बेशक ये (सब कुछ) खु़दा पर आसान है और ये लोग खु़दा को छोड़कर उन लोगों की
इबादत करते हैं जिनके लिए न तो ख़ुदा ही ने कोई सनद नाजि़ल की है और न उस
(के हक़ होने) का खु़द उन्हें इल्म है और क़यामत में तो ज़ालिमों का कोई
मददगार भी नहीं होगा (71)
और (ऐ रसूल) जब हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें उनके सामने पढ़ कर सुनाई जाती
हैं तो तुम (उन) काफ़िरों
के चेहरों पर नाखु़शी के (आसार) देखते हो (यहाँ तक कि) क़रीब होता है कि
जो लोग उनको हमारी आयातें पढ़कर सुनाते हैं उन पर ये लोग हमला कर बैठे (ऐ
रसूल) तुम कह दो (कि) तो क्या मैं तुम्हें इससे भी कहीं बदतर चीज़ बता दूँ
(अच्छा) तो सुन लो वह जहन्नुम है जिसमें झोंकने का वायदा खु़दा ने काफि़रों
से किया है (72)
और वह क्या बुरा ठिकाना है लोगों एक मस्ल बयान की जाती है तो उसे कान लगा
के सुनो कि खु़दा को छोड़कर जिन लोगों को तुम पुकारते हो वह लोग अगरचे सब
के सब इस काम के लिए इकट्ठे भी हो जाएँ तो भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर
सकते और कहीं मक्खी कुछ उनसे छीन ले जाए तो उससे उसको छुड़ा नहीं सकते (अजब
लुत्फ है) कि माँगने वाला (आबिद) और जिससे माँग लिया (माबूद) दोनों कमज़ोर
हैं (73)
खु़दा की जैसे क़द्र करनी चाहिए उन लोगों ने न की इसमें शक नहीं कि खु़दा तो बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है (74)
खु़दा फरिश्तों में से बाज़ को अपने एहकाम पहुँचाने के लिए मुन्तखि़ब कर लेता है (75)
और (इसी तरह) आदमियों में से भी बेशक खु़दा (सबकी) सुनता देखता है जो कुछ
उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका है) (खु़दा सब कुछ) जानता है
(76)
और तमाम उमूर की रूजूअ खु़दा ही की तरफ होती है ऐ ईमानवालों रूकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और नेकी करो (77)
ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खु़दा की राह में जिहाद
करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की
सख़्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम के मजह़ब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया
उसी (खु़दा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और
कु़राआन में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने
और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खु़दा ही (के
एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तेा क्या अच्छा सरपरस्त है
और क्या अच्छा मददगार है (78)
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