प्रतिष्ठा में
माननीय मुख्य न्यायधीश महोदय ,
उच्चतम न्यायालय भारत सरकार ,
नई दिल्ली
विषय ,, अजमेर की दरगाह सहित देश की सभी बढ़ी दरगाह , मंदिर धार्मिक स्थलों के बाहर , ,रेडलाइट , शहरों के प्रमुख स्थान पर , अशक्त ,, गंभीर घायल , बिमार , कथित पेशेवर भिखारियों को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाने के निर्देश , संबंधित जिला कलेक्टर को देने , और अन्य सभी तंदरुस्त आदतन भिखारियों को सुधार ग्रह में भेज कर , अवश्यकानुसार शिक्षा , रोज़गार , स्वरोज़गार से जोड़ने सहित क़ानून बनाकर भारत सरकार को कठोर निर्देश देने के क्रम में , ,
मान्यवर ,
उपरोक्त विषय में निवेदन है की ,,, भारत के प्रमुख शहरों के मुख्य धार्मिक स्थलों , रेड लाइट चौराहों , प्रमुख स्थानों पर आदतन भिखारियों का जमावड़ा रहता है , जबकि हालात यह हैं के , दरगाहों , मंदिरो , मस्जिदों ,, वगेरा के बाहर , रोज़ मर्रा गंभीर बीमार ,, लकवाग्रस्त , या हाथ पैर कटे ,, शरीर से खून रिस्ते पीड़ित लोग , भीख मांगते नज़र आते है , अफ़सोस इस बात का है के भारतीय संस्कृति से दूर हो चुके भारतीय लोग , ऐसे लोगों पर दया करके , भीख में रूपये तो दे देते हैं , लेकिन उनकी स्थाई तकलीफ दूर करने के लिए , इलाज करवाने के लिए इन धार्मिक स्थलों पर जाने आने वाले , कोई भी जागरूक पत्रकार , अधिकारी , नेता ,, मंत्री वगेरा वगेरा इन्हे अस्पताल पहुंचाकर , इनका इलाज करवाने और सरकारी योजनाओं के तहत ऐसे अशक्त , निशक्त , गंभीर घायल , या फिर वृद्ध हो चुके लोगों को , वृद्धाश्रम ,, सुधार ग्रह में पहुंचाकर उनकी समस्या का स्थाई समाधान नहीं करते है ,,जबकि कुछ विदेशी पर्यटक इन दर्द से तड़पते गंभीर घायल खून रिस्ते भिखारियों के फोटोग्राफ लेकर , विदेश में , भारत की छवि खराब करते हैं ,, एक तरफ भारत की जो मानवीय संस्कृति है , यह उस संस्कृति पर गंभीर कुठाराघात है , आदरणीय भारत में , समाज कल्याण विभाग है , जिला कलेक्टर है , संबंधित क्षेत्र के आसपास के थाने , पुलिस की बीट व्यवस्था है , भारत सरकार , राज्य सरकारों के कल्याण मंत्रालय है , ऐसे प्रताड़ित , पीड़ित लोगों की उपेक्षा पर , निर्देशित करने के लियें, मानवाधिकार आयोग है , लेकिन इन सब के बावजूद भी , भारत के मुख्य दरगाह स्थलों , चाहे वोह अजमेर ख्वाजा साहब की दरगाह हो , सरवाड़ की दरगाह हो , बढे मंदिर हों , मस्जिदें हों , चाहे कोई और जगह हो , मुख्य मंदिरों के आसपास की जगह हो , चौराहे हों , गलियां हों , रेड लाइटों के आसपास के इलाक़े हों , सभी जगह , आदतन भीख मांगने वाले लोग है , एक तरफ तो यह लोग खुद को बीमार , अशक्त बताकर ,, आदतन भीख मांग रहे हैं , तो दूसरी तरफ , तंदरुस्त लोग , भीख को , रोज़गार के रूप में , अपना रोज़गार बनाये हुए हैं , देश में सभी शहरों में , यही हालात है , ऐसे में एक भिखारी पक्ष , जो बीमार है , अशक्त है , घायल है , गंभीर रोगी है , लकवा ग्रस्त है , जिसे तत्काल इलाज की ज़रूरत हैं , लेकिन इलाज की जगह उसके परिजन या फिर कोई अन्य पेशेवर व्यक्ति , उसकी नुमाइश कर , उसका मर्म दिखाकर, दर्द दिखाकर , लोगों की संवेदना भड़काकर , उनसे भीख लेना चाहता है , यूँ तो ऐसे हालात में , पहली प्राथमिकता इनका इलाज होना चाहिए ,लेकिन आम आदमी , रूपये देता है , आगे चला जाता है ,, विदेशी आता है , फोटो लेता है , पोस्ट कर देता है , इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि भी बिगड़ रही है , यह मानवाधिकारों का भी उलंग्घन है , सरकार