न कलम उठने को तैयार है,
न कागज़ जगह दे रहे हैं मुझे,
उन यादों की दस्तक दरवाज़े पर है,
कुछ साथी अनायास याद आ गए हैं,
कुछ गीत कानो में गुनगुना गये हैं,
कुछ सपनों को अरमान मिल गए हैं,
कुछ पत्थर मूरत में ढल गये हैं,
वो कहकहों की महफ़िलें,
वो आँखें ढूंढती मंज़िलें,
वो दिल में उठते तूफ़ान सपनों के,
वो उम्मीदों के आसमान अपनों के,
कुछ चले गए हम से मुंह मोड़ कर,
सोचा नही जा रहे हैं कितनी यादें छोड़ कर,
वो जो गले लग जाते थे हर हाल में दौड़ कर,
बसते हैं मुझमे अब भी वो लेकिन... रुला गये
कुछ दोस्त एकाएक ही याद आ गए.........
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