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29 जून 2024

और कहने लगे कि ये क़़ुरआन इन दो बस्तियों (मक्के ताएफ) में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं नाजि़ल किया गया

 और कहने लगे कि ये क़़ुरआन इन दो बस्तियों (मक्के ताएफ) में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं नाजि़ल किया गया (31)
ये लोग तुम्हारे परवरदिगार की रहमत को (अपने तौर पर) बाँटते हैं हमने तो इनके दरमियान उनकी रोज़ी दुनयावी जि़न्दगी में बाँट ही दी है और एक के दूसरे पर दर्जे बुलन्द किए हैं ताकि इनमें का एक दूसरे से खि़दमत ले और जो माल (मतआ) ये लोग जमा करते फिरते हैं ख़ुदा की रहमत (पैग़म्बर) इससे कहीं बेहतर है (32)
और अगर ये बात न होती कि (आखि़र) सब लोग एक ही तरीक़े के हो जाएँगे तो हम उनके लिए जो ख़ुदा से इन्कार करते हैं उनके घरों की छतें और वही सीढि़याँ जिन पर वह चढ़ते हैं (उतरते हैं) (33)
और उनके घरों के दरवाज़े और वह तख़्त जिन पर तकिये लगाते हैं चाँदी और सोने के बना देते (34)
ये सब साज़ो सामान, तो बस दुनियावी जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) साज़ो सामान हैं (जो मिट जाएँगे) और आख़ेरत (का सामान) तो तुम्हारे परवरदिगार के यहाँ ख़ास परहेज़गारों के लिए है (35)
और जो शख़्स ख़ुदा की चाह से अन्धा बनता है हम (गोया ख़ुद) उसके वास्ते शैतान मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उसका (हर दम का) साथी है (36)
और वह (शयातीन) उन लोगों को (ख़ुदा की) राह से रोकते रहते हैं बावजूद इसके वह उसी ख़्याल में हैं कि वह यक़ीनी राहे रास्त पर हैं (37)
यहाँ तक कि जब (क़यामत में) हमारे पास आएगा तो (अपने साथी शैतान से) कहेगा काश मुझमें और तुममें पूरब पष्चिम का फ़ासला होता ग़रज़ (शैतान भी) क्या ही बुरा रफीक़ है (38)
और जब तुम नाफ़रमानियाँ कर चुके तो (शैयातीन के साथ) तुम्हारा अज़ाब में शरीक होना भी आज तुमको (अज़ाब की कमी में) कोई फायदा नहीं पहुँचा सकता (39)
तो (ऐ रसूल) क्या तुम बहरों को सुना सकते हो या अन्धे को और उस शख़्स को जो सरीही गुमराही में पड़ा हो रास्ता दिखा सकते हो (हरगिज़ नहीं) (40)

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