का फेल्योर होना साबित है , एक गंभीर घायल शख्स , जिसके ज़ख्म नासूर बन चुके है , विकलांग है , लकवाग्रस्त है , उसका इलाज सरकार नहीं करवा पा रही हैं , इन लोगों को रेस्क्यू कर इनका इलाज पुनर्वास सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है, जबकि इस व्यवस्था के लिए सभी पुलिस अधीक्षक , जिला कलक्टरों को पाबंद किया जाना ज़रूरी है , उनका इलाज हो ,, उनकी कल्याणकारी व्यवस्था हो , दूसरी तरफ आदतन भिखारी जो बच्चों को पढ़ाने की जगह , इस कारोबार में लगा रहे हैं , महिलाये , बुज़ुर्ग ,, नौजवान इस कारोबार में लगे हैं , उन्हें चिन्हित कर, , कल्याण व्यवस्था ,, शैक्षणिक व्वयस्था , स्वरोज़गार ,, रोज़गार व्यवस्था से उन्हें जोड़कर , इस कोढ़ की तरह फेल रही बिमारी को खत्म करने के लिए क़ानून भी ज़रूरी है , ताकि सरकार , जिला कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक पर , क़ानून के ज़रिये ऐसे लोगों को चिन्हित कर इलाज कराने , शिक्षा व्यवस्था , कल्याण व्यवस्था के लिए पाबंद किया जाये ,, और गंभीर मरीज़ बनकर जो नुमाइश करके भीख मांगते हैं उनका इलाज हो , उनसे भीख मंगवाने वाले , बच्चों से भीख मंगवाने वाले , हष्ट पुष्ट होकर भी भीख मांगने वालों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही सम्भव हो सके,
माननीय मुख्य न्यायधीश महोदय ,
उच्चतम न्यायालय भारत सरकार ,
नई दिल्ली
विषय ,, अजमेर की दरगाह सहित देश की सभी बढ़ी दरगाह , मंदिर धार्मिक स्थलों के बाहर , ,रेडलाइट , शहरों के प्रमुख स्थान पर , अशक्त ,, गंभीर घायल , बिमार , कथित पेशेवर भिखारियों को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाने के निर्देश , संबंधित जिला कलेक्टर को देने , और अन्य सभी तंदरुस्त आदतन भिखारियों को सुधार ग्रह में भेज कर , अवश्यकानुसार शिक्षा , रोज़गार , स्वरोज़गार से जोड़ने सहित क़ानून बनाकर भारत सरकार को कठोर निर्देश देने के क्रम में , ,
मान्यवर ,
उपरोक्त विषय में निवेदन है की ,,, भारत के प्रमुख शहरों के मुख्य धार्मिक स्थलों , रेड लाइट चौराहों , प्रमुख स्थानों पर आदतन भिखारियों का जमावड़ा रहता है , जबकि हालात यह हैं के , दरगाहों , मंदिरो , मस्जिदों ,, वगेरा के बाहर , रोज़ मर्रा गंभीर बीमार ,, लकवाग्रस्त , या हाथ पैर कटे ,, शरीर से खून रिस्ते पीड़ित लोग , भीख मांगते नज़र आते है , अफ़सोस इस बात का है के भारतीय संस्कृति से दूर हो चुके भारतीय लोग , ऐसे लोगों पर दया करके , भीख में रूपये तो दे देते हैं , लेकिन उनकी स्थाई तकलीफ दूर करने के लिए , इलाज करवाने के लिए इन धार्मिक स्थलों पर जाने आने वाले , कोई भी जागरूक पत्रकार , अधिकारी , नेता ,, मंत्री वगेरा वगेरा इन्हे अस्पताल पहुंचाकर , इनका इलाज करवाने और सरकारी योजनाओं के तहत ऐसे अशक्त , निशक्त , गंभीर घायल , या फिर वृद्ध हो चुके लोगों को , वृद्धाश्रम ,, सुधार ग्रह में पहुंचाकर उनकी समस्या का स्थाई समाधान नहीं करते है ,,जबकि कुछ विदेशी पर्यटक इन दर्द से तड़पते गंभीर घायल खून रिस्ते भिखारियों के फोटोग्राफ लेकर , विदेश में , भारत की छवि खराब करते हैं ,, एक तरफ भारत की जो मानवीय संस्कृति है , यह उस संस्कृति पर गंभीर कुठाराघात है , आदरणीय भारत में , समाज कल्याण विभाग है , जिला कलेक्टर है , संबंधित क्षेत्र के आसपास के थाने , पुलिस की बीट व्यवस्था है , भारत सरकार , राज्य सरकारों के कल्याण मंत्रालय है , ऐसे प्रताड़ित , पीड़ित लोगों की उपेक्षा पर , निर्देशित करने