकता था?
अख्तर खान अकेला: यह बिल कागजों में तो बना, लेकिन कोचिंग लॉबी के सामने सरकारें घुटने टेक चुकी हैं। कांग्रेस और भाजपा, दोनों की मिलीभगत के चलते यह बिल विधानसभा में प्रवर समिति के हवाले कर दिया गया और वहीं दफन हो गया। कोचिंग संचालकों की ताकत इतनी है कि वे सियासत को अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं। विज्ञापनों की मोटी कमाई के चलते अख़बार भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं।
संवाददाता: क्या कोर्ट ने इस मामले में कोई सख्त कदम उठाया है?
अख्तर खान अकेला: राजस्थान हाईकोर्ट ने 2016 में इस मुद्दे पर स्वप्रेरित संज्ञान लिया था। अब तक 65 से ज्यादा निर्देश जारी किए जा चुके हैं, लेकिन प्रशासन ने कभी इन पर अमल नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में एक नेशनल टास्क फोर्स बनाने और आत्महत्या करने वाले छात्रों के परिजनों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन कोटा और सीकर में इसे लागू करने की हिम्मत किसी में नहीं। प्रशासन बच्चों के साथ लंच कर फोटो खिंचवाने तक सीमित है, लेकिन कोचिंग संस्थानों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता।
संवाददाता: कोचिंग संस्थानों के इस बेतहाशा दबाव का छात्रों की मानसिक स्थिति पर क्या असर हो रहा है?
अख्तर खान अकेला: बच्चे रोबोट बन चुके हैं। पढ़ाई के अलावा उन्हें कुछ भी सोचने-समझने का वक्त नहीं दिया जाता। 12-14 घंटे की पढ़ाई, डमी एडमिशन के नाम पर स्कूली शिक्षा का मज़ाक, और लगातार रिजल्ट का दबाव—इन सबने एक संपूर्ण पीढ़ी को मानसिक रूप से अस्थिर कर दिया है। आत्मविश्वास की जगह डर, प्रेरणा की जगह हताशा, और सपनों की जगह मौत की सोच ने ले ली है।
संवाददाता: कोटा शहर का परिदृश्य भी बदला है। पहले यह शिक्षा का केंद्र था, अब प्रॉपर्टी डीलरों और हॉस्टलों का गढ़ बन गया है।
अख्तर खान अकेला: कोटा अब एक कब्रिस्तान जैसा नजर आता है—जहाँ हर गली में हॉस्टल, हर नुक्कड़ पर पीजी, और हर दीवार पर कोचिंग के विज्ञापन हैं। मकान मालिक, प्रॉपर्टी डीलर, और कोचिंग संचालक करोड़ों में खेल रहे हैं, लेकिन छात्रों और मध्यम वर्गीय परिवारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। शिक्षा एक व्यवसाय बन गई है, और इसमें बड़े-बड़े सियासी नेता, बिल्डर, और कोचिंग माफिया शामिल हैं।
संवाददाता: इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है?
अख्तर खान अकेला: पहला कदम है कोचिंग रेगुलेशन बिल को सख्ती से लागू करना। कोचिंग संस्थानों के लिए पढ़ाई के घंटे तय किए जाएं, फीस को नियंत्रित किया जाए, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए और छात्रों के लिए हेल्पलाइन चलाई जाए। दूसरे, स्कूली शिक्षा को पुनर्जीवित करना होगा—डमी एडमिशन की परंपरा खत्म करनी होगी और स्कूलों में ही मजबूत शिक्षण व्यवस्था स्थापित करनी होगी। तीसरा, प्रशासन को अपनी निष्क्रियता छोड़नी होगी और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना होगा।
संवाददाता: क्या आपको लगता है कि सरकार या प्रशासन इसमें गंभीरता दिखाएंगे?
अख्तर खान अकेला: जब तक कोचिंग लॉबी के खिलाफ सख्त राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाती, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। हमें शिक्षा को व्यवसाय नहीं, बल्कि सेवा के रूप में देखना होगा। नहीं तो आने वाले वर्षों में हम सिर्फ आंकड़े गिनते रह जाएंगे—"आज फिर एक और छात्र ने आत्महत्या कर ली।"
संवाददाता: आपका समय देने के लिए धन्यवाद, अख्तर खान अकेला जी। आशा है कि यह आवाज़ ऊपर तक पहुंचेगी।
अख्तर खान अकेला: धन्यवाद। उम्मीद है कि बदलाव आएगा, लेकिन उसके लिए इच्छाशक्ति और सख्त कदम जरूरी हैं।

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