जब मुझसे ताल्लुक खत्म करने का मन हो तुम्हारा तो ,
झटके से रिश्ता नही तोड़ना ।
नही बिछड़ना मुझसे ऐसे ,
जैसे विशाल हिमखंड यकायक ही
विलग धम्म से गिरता है समंदर में .।
मेरे आस पास अपने होने के
भरम को बनाए रखना ..।
फासला बनाना गर चाहो तो
ऐसे बनाना जैसे ,
माँ छल करती है सोते बच्चे को
अपनी खुश्बू की चुनर ओढ़ाकर ।
मुझे ऐसे वज्रपात सा मत छोड़ना जैसे
पेड़ बिल्कुल भूला देता है झड़े पत्तों को ।
यकायक खुद से ऐसे मत काटना
जैसे ब्रह्मपुत्र की विराट जलराशि
धसका ले जाती है आसन्न तटों को ।
ऐसे ना जाना छोड़कर जैसे
कृष्ण गए मथुरा से बिना पलट कर देखे ।
हटाना हो तो किश्तों में धीरे धीरे हटाना जैसे ,
पर्वत झड़ाता है रजकणों को ।
मत बिछड़ना ऐसे एक झटके में जैसे
पतंग जुदा हो जाती है डोर से।
मुझे ऐसे मत त्यागना जैसे
आकाश एकदम से छोड़ देता है जल बूंदों को धराशायी होने ।
बिछोह करना जैसे जमीन त्यागती है नदी को ,
जिसे हमेशा भरम रहता है उद्गम से जुड़े रहने का ...।
मुझे अचानक मत छोड़ना..।
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