के लियें, मानवाधिकार आयोग है , लेकिन इन सब के बावजूद भी , भारत के मुख्य दरगाह स्थलों , चाहे वोह अजमेर ख्वाजा साहब की दरगाह हो , सरवाड़ की दरगाह हो , बढे मंदिर हों , मस्जिदें हों , चाहे कोई और जगह हो , मुख्य मंदिरों के आसपास की जगह हो , चौराहे हों , गलियां हों , रेड लाइटों के आसपास के इलाक़े हों , सभी जगह , आदतन भीख मांगने वाले लोग है , एक तरफ तो यह लोग खुद को बीमार , अशक्त बताकर ,, आदतन भीख मांग रहे हैं , तो दूसरी तरफ , तंदरुस्त लोग , भीख को , रोज़गार के रूप में , अपना रोज़गार बनाये हुए हैं , देश में सभी शहरों में , यही हालात है , ऐसे में एक भिखारी पक्ष , जो बीमार है , अशक्त है , घायल है , गंभीर रोगी है , लकवा ग्रस्त है , जिसे तत्काल इलाज की ज़रूरत हैं , लेकिन इलाज की जगह उसके परिजन या फिर कोई अन्य पेशेवर व्यक्ति , उसकी नुमाइश कर , उसका मर्म दिखाकर, दर्द दिखाकर , लोगों की संवेदना भड़काकर , उनसे भीख लेना चाहता है , यूँ तो ऐसे हालात में , पहली प्राथमिकता इनका इलाज होना चाहिए ,लेकिन आम आदमी , रूपये देता है , आगे चला जाता है ,, विदेशी आता है , फोटो लेता है , पोस्ट कर देता है , इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि भी बिगड़ रही है , यह मानवाधिकारों का भी उलंग्घन है , सरकार का फेल्योर होना साबित है , एक गंभीर घायल शख्स , जिसके ज़ख्म नासूर बन चुके है , विकलांग है , लकवाग्रस्त है , उसका इलाज सरकार नहीं करवा पा रही हैं , इन लोगों को रेस्क्यू कर इनका इलाज पुनर्वास सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है, जबकि इस व्यवस्था के लिए सभी पुलिस अधीक्षक , जिला कलक्टरों को पाबंद किया जाना ज़रूरी है , उनका इलाज हो ,, उनकी कल्याणकारी व्यवस्था हो , दूसरी तरफ आदतन भिखारी जो बच्चों को पढ़ाने की जगह , इस कारोबार में लगा रहे हैं , महिलाये , बुज़ुर्ग ,, नौजवान इस कारोबार में लगे हैं , उन्हें चिन्हित कर, , कल्याण व्यवस्था ,, शैक्षणिक व्वयस्था , स्वरोज़गार ,, रोज़गार व्यवस्था से उन्हें जोड़कर , इस कोढ़ की तरह फेल रही बिमारी को खत्म करने के लिए क़ानून भी ज़रूरी है , ताकि सरकार , जिला कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक पर , क़ानून के ज़रिये ऐसे लोगों को चिन्हित कर इलाज कराने , शिक्षा व्यवस्था , कल्याण व्यवस्था के लिए पाबंद किया जाये ,, और गंभीर मरीज़ बनकर जो नुमाइश करके भीख मांगते हैं उनका इलाज हो , उनसे भीख मंगवाने वाले , बच्चों से भीख मंगवाने वाले , हष्ट पुष्ट होकर भी भीख मांगने वालों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही सम्भव हो सके,
न्यूज़
नॉलेज 18 की गूगल पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ,, भारत में भिखरियों
(Number of Beggars in India) की संख्या बहुत ज्यादा है. यह गंभीर समस्या
काफी पहले से चली आ रही है. लेकिन साल 2011 के जनगणना (2011 Census) के
“शिक्षण स्तर और प्रमुख गतिविधि के तौर पर गैर कामगारों” के आंकड़े चौंकाने
और हैरान करने वाले साबित होते दिख रहे हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक भारत
में चार लाख से ज्यादा भिखारी और बिना किसी काम और आय के साधन वाले लोग हैं
लेकिन इसमें भी अजीब बात यह है कि इनमें से 21 प्रतिशत लोग साक्षर ही नहीं
बल्कि शिक्षित (Educated Beggars) भी हैं. भीख मांगना अधिकांश मामलों में
व्यवसाय के स्तर पर पहुंच चुका है और इसके ना छोड़ने के कुछ अजीब कारण या
बहाने भी हैं.
