जयपुर की एक अदालत ने गंभीर मामला मानकर , मृत्युदंड दिया , राजस्थान हाईकोर्ट के दो जजों ने उसकी समीक्षा कर ,, मृत्युदंड तो दूर , पुरे मामले में ही आरोपियों को बरी कर दिया , अब इस मामले में , अगर निचली अदालत से सज़ा देने वाले , जज साहब ,, अख़बार में इंटरव्यू देकर , सार्वजनिक रूप ,से अपना पक्ष रखकर खुद को सही साबित करने की कोशिश करते दिखते हैं , तो क्या यह अधीनस्थ न्यायालय के जज साहब , हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच द्वारा , सुनाये गए आदेश और हाईकोर्ट की अवमानना के दोषी हो सकते हैं , क्या किसी अधीनस्थ न्यायालय के जज को , अपने फैसले को पलटने पर , अख़बार के ज़रिये खुद या अख़बार दुवारा पूंछने पर , स्प्ष्टीकरण का अधिकार मिला है , क्योंकि पहले तो क़ानून में ऐसा नहीं था ,, अख्तर
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