में भी
हाड मांस का इंसान हूँ ,
दर्द मुझे भी होता है ,
आंसू मेरे भी आते है ,,
फफक फफक कर रोने का
सर छुपा कर
रोने का मन ,
मेरा भी होता है ,,
कोई हाथ
मेरे बालों को सहलाये ,
कोई हाथ
मेरी पीठ थपथपाये ,,
कोई दे जादू की झपकी मुझे
में हूँ ना कहकर
मेरे गम भुलाये ,,
कोई मेरा भी अपना ऐसा साथ हो ,
मेरा भी मन करता है ,
में भी इंसान हूँ ,
मुझे भी दर्द होता है ,,
लेकिन क्या करूं
मुझे यह सब हक़ कहाँ ,,
में तो एक बाप हूँ ना ,,
बच्चों के आगे , उनकी ख़ुशी की खातिर ,
अपने गम भुलाकर ,
आँखों में आंसू छुपा कर ,
चुप हो जाता हूँ ,
क्यूंकि में एक बाप हूँ ना ,,
में एक शोहर हूँ ना ,
बीवी की की झल्लाहठ ,
बीवी का चिड़चिड़ापन ,
बीवी के ताने ,
गुरबत में उसकी ख्वाहिश
पूरी नहीं करपाने के तनतनाते , ताने ,,
सब कुछ मुस्कुरा कर सुन लेता हूँ ,
में रो नहीं सकता
में गुस्से नहीं हो सकता ,
में रूठ नहीं सकता ,
में एक शोहर हूँ ना ,,
में एक बेटा हूँ ना ,,
माँ गुस्सा , माँ की नाराज़गी ,
नाकामयाबी की तानेबाजी
रोज़ सुनकर भी चुप रहना
मेरी सादत मंदी है ,
में रो नहीं सकता
क्यूंकि में बेटा हूँ ना ,,,
में भाई हूँ ना ,,
रोज़ मर्रा में अपनी माँ पेट के लिए
खुशगवार सोच के बाद भी ,
अपने हाथों में
बाबा जी का ठुल्लू ले लेता हूँ ,
में रो नहीं सकता
क्योंकि में भाई हूँ ना ,,
ऐ अल्लाह तू सुन मेरी ,
में थक गया हूँ
अब में भी रोना चाहता हूँ ,
रोने के लिए में भी एक गोद चाहता हूँ ,
हमदर्दी से कोई झपकी दे मुझे
में भी ऐसा हमदर्द चाहता हूँ ,,
कोई थपथपाये मुझे
ऐसा सहारा मेरे इन अपनों का में भी चाहता हूँ ,
चलो छोडो
यह सब तो नसीब की बातें है ,,
में अकेला हूँ अकेला ही सही ,
ऐ ज़िंदगी में मिटटी का बना हूँ ,
में भी अब दो गज़ ज़मीन मिटटी में
मिल जाना चाहता हूँ ,
यह तहरीर मेरी आखरी हो जाये
ऐ खुदा बस में अब यही चाहता ,हूँ , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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