भीख मांगने को मजबूर शिक्षित
ये आंकड़े इस बात पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि मूल शिक्षा होने के बाद भी ये लोग रोजगार नहीं पा सके जिससे उनके पास भीख मांगने अलावा कोई और चारा ही नहीं बचा था. डिग्रीधारी लागों का भीख मांगने पर मजबूर होना एक गंभीर संकेत है जो देश में रोजगार की खराब स्थिति को परिलक्षित करता है. लोग भीख मांगने का विकल्प रोजगार ना होने और पर्याप्य सामाजिक सहयोग ना मिलने पर अपनाते हैं, इसमें एक बात जो नजरअंदाज की जाती है, वह इसमें लिप्त माफिया का होना भी है जो और चिंताजनक स्थिति बना देता है.
कई भिखारी तो अंग्रेजी बोलने वाले भी
भारत में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या के साथ शिक्षित भिखारियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. कई बड़े शहरों में तो कुछ भिखारी अंग्रेजी बोलते भी दिखाई देते हैं. साल 2011 में समाजिक न्यायएवं सशक्ति की “शिक्षण स्तर और प्रमुख गतिविधि के तौर पर गैर कामगारों” के आंकड़ों के मुताबिक पढ़े लिखे भिखारियों में स्नातक, उत्तरोस्नातक और डिप्लोमाधारी तक शामिल हैं.
21 प्रतिशत से ज्यादा 12वीं पास
आंकड़ों से पता चलता है कि 4,13,670 भिखारियों में से 2,21,673 पुरुष भिखारी हैं तो वहीं महिला भिखारियों की संख्या 1,91,997 है. इनमें से कम से कम 21 प्रतिशत 12वीं पास हैं और उनमें से भी करीब 3 हजार तो व्यवसायिक डिप्लोमा डिग्री धारक ही हैं. इसमें भी दिलचस्प बात यह है कि अधिक शिक्षित राज्यों में शिक्षित भिखारियों की संख्या ज्यादा है.
राज्यों की क्या है स्थिति
अगर राज्यवार स्थिति की बात करें तो भारत में सबसे ज्यादा भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं. वहां 81244 भिखारी हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 65 हजार से ज्यादा, बिहार में करीब तीस हजार, आंध्रप्रदेश में 30 हजार, मध्यप्रदेश में 28 हजार और राजस्थान में करीब 26 हजार भिखारी हैं. एक रोचक बात यह है कि संघ शासित प्रदेशों में भिखारियों की संख्या बहुत ही कम है. लक्ष्यद्वीप में दो, दादर नगर हवेली में 20, दमन एवं दीव में 25 और अंडमान निकोबार में 50 भिखारी हैं.
दिल्ली और आसाम में भी कम नहीं
वहीं दूसरी तरफ भारत की राजधानी दिल्ली इस सूची में शीर्ष संघ शासित प्रदेश है. यहां 23 हजार भिखारी हैं इसके बाद चंडीगढ़ में केवल 121 भिखारी हैं. दूसरी तरफ उत्तर पूर्व में असम में सबसे ज्यादा 22 हजार भिखारी हैं और मिजोरम में सबसे कम 55 भिखारी हैं लेकिन अजीब बात यह है कि उत्तर पूर्व में महिला भिखारियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है.
