कोटा मोटर यान दुर्घटना क्लेम मामले चाहे दिव्यांगों के हों ,चाहे मृतक आश्रितों के भाजपा के मोटर क़ानून संशोधन के बाद मियाद बाहर होने से , मुआवज़ा पाने के लिए प्रार्थना पत्र पेश करने के बाद भी , मियाद की शर्त अधिरोपित होने से अटके पढ़े हैं ,, , ,उन्हें न्याय कब देगी मोदी सरकार ,,
कोटा के मोटर यान दुर्घटना मामलों के विशेषज्ञ एडवोकेट परमेश्वर दाधीच ने लोकसभा अध्यक्ष ओम जी बिरला से इस मामले में संशोधन करने की मार्मिक अपील की है ,,
कोटा ,,, मोटर दुर्घटना में घायल होकर दिव्यांग हुए लोगों , मृतकों के परिजनों के साथ , मोटर दुर्घटना क्लेम मामले में , भारत की मोदी सरकार ने , मोटर यान दुर्घटना अधिनियम में , कांग्रेस द्वारा मियाद की जो समय सीमा हटा दी गई थी, उसे फिर से छह माह का करने से हज़ारों हज़ार नहीं लाखों लाख लोग विकलांग, घायल ,मृतक के आश्रित परिजन , अब तक क्लेम पाने से वंचित हैं ,जबकि राष्ट्रिय लोक अदालतों में , अरबों रूपये के क्लेम सेटल हुए हैं , ,,,इसमें संशोधन न तो भाजपा करती है ,ना ही कांग्रेस और प्रतिपक्ष के लोग इस तरफ कोई आवाज़ उठा रहे हैं ,, ,,
मोटर यान दुर्घटना में गंभीर घायल होकर विकलांग होने वाले , अपने परिवार के कमाई के सदस्य को खो देने वालों के आश्रित परिजनों के लिए ,, केंद्र सरकार ने , मोटर यान दुर्घटना अधिनियम बना कर , पीड़ितों को तत्काल राहत देकर मुआवज़ा देने का क़ानून बनाया था , लेकिन वर्तमान सरकार ने इस क़ानून को पीड़ितों से कोसों दूर करने का प्रयास किया है , मियाद अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत , छह माह की समयावधि के बाद पेश होने वाले प्रार्थना पत्रों के लिए प्रावधान ही खत्म ही कर दिए गए हैं , देश जानता है , देश का बच्चा बच्चा जानता है , के किसी घर में दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद, पूरा परिवार सदमे में होता है , छह माह के अंतराल में तो , उसे होश भी नहीं रह पाता के वोह कोई मुक़दमा करे , दूसरी बात विकलांग अगर कोई हो गया , किसी का पैर ,, किसी का हाथ कट गया , या टूट गया , तो उक्त समयावधि में तो वोह इलाज भी पूरी तरह से नहीं करवा पाता , इधर ,, उधर अस्पतालों में दौड़ता रहता है , ,इसीलिए , केंद्र में पूर्व कांग्रेस की सरकार ने , दो बढे संशोधन किये थे , जिसमे , दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति ,या दुर्घटना में मृतक के परिजन कहीं भी रह रहे हों , वहां मुक़दमा कर मुआवज़ा प्राप्त कर लें , और समयावधि की पाबंदी भी नहीं थी , लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार ने 1 सितम्बर 2019 को मोटर व्हीकल एक्ट में मुआवज़ा प्रावधान 166 बीमा कंपनियों ,, ट्रांसपोर्टर्स के दबाव में आकर , संशोधित कर दिया , और दुर्घटना तिथि से मुआवज़े के लिए न्यायाधिकरण के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश करने की समयावधि फिर से छह माह कर दी गई , अब एक तरफ तो , दुर्घटना होते ही , एफ आई आर संबंधित दस्तावेज थानाधिकारी ,द्वारा मोटर यान दुर्घटना क्षेत्राधिकार में पेश करने का नियम है , लेकिन थानाधिकारी , उक्त एफ आई आर दस्तावेज भेजते हैं या नहीं , फिर इन दस्तावेजों के आधार पर प्राधिकरण को तत्काल कार्यवाही करने का नियम है , जो भी नहीं ,होता इसकी कोई निगरानी नहीं है, अब जब दस्तावेज न्यायधिकरण के समक्ष पहुंच गए , तो फिर , छह माह की समयावधि का इन्तिज़ार क्यों , फिर क्लेम अगर कोई पीड़ित पेश करना चाहता है , तो एक विकलांग शक्स , एक टुटा फूटा विकलांग , व्यक्ति , उक्त अवधि में तो ठीक ही नहीं होता , कैसे वकील से सम्पर्क करेगा , कैसे उक्त अवधि में प्रार्थना पत्र पेश ,करेगा फिर मृतक के परिजन भी , उक्त समयावधि में हादसे के दर्द से पूरी तरह उभर नहीं पाते है , ऐसे में कई लोग निर्धारित समयावधि में मोटर यान दुर्घटना के क्लेम पेश करने से वचित हुए है , जिन्होंने बाद में देरी से क्लेम पेश किये है , ,, ऐसे पीड़ितों के प्रस्तुत क्लेम प्रार्थना पत्र उक्त काल में समयावधि प्रतिबन्धित होकर सुनवाई के लिए पढ़े हैं , इधर बीमा कम्पनियौं को