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13 फ़रवरी 2023

हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ ही , बर्फीली पहाड़ियों का देश होता है

 हिमाचल प्रदेश  का शाब्दिक अर्थ ही , बर्फीली  पहाड़ियों का देश होता है , यहां बर्फीली हसीन वादियां है , जो देश विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए काफी है , ,, चम्बा घाटी , डलहौज़ी , धर्मशाला , कुफरी ,मनाली  , कुल्लू , शिमला यहना के बर्फीले पहाड़ों की वादियां है ,, जो खूबसूरत भी हैं , आकर्षक भी हैं ,हिमाचल प्रदेश में चित्रकला का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। प्रदेश की चित्रकला का राष्ट्र के इतिहास में उल्लेखनीय योगदान है। यहां की चित्रकला की संपदा अज्ञात थी। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हिमाचल तथा पंजाब के अनेक स्थानों पर चित्रों के नमूनों की खोज की गई। मैटकाफ प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने कांगड़ा के पुरात्न महलों में चित्रों की खोज की गुलेर, सुजानपुर टीहरा तथा कांगड़ा ऐसे ही स्थान थे, जहां पर यह धरोहर छिपी हुई थी ,,  जो अब पर्यटकों के लिए , महत्वूर्ण हो गई है , , उत्तराखंड , पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है, हिन्दी और संस्कृत में उत्तरखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं, इसका नाम पहले , उत्तरखंड , उत्तरांचल भी रहा है ,, उत्तराखण्ड को 'देवभूमि' के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है पौराणिक काल में इस क्षेत्र में हुए विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा लिए अवतार, यहाँ त्रियुगी-नारायण नामक स्थान पर महादेव ने सती पार्वती से विवाह किया था,
मन्सार नामक स्थान पर सीता माता धरती में धरती में समाई थी,  यह स्थान उत्तराखण्ड के पौडी जिले में है और यहाँ प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है,
कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मन्दिर श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है, कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु को भगवान शंकर से इसी स्थान पर सुदर्शन चक्र मिला था,
सती अनसूया ने उत्तराखण्ड में ही ब्रह्मा, विष्णु, एवँ महेश को बालक बनाया था,
डोईवाला भगवान दत्तात्रेय के २ शिष्यों की निवास भूमि है, यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था,, वर्तमान में यहां धार्मिक स्थल जोशी मठ भौगोलिक दृष्टि से खतरे में आ रहा है , कहते हैं , के पर्वतों के दोहन करने से प्रकृति नाराज़ है , और कुछ साल पहले , यहां भूकंप  , हिमशिखर पिघलने से बाढ़ की खतरनाक स्थिति होने से कई जाने भी गई हैं, , अभी भी , कई मकानों में दरारें लगातार आने से , लोगों के जीवन को खतरा बना हुआ है , इसलिए उत्तराखंड , प्राकृतिक प्रकोप के खतरों से  जूझ रहा है , जिससे  निपटने के लिए , केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार , विषेशज्ञों के सम्पर्क में है , और प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए इस क्षेत्र के लिए विशेष अध्ययन करवा रही है , जो की वर्तमान  खतरनाक हालातों में नाकाफी है , अगर इस समस्या से निपटने के लिए स्थाई रूप से कोई ,  कारगर क़दम नहीं उठाये तो यहां का भविष्य खतरों में ही रहेगा , इसलिए केंद्र सरकार को विशेष पैकेज जारी कर , इस क्षेत्र के अध्ययन के लिए भूगोलवेत्ता , जिओलॉजिस्ट , सहित , हिम स्खलन , पहाड़ों के विशेषज्ञों को बुलाकर,  तत्काल कोई स्थाई समाधान ढूंढना ही चाहिए ,,

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