महानगरों की स्थिति ज्यादा चिंतनीय
महानगरो में शिक्षित भिखारियों की संख्या दिखाई पड़ती है. बंगलुरू जैसे शहर में भीख मांगना एक लाभकारी व्यवसाय होने लगा है. यहां 80 भिखारी स्नातक हैं तो 30 के पास डिप्लोमा हैं. वहीं 195 भिखारी 12वीं तक पढ़े हैं. इसके अलावा मैसूर में 170 भिखारी स्नातक, स्नातकोत्तर, या डिप्लोमाधारी हैं जिनमें से 70 महिलाएं हैं.
केरल जैसे शिक्षित राज्य में ही 42 प्रतिशत भिखारी शिक्षित हैं. यहां 3800 में से 1600 शिक्षित हैं. इनमें से 1200 दसवीं से कम पढ़े हैं, 200 स्नातक से कम पढ़े हैं, 20 के पास डिप्लोमा, 30 स्नातकोत्तर है. लेकिन एक चिंताजनक बात यही है कि अधिकांश पढ़े लिखे भिखारी इस काम को 9 से 5 बजे तक की नौकरी से बेहतर मानते हैं. उससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि ये शिक्षित भिखारी नौकरी या अन्य व्यवसाय का विकल्प मिलने पर भी इस काम को नहीं छोड़ना चाहते हैं.
आदरणीय भिक्षावृत्ति के उदाहरण अक्सर सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों के आस-पास या चौक-चौराहों पर दिख जाते हैं। एक संजीदा नागरिक के मन में ये सवाल उठ सकता है कि क्या भीख मांग रहे ये लोग अपनी विवशता के कारण ऐसी हालत में हैं या फिर ये किसी साजिश के शिकार हैं। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस संबंध में अभी तक कोई बेहतर मैकेनिज्म नहीं बन पाया है। बहरहाल दिल्ली हाई कोर्ट ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 [Bombay Prevention of Begging Act, 1959] की 25 धाराओं को समाप्त कर दिया है। साथ ही, भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। हाई कोर्ट ने यह निर्णय भिखारियों के मौलिक अधिकारों और उनके आधारभूत मानवाधिकारों के संदर्भ में दायर दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया।
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि देश में अब तक
भिक्षावृत्ति के संदर्भ में कोई केंद्रीय कानून नहीं है। बॉम्बे प्रिवेंशन
ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 को ही आधार बनाकर 20 राज्यों और 2 केंद्रशासित
प्रदेशों ने अपने कानून बनाये हैं। दिल्ली भी इनमें से एक है। वहीँ दूसरा
केंद्रशासित प्रदेश है दमन और दीव।भीख मांगने को मजबूर शिक्षित
ये आंकड़े इस बात पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि मूल शिक्षा होने के बाद भी ये लोग रोजगार नहीं पा सके जिससे उनके पास भीख मांगने अलावा कोई और चारा ही नहीं बचा था. डिग्रीधारी लागों का भीख मांगने पर मजबूर होना एक गंभीर संकेत है जो देश में रोजगार की खराब स्थिति को परिलक्षित करता है. लोग भीख मांगने का विकल्प रोजगार ना होने और पर्याप्य सामाजिक सहयोग ना मिलने पर अपनाते हैं, इसमें एक बात जो नजरअंदाज की जाती है, वह इसमें लिप्त माफिया का होना भी है जो और चिंताजनक स्थिति बना देता है.
कई भिखारी तो अंग्रेजी बोलने वाले भी
भारत में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या के साथ शिक्षित भिखारियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. कई बड़े शहरों में तो कुछ भिखारी अंग्रेजी बोलते भी दिखाई देते हैं. साल 2011 में समाजिक न्यायएवं सशक्ति की “शिक्षण स्तर और प्रमुख गतिविधि के तौर पर गैर कामगारों” के आंकड़ों के मुताबिक पढ़े लिखे भिखारियों में स्नातक, उत्तरोस्नातक और डिप्लोमाधारी तक शामिल हैं.
21 प्रतिशत से ज्यादा 12वीं पास
आंकड़ों से पता चलता है कि 4,13,670 भिखारियों में से 2,21,673 पुरुष भिखारी हैं तो वहीं महिला भिखारियों की संख्या 1,91,997 है. इनमें से कम से कम 21 प्रतिशत 12वीं पास हैं और उनमें से भी करीब 3 हजार तो व्यवसायिक डिप्लोमा डिग्री धारक ही हैं. इसमें भी दिलचस्प बात यह है कि अधिक शिक्षित राज्यों में शिक्षित भिखारियों की संख्या ज्यादा है.