मज़े आ रहे हैं , अभी तक कई राष्ट्रिय लोक अदालतों में अरबों अरब रूपये के प्रकरणों का निस्तारण लोक अदालत की भावना से हो गया है , लेकिन सिर्फ केंद्र सरकार की इस तकनीकी मदद संशोधन के नाम पर , बीमा कंपनियों को क्लेम देने से अभयदान मिला हुआ ,है अव्वल तो ऐसे मामलों में थानाधिकारी की जब ज़िम्मेदारी है तो ट्रिब्यूनल को निर्देश होना चाहिए की तत्काल क्लेम जारी करे , दूसरी बात , संशोधन अगर बीमा कम्पनियों के दबाव में आकर कर भी दिया तो , मियाद अधिनियम तो इस पर लागु होना ही चाहिए , इसी मामले में विस्तृत ज्ञापन बनाकर, ,, कोटा के मोटर यान दुर्घटना क्लेम मामलों के विशेषज्ञ एडवोकेट परमेश्वर जी दाधीच , ने कोटा से सांसद लोकसभा अध्यक्ष ओम जी बिरला को ,दुर्घटना में अपना परिवार का मुखिया , दूसरे सदस्यों को खो चुके पीड़ितों , विकलांग हुए लोगों का दर्द बयान करते हुए मानवीय दृष्टिकोण पर तुरतं प्रभाव से , मोटर यान दुर्घटना अधिनियम की धारा 166 में समयावधि की बंदिश हटाने , और अगर हटाना मुमकिन नहीं है तो परिपत्र के ज़रिये बढ़ाने ,, तथा परिस्थितियों के अनुसार मियाद अधिनियम के विधिक प्रावधान के तहत सुनवाई कर अवसर देने की पुरज़ोर मांग उठाई है ,, ,, इधर केरल हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में परिसीमा अधिनियम के तहत कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे , जिस पर माननीय सुप्रीमकोर्ट ने स्थगन दिया है , लेकिन दूसरी तरफ , भागीरथी दाश बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिआ मामले में सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर सुनवाई के लिए नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है , ,देश के लोगों को समझना होगा , के भारत सरकार जो खुद को गरीबों , दलितों , पीड़ितों , दिव्यांगों और निराश्रित लोगन की मसीहा बताती रही है ,वोह सरकार कितनी निष्ठुर है , के सिर्फ बीमा कंपनियों पर अतिरिक्त भार रोका जा सके इसके लिए एक तरफ तो , दुर्घटना के तुरतं बाद थानाधिकारी द्वारा एफ आई आर और दस्तावेज ट्रिब्यूनल में देने का ढांचा विकसित नहीं किया , दूसरी तरफ अगर थानाधिकारी संबंधित क्षेत्राधिकार वाले ट्रिब्यूनल में सुचना दे भी देता है , और दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति किसी दूसरे ज़िले का है ,तो फिर वोह वहां इस मामले में क्या मदद ले पायेगा , इधर मानवीयता से अगर सोचे तो देश का नाबालिग बच्चा भी जानता है , के जिस घर में आकस्मिक दुर्घटना से मृत्यु हो जाती है , उस घर में मातम का माहौल , कई महीनों तक बना रहता है , मन ठीक नहीं रहता है , या फिर कोई अगर दुर्घटना में गंभीर घायल होकर विकलांग हो जाता है , तो वोह महीनों ही नहीं सालों इलाज करवाता रहता है , किसी की टांग , तो किसी का हाथ कट जाता है , उसका दर्द , उसका लगातार इलाज , फॉलोअप इलाज , करवाने में ही उसे महीनों गुज़र जाते है , फिर जब होश आता है , तभी वोह उक्त कल्याणकारी क़ानून के तहत मुक़दमा करने जाता है, और उसे ट्रिब्यूनल में केंद्र सरकार का यह मियाद का बेरियर जब पता चलता है , तो वोह इन्साफ से वंचित हो जाता है , ,,, ऐसे देश भर के ट्रिब्यूनल में सैकड़ों नहीं , हज़ारों नहीं , लाखों लाख मामले हैं , मेने कई पत्र आदरणीय प्रधानमंत्री जी को लिखे लेकिन कोई जवाब , कोई रेस्पोंस नहीं आया , वरिष्ठ वकील परेमश्वर जी दाधीच साहब ने , कोटा सांसद , देश की सबसे बढ़ी पंचायत लोकसभा के अध्यक्ष ओम जी बिरला को भी ज्ञापन दिया है , देखते हैं , क्या खबर आती है , इधर सिर्फ भाजपा की केंद्र सरकार को ही क्यों दोष दें , भाजपा के सांसद , विधायक , प्रधानमंत्री , उनके द्वारा बनाये गए राष्ट्रपति जो भी हैं , सब अगर इस तरफ नहीं सोच रहे तो ,प्रतिपक्ष के नेता , सांसद तो इस मामले में , लोकसभा में आवाज़ उठा सकते हैं , लेकिन उनकी भी आँखें बंद है , वोह भी बीमा कंपनियों से पाबंद से लगते हैं , उनके चंदा बोंड से खुश से लगते हैं ,,,,,,,,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
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