टोंक नगरी के सेवानीवर्त ज़िला शिक्षा अधिकारी, डॉक्टर माक़ूल नदीम, उर्दू अदब में उस्तादों के उस्ताद , बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं,
कोटा 19 फरवरी , बनास नदी के किनारे बसी , नवाबों की नगरी टोंक में नफासत, नज़ाकत, अदब, आदाब, अख़लाक़ के साथ उर्दू ज़ुबान के उस्ताद , डॉक्टर सय्यद माक़ूल अहमद नदीम टोंक उर्दू अदब के कोहिनूर है, यह चाहे ज़िला शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानीवर्त हुए हों , लेकिन उस्तादों के उस्ताद के रूप में आज भी हर दिल अज़ीज़ हैं उर्दू अदब के फ़रोग़ की खास ज़रूरत हैं,
बहु आयामी प्रतिभा के धनी डॉक्टर सय्यद माक़ूल नदीम ,, कहने को तो टोंक की सर ज़मी के मशहूर शिक्षाविद हैं , लेखक हैं , कुशल वक्ता , एनाउंसर हैं ,, लेकिन इनकी माक़ूलीयत की खुशबु , सर ज़मीन ऐ हिंदुस्तान में , क़ौमी एकता , की गंगा जमुनी संस्कृति के साथ महकती हैं , इनके मोहब्बत के अल्फ़ाज़ों की सदा , चो तरफा गूंजती हैं , इसीलिए , माक़ूल भाई उर्दू अदब में माक़ूलियत से अपना फन , अपने जोहर दिखाते रहे हैं ,, जबकि नदीम यानी बहतरीन दोस्त , जो अमन ,, सुकून , भाईचारा , सद्भावना और साक्षरता की कामयाब अलख जगा रहे हैं , माक़ूल भाई ,उर्दू अदब में डॉक्टरेट हैं , उर्दू के डॉक्टर हैं , यह रदीफ़ , क़ाफिया , बहर ,, मीटर , नस्र , नज़्म , क़िस्से , कहानियों ,, उर्दू अदब , और उर्दू से जुड़े उस्तादों , छात्र छात्राओं का,, कुछ भी बिगड़ जाने , उर्दू अदब के बीमार हो जाने पर , ऑपरेशन थियेटर में उर्दू के अल्फ़ाज़ों , उर्दू की नामानिगारी का पुर लुत्फ़ अंदाज़ में इलाज करते हैं , ऑपरेशन करते हैं , और टूटे फूटे अल्फ़ाज़ों को सजा , संवार कर एक बहतर अंदाज़ में लोगों के लिए वाह वाही बनाकर परोसने में माहिर हैं , 37 साल 7 माह से भी अधिक कार्यकाल सरकारी स्कूलों में उर्दू के उस्ताद , उर्दू के डॉक्टर , उर्दू की किताबों के लेखक , मुसन्निफ़ , नज़्म , नस्र ,ग़ज़ल गो , के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले माक़ूल भाई ने , हज़ारों हज़ार छात्र , छात्राओं की उस्तादी की है , उन्हें क़ाबिल बनाकर अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया है , राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में छात्र छात्राओं को सही शिक्षा देने के लिए , इबारत लिखी हैं , किताबें लिखी हैं , , कई बार सालाना बोर्ड पेपर तय्यार करने वाले एक्ज़ामिनर भी रहे हैं , खुश अख़लाक़ , हमेशा मुस्कुराकर , बच्चों , बूढ़ों , बराबर के लोगों में , रोज़ मर्रा ज्ञान बाँट कर खुश होने वाले सय्यद माक़ूल नदीम हर दिल अज़ीज़ हैं , फनकार हैं , कलाकार है , मोहब्बत के पैरोकार हैं , ज़िंदादिल हैं , ज़िंदाबाद हैं , टोंक की शान हैं , टोंक के कोहिनूर हैं , टोंक के रत्न हैं , लेकिन किरदार ऐसा के लोग देखते ही कह पढ़ें , ऐ खुदा इस सादगी ऐ क़ाबलियत , सादगी ऐ उर्दू पैरोकार पे मर क्यों ना जाएँ ,,, , डॉक्टर माक़ूल नदीम साहब की कहानियां , आलेख ,, देश भर की मैगज़ीन , अखबारात में प्रकाशित होती रहीं हैं , इनकी लिखी इबारत आकाशवाणी के ज़रिये रेडियो पर भी गुंजी है , तो लोगों ने इनके अंदाज़ को दूरदर्शन टीवी पर भी सराहा हैं , ,आकाशवाणी से ‘मुंशी प्रेमचन्द एण्ड अदर उर्दू ग्रेट्स’ का तब्सिरा और ऑल इण्डिया रेडियो से उनकी कहानियां प्रसारित हुई,, माकूल भाई आजाद भारत के टोंक में बावड़ी इलाके से ताल्लुक रखने वाले सैयद मोहम्मद अहमद (मुंसिफ व सेशन कोर्ट में रीडर) के घर 1 जुलाई 1964 को पैदा हुए नदीम बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे ,, ,,उर्दू, इतिहास व शिक्षा में एम. ए., एम. फिल., एम. एड. और पी. एच. डी.