राज्यों की क्या है स्थिति
अगर राज्यवार स्थिति की बात करें तो भारत में सबसे ज्यादा भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं. वहां 81244 भिखारी हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 65 हजार से ज्यादा, बिहार में करीब तीस हजार, आंध्रप्रदेश में 30 हजार, मध्यप्रदेश में 28 हजार और राजस्थान में करीब 26 हजार भिखारी हैं. एक रोचक बात यह है कि संघ शासित प्रदेशों में भिखारियों की संख्या बहुत ही कम है. लक्ष्यद्वीप में दो, दादर नगर हवेली में 20, दमन एवं दीव में 25 और अंडमान निकोबार में 50 भिखारी हैं.
दिल्ली और आसाम में भी कम नहीं
वहीं दूसरी तरफ भारत की राजधानी दिल्ली इस सूची में शीर्ष संघ शासित प्रदेश है. यहां 23 हजार भिखारी हैं इसके बाद चंडीगढ़ में केवल 121 भिखारी हैं. दूसरी तरफ उत्तर पूर्व में असम में सबसे ज्यादा 22 हजार भिखारी हैं और मिजोरम में सबसे कम 55 भिखारी हैं लेकिन अजीब बात यह है कि उत्तर पूर्व में महिला भिखारियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है.
महानगरों की स्थिति ज्यादा चिंतनीय
महानगरो में शिक्षित भिखारियों की संख्या दिखाई पड़ती है. बंगलुरू जैसे शहर में भीख मांगना एक लाभकारी व्यवसाय होने लगा है. यहां 80 भिखारी स्नातक हैं तो 30 के पास डिप्लोमा हैं. वहीं 195 भिखारी 12वीं तक पढ़े हैं. इसके अलावा मैसूर में 170 भिखारी स्नातक, स्नातकोत्तर, या डिप्लोमाधारी हैं जिनमें से 70 महिलाएं हैं.
केरल जैसे शिक्षित राज्य में ही 42 प्रतिशत भिखारी शिक्षित हैं. यहां 3800 में से 1600 शिक्षित हैं. इनमें से 1200 दसवीं से कम पढ़े हैं, 200 स्नातक से कम पढ़े हैं, 20 के पास डिप्लोमा, 30 स्नातकोत्तर है. लेकिन एक चिंताजनक बात यही है कि अधिकांश पढ़े लिखे भिखारी इस काम को 9 से 5 बजे तक की नौकरी से बेहतर मानते हैं. उससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि ये शिक्षित भिखारी नौकरी या अन्य व्यवसाय का विकल्प मिलने पर भी इस काम को नहीं छोड़ना चाहते हैं.
आदरणीय भिक्षावृत्ति के उदाहरण अक्सर सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों के आस-पास या चौक-चौराहों पर दिख जाते हैं। एक संजीदा नागरिक के मन में ये सवाल उठ सकता है कि क्या भीख मांग रहे ये लोग अपनी विवशता के कारण ऐसी हालत में हैं या फिर ये किसी साजिश के शिकार हैं। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस संबंध में अभी तक कोई बेहतर मैकेनिज्म नहीं बन पाया है। बहरहाल दिल्ली हाई कोर्ट ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 [Bombay Prevention of Begging Act, 1959] की 25 धाराओं को समाप्त कर दिया है। साथ ही, भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। हाई कोर्ट ने यह निर्णय भिखारियों के मौलिक अधिकारों और उनके आधारभूत मानवाधिकारों के संदर्भ में दायर दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया।
भारत में भिक्षावृत्ति किन रूपों में विद्यमान है और इसके पीछे के कारण क्या हैं ?
