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25 मार्च 2023

*बूंदी के सीएचसी और पीएचसी पर मिलेगी विशेष जांच सेवाएं*

 

*बूंदी के सीएचसी और पीएचसी पर मिलेगी विशेष जांच सेवाएं*
-स्पीकर बिरला के प्रयासों से सीएसआर के तहत मिली कई प्रकार की जांच मशीनें
कोटा, 24 मार्च। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला के गांवों तक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के संकल्प को बड़ा बल मिला है। बूंदी में पीएचसी और सीएचसी स्तर पर जांच सुविधाओं में सुधार के लिए स्पीकर बिरला के प्रयासों से केंद्रीय भण्डारण निगम ने कई प्रकार की जांच मशीनों के लिए लगभग 1.10 करोड़ की राशि जारी की है। इसके बाद कई सीएचसी और पीएचसी पर किडनी और लीवर जांच सहित कई प्रकार की विशेष जांचें हो सकेंगी।
कोरोना के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी उजागर होने के बाद से ही स्पीकर बिरला छोटे-छोट गांवों तक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए प्रयास कर रहे हैं। उनके हर परिवार स्वस्थ-हर गांव स्वस्थ अभियान के तहत संसदीय क्षेत्र कोटा-बूंदी में चार एंबुलैंस गांव-गांव जाकर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं।
इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति को सुधारने पर भी स्पीकर बिरला का पूरा जोर है। इसके लिए वे पूर्व में भी कोटा और बूंदी में सीएसआर मद से विभिन्न प्रकार के जांच उपकरणों और एंबुलैंस के लिए राशि जारी करवा चुके हैं।
स्पीकर बिरला के प्रयासों से अब केंद्रीय भण्डारण निगम ने सीएसआर मद से बूंदी के पीएचसी और सीएचसी के लिए 109.75 लाख रूपए जारी किए हैं। इस राशि में से सीबीसी जांच की पांच मशीनें खरीदने के लिए खर्च किए जाएंगे। यह मशीनें आने से ग्रामीण स्तर पर हिमोग्लोबिन के साथ प्लेटलेट्स, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी सहित रक्त की अन्य जांच सुविधा मिल सकेगी।
इसके अलावा 51 लाख रूपए की राशि से 3 एक्सरे मशीनें भी खरीदी जाएंगी। सात ईसीजी मशीनें खरीदने पर 8.75 लाख रूपए की राशि व्यय की जाएगी। पेशाब की जांच के लिए 10 लाख रूपए की लागत से 5 मशीनें क्रय की जाएंगी।
*किडनी और लीवर संबंधी जांचें भी होंगी संभव*
स्पीकर बिरला के प्रयासों से केंद्रीय भण्डारण निगम ने सीएसआर मद से जो राशि जारी की है उससे 8 सेमी ऑटो एनालाइजर मशीनें भी खरीदी जाएंगी। यह मशीनें लीवर और किडनी रोग से जुड़ी यूरिया, क्रिएटनिन, लिपिड प्रोफाइल सहित अन्य प्रकार की महत्वपूर्ण जांचों में काम आती है। ग्रामीण स्तर पर इस तरह की मशीनें नहीं होने के कारण अक्सर मरीजों को बीमारी की पहचान ही नहीं हा पाती थी। यह जांचें करवाने के लिए उन्हें बड़े केंद्र पर जाना पड़ता था, जिसमें उन्हें परेशानी और आर्थिक हानि दोनों उठानी पड़ती थी।

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