की उपाधि प्राप्त कर उर्दू अदब के डॉक्टर बनकर उस्तादों के उस्ताद कहलाने वाले ,, उर्दू अदब ,, अल्फ़ाज़ों के ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर माक़ूल नदीम साहब के अल्फ़ाज़ों में मोहब्बत है , दर्द है , सुकून ,है ,, जीने का सलीक़ा है ,, अदब ,, आदाब है ,, उनकी कहानी ‘रिश्तों का दर्द’ पढ़कर पाकिस्तान के मशहूर ड्रामानिगार मुराद काशिफ ने , डॉक्टर माक़ूल भाई की बेसाख़्ता तारीफ करते हुए जिक्र किया कि शायद नदीम दरिया-ए-बनास के साहिल पर बैठकर अफसाने लिखते होंगे, जो पानी की मौजों में रवानी की मानिन्द महसूस होती है, वही तसव्वुर , वही झलक उनके अफसानों में नजर आता है, उनके द्वारा लिखी गई कहानियों में ‘सादा कागज’ व ‘आखिऱ क्यों’ लोगों के दिलों दिमाग पर आज भी छाई हुई हैं ,,
डॉक्टर माक़ूल साहब की हिन्दी और उर्दू में लिखी 20 से भी अधिक लघु कहानियां देश भर की मशहुर पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं, माक़ूल नदीम द्वारा लिखे गए 125 मुसव्विदे, मजमून, मकाले और तब्सिरे अखबारों में भी शाया हो चुके हैं, भाषा पर पकड़ होना कोई मामूली बात नहीं है, उर्दू भाषा के काबिल डॉक्टर नदीम का लोहा समय- समय पर शासन और प्रशासन ने भी माना, उन्हें जिला प्रशासन ने 2002 और 2010 में सम्मानित भी किया। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड- राजस्थान ने भी 2002 में नदीम का सम्मान किया, उनके द्वारा सम्पादित कक्षा 10 की ‘उर्दू कोर्स रीडर’ पुस्तक भी बोर्ड ने 1999 से 2003 तक चलाई, उदयपुर के प्रख्यात सरकारी संस्थान एसआईईआरटी ने भी उनका लिखा लेख ‘दिलचस्प अदब’ अपनी किताब में छापा और कक्षा 6 व 7 के लिए उनकी पुस्तक ‘उर्दू निस्ब’ को कोर्स में शामिल किया, राजस्थान पाठ्यपुस्तक मण्डल ने भी उनके द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘राजस्थान उर्दू रीडर’ को कक्षा 4 के लिए स्वीकृत किया, डॉक्टर माक़ूल एनसीईआरटी- नई दिल्ली, राजस्थान उर्दू अकादमी, एपीआरआई- टोंक तथा भोपाल सहित कई प्रमुख शहरों में राष्ट्रीय सेमिनारों में कई मर्तबा पत्र वाचन भी कर चुके हैं, माक़ूल नदीम बरसों से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड- राजस्थान व एसआईईआरटी की उर्दू पाठ्यक्रम समिति के समन्वयक सदस्य रहे हैं,
माक़ूल भाई जैसा रवां तल्लफुज (धाराप्रवाह उच्चारण) टोंक में किसी और का नहीं। खालिस उर्दू भाषा में मंच संचालन करना इनके ही इख्तियार में है, उर्दू जुबान की खिदमतगारी के तौर पर नदीम का मुकाम हमेशा आला दर्जे का रहा, माक़ूल अहमद नदीम साहब उस्तादों के उस्ताद तो रहे हैं , उस्तादों के उस्ताद तो हैं ही , लेकिन टोंक जिला शिक्षा अधिकारी के ओहदे से रिटायर होने के बाद , वोह हिंदी , उर्दू के ज़रिये , क़ौमी एकता का संदेश देते हुए , अल इरफ़ान रिसाले का सम्पादन कर रहे हैं , यह रिसाला अब उर्दू , और हिंदी दोनों ज़ुबानों में महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ प्रकाशित होता है , जिसकी मक़बूलियत टोंक और आसपास के इलाक़ों में दिन बा दिन बढ़ती जा रही हैं ,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)