भिक्षावृत्ति का सबसे साधारण classification ऐच्छिक भिक्षावृत्ति और अनैच्छिक भिक्षावृत्ति के रूप में किया जा सकता है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो आलस्य, काम करने की कमजोर इच्छा शक्ति आदि के कारण भिक्षावृत्ति अपनाते हैं। भारत में कुछ जनजातीय समुदाय भी अपनी आजीविका के लिये परम्परा के तौर पर भिक्षावृत्ति को अपनाते हैं। लेकिन यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि भीख मांगने वाले सभी लोग इसे ऐच्छिक रूप से नहीं अपनाते।
दरअसल, गरीबी, भुखमरी तथा आय की असमानताओं के चलते देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे भोजन, कपड़ा और आवास जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हो पातीं। यह वर्ग कई बार मजबूर होकर भीख मांगने का विकल्प अपना लेता है। भारत में आय की असमानता और भुखमरी की कहानी तो ग्लोबल लेवल की कुछ रिपोर्टों से ही जाहिर हो जाती है।
दिसम्बर, 2017 में प्रकाशित वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट [World Inequality Report] के अनुसार भारत के 10% लोगों के पास देश की आय का 56% हिस्सा है। वहीं International Food Policy Research Institute नामक एक संगठन द्वारा 2017 में जारी Global Hunger Index में 119 देशों की सूची में भारत को 100वाँ स्थान मिला है। साथ ही भारत को भुखमरी के मामले में गंभीर स्थिति वाले देशों में रखा गया है।
कई बार गरीबी से पीड़ित ऐसे लोगों की मजबूरी का फ़ायदा कुछ गिरोह भी उठाते हैं। ऐसे गिरोह संगठित रूप से भिक्षावृत्ति के रैकेट चलाते हैं। ये गिरोह गरीब व्यक्तियों को लालच देकर, डरा-धमकाकर, नशीले ड्रग्स देकर, तथा मानव तस्करी के द्वारा लाए गए लोगों को शारीरिक रूप से अपंग बनाकर भीख मांगने पर मजबूर करते हैं। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 की कुछ धाराओं में फेरबदल कर दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसे गरीब लोगों के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा का एक सार्थक प्रयास किया है।
बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट के प्रमुख प्रावधान
इस अधिनियम की सबसे बड़ी बात यह है कि यह भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करता है। साथ ही पुलिस प्रशासन को शक्ति देता है कि वह ऐसे भीख मांगने वाले व्यक्ति को पकड़कर किसी पंजीकृत संस्था में भेज सके। इस अधिनियम में भिक्षावृत्ति की परिभाषा में ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल किया गया है जो गाना गाकर, नृत्य करके, भविष्य बताकर, कोई सामान देकर या इसके बिना भीख मांगता है या कोई चोट, घाव आदि दिखाकर, बिमारी बताकर भीख मांगता है।
इसके अलावा जीविका का कोई दृश्य साधन न होने और सार्वजनिक स्थान पर इधर-उधर भीख मांगने की मंशा से घूमना भी भिक्षावृत्ति में शामिल है। इस कानून में भिक्षावृत्ति करते हुए पकड़े जाने पर पहली बार में तीन साल तक के लिये और दूसरी बार में दस साल तक के लिये व्यक्ति को सजा के तौर पर पंजीकृत संस्था में भेजे जाने का नियम है।
इसके साथ ही पकड़े गए व्यक्ति के आश्रितों को भी पंजीकृत संस्था में भेजा जा सकता है। यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन संस्थाओं को भी कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे-संस्था में लाए गए व्यक्ति को सजा देना, कार्य करवाना आदि। इन नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति को जेल भी भेजा जा सकता है।
ये सभी प्रावधान महाराष्ट्र में सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांग रहे और कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों से पीड़ित भिखारियों को एक निश्चित स्थान पर ले जाकर उन्हें इलाज व अन्य सुविधाएँ देने के लिये लाये गये थे। लेकिन शीघ्र ही यह कानून गरीबी, अपंगता, गंभीर बीमारियों जैसी किसी मजबूरी के कारण भिक्षावृत्ति अपनाने वालों के खिलाफ हथियार बन गया।
प्रशासन ने इसका प्रयोग सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने के लिये करना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिये 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के दौरान दिल्ली से भिखारियों को बाहर निकालने के लिये इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया। दंडात्मक प्रावधानों के तहत भिखारियों को पकड़ा तो जाता है लेकिन उनके पुनर्वास के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
मौजूदा कानून में क्या समस्याएँ हैं तथा यह किस प्रकार मौलिक अधिकारों और मानवीय मूल्यों से असंगत है?
