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01 नवंबर 2024

बेशक इन्सान पर एक ऐसा वक़्त आ चुका है कि वह कोई चीज़ क़ाबिले जि़क्र न था (1)

सूरए अद दहर मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी इकतीस (31) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
बेशक इन्सान पर एक ऐसा वक़्त आ चुका है कि वह कोई चीज़ क़ाबिले जि़क्र न था (1)
हमने इन्सान को मख़लूत नुत्फे़ से पैदा किया कि उसे आज़माये तो हमने उसे सुनता देखता बनाया (2)
और उसको रास्ता भी दिखा दिया (अब वह) ख़्वाह शुक्र गुज़ार हो ख़्वाह न शुक्रा (3)
हमने काफि़रों के ज़ंजीरे, तौक और दहकती हुयी आग तैयार कर रखी है (4)
बेशक नेकोकार लोग शराब के वह सागर पियेंगे जिसमें काफू़र की आमेजि़श होगी ये एक चश्मा है जिसमें से ख़ुदा के (ख़ास) बन्दे पियेंगे (5)
और जहाँ चाहेंगे बहा ले जाएँगे (6)
ये वह लोग हैं जो नज़रें पूरी करते हैं और उस दिन से जिनकी सख़्ती हर तरह फैली होगी डरते हैं (7)
और उसकी मोहब्बत में मोहताज और यतीम और असीर को खाना खिलाते हैं (8)
(और कहते हैं कि) हम तो तुमको बस ख़ालिस ख़ुदा के लिए खिलाते हैं हम न तुम से बदले के ख़ास्तगार हैं और न शुक्र गुज़ारी के (9)
हमको तो अपने परवरदिगार से उस दिन का डर है जिसमें मुँह बन जाएँगे (और) चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती होंगी (10)

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