राहुल गांधी के खिलाफ फैसले पर फैसलों के बाद , कोंग्रेस विधि विभाग की सक्रियता, पुनर्गठन, फौजदारी मामलों की पैरवी की रणनीति पर खुले चिंतन की ज़रूरत,,
राहुल गाँधी को , सूरत कोर्ट से मानहानी मामले में , सज़ा मिलने , और फिर सज़ा स्थगन मामले में सेशन न्यायलय द्वारा इंकार करने के आदेश का सामना करने के बाद , भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मानवाधिकार विधि विभाग को पूरी तरह से भंग कर देना चाहिए , या फिर , कांग्रेस के हर लीडर को उनके विरुद्ध चल रहे मुक़दमों में , वकील की हर हिदायत का पालना करने के निर्देशों के साथ वकील को फ्री हेंड कर देना चाहिए , देश जानता है , देश के वकील जानते है , न्यायिक व्यवस्था से जुड़े लोग जानते है , विधि के छात्र जानते हैं , मानहानि के मामले में , ट्रायल और फिर अधिकतम सज़ा की घोषणा भारत के न्यायिक इतिहास में , एक उदाहरण बन गया है , जबकि , ऐसी दो वर्ष की सज़ा मामले में अपील में स्थगन से इंकार भी , एक इतिहास बना है , ,खेर यह न्यायिक मामले हैं , पैरवी करना , पैरवी को समझना , फिर फैसला देना यह एक न्यायिक प्रक्रिया है , लेकिन किसी भी मामले में , सूक्ष्म तरीके से पत्रावली अध्ययन हो , गंभीरता से पैरवी हो , क़ानूनी पुरानी जो नजीरें हैं , वोह निकाल कर पेश की जाएँ , फिर वकालत सिद्धांत है , के रफू गिरी अगर करना है , तो वोह तो सुई से ही होगी , अगर बढ़ा टांका है , तो सूए से करना होगा, लेकिन अगर रफ़ूगीरी के लिए , हम , सुई की जगह तलवार का , सूए का इस्तेमाल करने लगेंगे तो शायद रफ़ूगीरी होने की जगह फ़टी हुई पेन्ट और तार तार हो जायेगी , ,, एक मामला सुप्रीमकोर्ट ,में राजिव गाँधी के अपमान को लेकर हुआ था , जिसे सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देशों के साथ ख़ारिज किया , के मानहानी का कोई भी मुक़दमा व्यक्तिगत होता है , कोई भी रिप्रजेंटेटिव इसे पेश नहीं कर ,सकता इसके अलावा भी सज़ा निलंबन , सज़ा स्थगन , मानहानि के कई मामलों में , ट्रायल के तरीके , सफाई सुबूत , ट्रांसलेशन वगेरा वगेरा कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण आदेश है , जिन्हे कांग्रेस संगठन के विधि विभाग को प्रतिपक्ष में चलते रिसर्च कर तय्यार रखना चाहियें, लेकिन क्या , कांग्रेस संगठन का राष्ट्रिय स्तर पर विधि विभाग कोई खास काम कर रहा ,है सम्मेलन कर रहा हैं , नियुक्तियों के अलावा , या फिर पद लेकर बैठने के अलावा इस विभाग में कई सालों से कुछ नया नज़र नहीं ,आया , हर ज़िले , हर संभाग , हर राज्य में , पुरे देश में इस पर संगठन स्तर पर विचार होना चाहिए , के संगठन में चलते फिरते , एनरोल्ड ,, या स्लीपर एडवोकेट या फिर नेता जी का बस्ता उठाने वाले जी हज़ूरों को , पद देने की जगह ऊँचे ज़िम्मेदार वाले ओहदे , प्रतिभावांन वकीलों को दिए जाएँ , उनकी सलाह पर भरोसा करने , उनकी सलाह हर मुद्दे पर ली जाए , रिसर्च वर्क हो , और फिर विवादित मामलों ,में जिला ,स्तर क़स्बाई स्तर , संभागीय ,स्तर या फिर राज्य राष्ट्रिय स्तर पर अगर कोई चिंतन उभर कर आये , उसकी सलाह , संबंधित मुक़दमे मे फंसे व्यक्ति को दी ,जाए तो ऐसा व्यक्ति , चाहे कितना ही बढ़ा पदाधिकारी हो , वी आई पी ,हो उसके लिए , एक क्लाइंट , एक पक्षकार अनुशासित पक्षकार की तरह , हर सलाह को मानना , तारीख पेशी पर उपस्थित होने की बाध्यता होना चाहिए ,, ,,कोटा में भी एक बार ऐसी ही लापरवाही ,से पहले तो , एक थानाधिकारी ,ने पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर चंद्रभान को , अभियुक्त बना दिया , बाद में उनका नाम चाहें निकल गया हो , वोह थानाधिकारी जी , अब कांग्रेस के चहेते वी आई पी हो गए हो , लेकिन कांग्रेस उस वक़्त चुप रही , एक अन्य मामले में , कोटा में एक विधायक का टिकिट मांग रहे , साथी को , जब तात्कालिक प्रभारी , स्वर्गीय गुरुदास कामत ने पत्र लिखा ,, तो समान नाम होने के मुगालते के ,बाद जिस विधायक प्रत्याक्षी आवेदक को टिकिट नहीं मिला, तो उसने ,, भ्रस्टाचार , बेईमानीपूर्वक , धोखाधड़ी का एक फौजदारी मामला दर्ज करवाया , हाईकोर्ट में , एक रिट की और एफ आर पेश होने पर, प्रोटेस्ट पिटीशन , फौजदारी निगरानी की ,, उस वक़्त गुरुदास कामत , अगर लापरवाही बरतते तो नुकसान होता , ,लेकिन उन्होंने , हिकमत ऐ अमली से इस मामले को निस्तारित किया बाद में उनका निधन भी हो गया ,, ऐसे कई उदाहरण , ,राज्य ,में ज़िलों ,में राष्ट्रिय स्तर पर हैं , ताल्लुका वकील की अलग कार्यशैली ,है जिला कोर्ट के वकील की अलग कार्यशैली , है ,, हाईकोर्ट के वकील के ट्रायल मामलों में समझ कम होती है,,अपील ,, जमानतें , रिट वगेरा मामलों का उन्हें नियमित अभ्यास होता है , जबकि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की भी यही स्थिति है ,, ऐसे में , प्रबंधन तरीके अब तक जो गलतियां हो गईं उन्हें , सुधारें ,, कांग्रेस अपने विधि मानवाधिकार विभाग को ज़िंदा , करे , पद बांटने और लेटर पेड़ छपवाने ,, या फिर नेताओं का बस्ता उठाने से इन्हे अलग कर, स्वतंत्र काम करने का अधिकार ,दें , अगर सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से , हाईकोर्ट के वकीलों से ट्रायल कोर्ट मामले राय लेंगे , या फिर ट्रायल कोर्ट के वकीलों से ,हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट मामले में राय लेंगे , तो नतीजा तो ,, विरोधाभासी आ ही सकता है , ,फिर न्यायिक ,दुरूपयोग का अगर स्वीकारित कोई तथ्य सामने आता है , तो ऐसे आचरण के खिलाफ सुबूत जुटा कर संबंधित जगह पर शिकायत कर ऐसे दुरूपयोग करने वाले को सज़ा भी दिलवाना चाहिए ,, , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
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