पहली समस्या भिक्षावृत्ति की परिभाषा को लेकर है। गायन, नृत्य, भविष्य बताकर आजीविका कमाना कुछ समुदायों के लिये व्यवसाय है। यह मुख्य धारा के व्यवसायों से मेल नहीं खाता, सिर्फ इसलिये ऐसे लोगों को अपराधी मान लेना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। दूसरी बात यह है कि जीविका का कोई दृश्य साधन ना होना और सार्वजनिक स्थान पर भीख मांगने की मंशा से घूमने को अपराध मानना किसी व्यक्ति को गरीब दिखने के कारण दण्डित किये जाने जैसा है।
साथ ही यह कानून उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में स्थापित poor houses की विचारधारा को अपनाता है। आपको बता दें कि इन poor houses में गरीब और लाचार लोगों को रखा जाता था। यूरोप में पहले भिक्षावृत्ति का अपराधीकरण किया गया, फिर उन्हें सार्वजनिक स्थानों से पूरी तरह हटा दिया गया।
इसके अलावा भारतीय संविधान में प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, तथा राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के तहत भारत की एक कल्याणकारी राज्य की रूपरेखा सामने आती है। ऐसे में एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व ये होना चाहिए कि वह अपने नागरिकों की भोजन, आवास, रोजगार जैसी जरूरतों को पूरा कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे।
सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में 2016 में केंद्र सरकार ने पहला प्रयास The Persons in Destitution [Protection, Care, Rehabilitation] Model Bill, 2016 लाकर किया था। लेकिन 2016 के बाद से इस पर चर्चा बंद हो चुकी है। इस पर फिर से काम किये जाने की आवश्यकता है।
इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्यायों से मजबूर लोगों तक मौलिक सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिये वास्तविक लाभार्थियों की पहचान और सेवाओं की लीक प्रूफ डिलीवरी जरूरी है।
दूसरी ओर गंभीर बिमारी से पीड़ित, अपंगता से ग्रसित और छोटी उम्र के बच्चे जो भिक्षावृत्ति को अपना चुके हैं, उनके पुनर्वास के लिये व्यापक स्तर पर प्रयास किये जाने की जरूरत है। इसके लिये पुनर्वास गृहों की स्थापना करके उनमें आवश्यक चिकित्सीय सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
साथ ही उनकी मौलिक जरूरतों को पूरा करते हुए उन्हें कौशल प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। तभी वे भविष्य में समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बन सकेंगे। इस संबंध में बिहार जैसे राज्य में चलने वाली मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना का सन्दर्भ लिया जा सकता है। इस योजना में भिखारी को गिरफ्तार करने के स्थान पर उन्हें Open House में भेजकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था किये जाने का प्रावधान है।
जहाँ तक बात संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेटों की है तो इनको मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिए। दूर-दराज़ के इलाकों से लोगों को खरीदकर या अपहरण कर लाया जाता है और उन्हें भिक्षावृत्ति में लगाया जाता है। इसलिये इससे निपटने के लिये राज्यों के बीच सूचनाएँ साझा करने हेतु एक तंत्र की भी आवश्यकता है।
इस मामले में मुम्बई, दिल्ली,
उत्तराखण्ड , माननीय न्यायालय द्वारा पूर्व में कल्याणकारी आदेश दिए है
जिनकी पालना नहीं हुई और उक्त आदेश अपर्याप्त होने से सम्पूर्ण भारत
व्यवस्था के लिए नहीं होने से विस्तृत सुनवाई, अध्ययन के साथ स्थाई समाधान
कठोर दिशा निर्देध विधि नियम आवश्यक हो गए हैं,
अतः माननीय के समक्ष उक्त पत्र के माध्यम से याचिका पेश कर निवेदन है कि उक्त गम्भीर समस्या पर भारत सरकार सहित, देश की सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करें, भविष्य की कार्ययोजना तय्यार कर स्थाई समाधान को लेकर आवश्यक क़ानून बनाने , कल्याणकारी , दण्डात्मक व्यवस्थाएं क्रियान्वित के विधि नियम बनाकर निर्देश जारी कर अनुग्रहित करें,
अतः माननीय के समक्ष उक्त पत्र के माध्यम से याचिका पेश कर निवेदन है कि उक्त गम्भीर समस्या पर भारत सरकार सहित, देश की सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करें, भविष्य की कार्ययोजना तय्यार कर स्थाई समाधान को लेकर आवश्यक क़ानून बनाने , कल्याणकारी , दण्डात्मक व्यवस्थाएं क्रियान्वित के विधि नियम बनाकर निर्देश जारी कर अनुग्रहित करें,
प्रार्थी
अख्तर अली खान अकेला
महासचिव
ह्यूमन रिलीफ सोसायटी
2 थ 15 मैन रोड बृजवासी मिष्ठान के पास
विज्ञाननगर कोटा राजस्थान 324005
मोबाइल 9829086339 E mail sadafakhtar02@gmail.com
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