हाड़ौती संभाग में अविरल जारी है,शाइन इंडिया का नेत्रदान-महादान अभियान
2. शाइन इंडिया के सहयोग से भवानीमण्डी में सम्पन्न हुआ 105वां नैत्रदान
राम
मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दीपोत्सव की बेला में नेत्र ज्योति के दान से दो
लोगों को भगवान के दर्शन हो पाएंगे, दृष्टि का दान सबसे बड़ा दान है,इसी
भावना के चलते भवानीमंडी में नेत्रदान के प्रति जागृति लगातार बढ़ती जा रही
है, भवानीमंडी अब झालावाड़ जिले में ही नहीं नेत्रदान के क्षेत्र में पूरे
हाड़ौती संभाग में एक प्रमुख नगर के रूप में जाना जाने लगा है ।
कल
शाम बालाजी चौराहा,भवानीमंडी निवासी सेवानिवृत्त कानूनगो अमोलक चंद जैन की
अचानक तबीयत खराब होने पर उनको राजकीय अस्पताल में ले जाया गया जहां पर
उन्हें मृत घोषित कर दिया गया इस समय शाइन इंडिया के सहयोगी एवं चिकित्सालय
के सीनियर नर्सिंग ऑफिसर अविनाश जैन ने तुरंत ही अमलोक जी के बेटे दिनेश
पारस और सुनील से पिताजी के नेत्रदान करवाने की बात रखी ।
ज्ञात
हो कि,अविनाश जी के पिताजी कैलाश 'रवि' का भी कुछ समय पहले नेत्रदान
संपन्न हुआ था,तभी से वह संस्था के साथ मिलकर नेत्रदान के क्षेत्र में
कार्य कर रहे हैं । अविनाश जी के अनुरोध पर तुरंत ही परिवार की ओर से सहमति
मिल गई,इसके उपरांत कोटा में शाइन इंडिया फाउंडेशन और बीबीजे चैप्टर के
कोऑर्डिनेटर डॉ कुलवंत गौड़ को भवानीमंडी में नेत्रदान लेने आने के लिए
सूचना दी गई ।
सूचना के
समय,टीम के सदस्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में व्यस्त थे, वहीं
से आयोजन को बीच में छोड़कर टीम भवानीमंडी के लिए रवाना हो गई। घर पर
उपस्थित सभी परिवारजनों एवं बाहर से आए हुए रिश्तेदारों के सामने नेत्रदान
संपन्न हुआ, नेत्रदान प्रक्रिया में अमोलकचंद के तीनों पुत्र और परिवार
सदस्यों के साथ-साथ अक्षय जैन, आलोक जैन एवं आदर्श शाखा के नेत्रदान
प्रभारी अनिल गुप्ता ने सहयोग किया।
कमलेश
दलाल के अनुसार अमोलचंद जैन के रूप में शाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से
यह भवानीमंडी क्षेत्र से प्राप्त 105 वाँ नेत्रदान है, जोकि पूरे झालावाड़
जिले में सबसे अधिक है, जिसके माध्यम से 210 से अधिक नेत्रहीनों को नई
रोशनी दी जा चुकी है। वहीं मृतक अमोलकचंद के पुत्र दिनेश, पारस और सुनील ने
बताया कि उनके पिता भवानीमंडी के नेत्रदान कार्यक्रम के समर्थक रहे हैं
एवं उनकी अंतिम इच्छा भी नेत्रदान की रही है। पिता का नेत्रदान करके उनकी
अंतिम इच्छा को पूर्ण करके परिवार ने एक आत्मिक संतोष को प्राप्त किया है।
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