75 सूरए अल कियामह
सूरए अल कियामह मक्के में नाजि़ल हुआ और इसकी चालीस (40) आयतें है ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
मैं रोजे़ क़यामत की क़सम खाता हूँ (1)
(और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा) ज़रूर जि़न्दा किए जाओगे (2)
क्या इन्सान ये ख़्याल करता है (कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बाद) जमा न करेंगे हाँ (ज़रूर करेंगें) (3)
हम इस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर पोर दुरूस्त करें (4)
मगर इन्सान तो ये जानता है कि अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए (5)
पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा (6)
तो जब आँखे चकाचैन्ध में आ जाएँगी (7)
और चाँद गहन में लग जाएगा (8)
और सूरज और चाँद इकट्ठा कर दिए जाएँगे (9)
तो इन्सान कहेगा आज कहाँ भाग कर जाऊँ (10)
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