स्लम एरिया से आई.ए.एस. बनने तक का सफ़र करने वाली उम्मुल खेर को सलाम...*
.. पैरों में 16 फ़्रैक्चर और 8 बार ऑपरेशन होने के बाद भी अपनी मंज़िल को हासिल करने की भरपूर तमन्ना, बेइंतिहा मेहनत, लगन, और मुश्किलों से जूझते हुए जो एक लंबा सफर तय किया है उम्मुल खेर ने वो एक मिसाल है उन लोगों के लिये जो थोड़ी बहुत परेशानी सामने आने पर थक हारकर अपना रास्ता बदल लेते हैं जबकि मंज़िल उनके बहुत नज़दीक, उनका इंतज़ार कर रही होती है, दिल्ली के स्लम एरिया की झुग्गी झोपड़ियों से निकलकर आई.ए.एस. बनने वाली उम्मुल इस वक्त असिस्टेंट कमिश्नर के ओहदे पर फ़ाइज़ हैं..
उम्मुल खेर मूलरूप से राजस्थान के पाली मारवाड़ की रहने वाली हैं, कई दशक पहले उनका परिवार दिल्ली आकर निज़ामुद्दीन के स्लम एरिया की एक झुग्गी झोपड़ी में रहने लगा, उम्मुल के वालिद सड़क के किनारे ठेला लगाकर सामान बेचा करते थे, साल 2001 में जब निज़ामुद्दीन स्थित झुग्गी झोपड़ियाँ हटा दी गई तब उम्मुल खेर के परिवार से यह टूटी फूटी छत भी छिन गई उनका परिवार खुले आसमां के नीचे आ गया, जैसे-तैसे कर दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में किराए का मकान लेकर परिवार रहने लगा तब उम्मुल सिर्फ सातवीं क्लास में थी..
उम्मुल की ज़िंदगी में मुसीबतों का पहाड़ तो तब टूटा जब पढ़ाई के दौरान इनकी वालिदा का इंतकाल हो गया, इनके वालिद ने दूसरी शादी की, सौतेली माँ नही चाहती थी कि उम्मुल आगे और पढ़े 9 वीं क्लास के बाद पढ़ाई छूटने की नौबत आई तब उम्मुल ने पढ़ाई की बजाय घर ही छोड़ दिया और त्रिलोकपुरी इलाके में ही एक किराए का मकान लिया बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई पूरी की..
उम्मुल खेर की संघर्ष भरी जिंदगी ने इसे हिम्मत रखना और मेहनत करना सिखा दिया था, विपरीत हालात में उन्होंने हिम्मत रखकर पढ़ाई की, खूब मेहनत की जिसका नतीजा यह रहा कि दसवीं में 91 और बारहवीं में 90 फीसदी अंक हासिल किए फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया, जे.एन.यू. से पी.जी.की डिग्री ली. उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिये चयन हुआ, 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन हिंदुस्तानी इस प्रोग्राम के लिये सिलेक्ट हुए उम्मुल इनमें चौथी हिंदुस्तानी थी..
उम्मुल खेर की ज़िंदगी में जद्दोजहद सिर्फ इतना ही नही था कि परिवार गरीबी में जी रहा है बल्कि उम्मुल खुद पैदाइश से एक बोन फ्रजाइल डिसीज़ से भी ग्रस्त रहीं जिस वजह से उनके जिस्म की हड्डियां बेहद नाज़ुक रही उनकी हड्डियों में 16 बार फ्रेक्चर हुआ और 8 बार ऑपरेशन करवाना पड़ा..
उम्मुल खेर जे.आर.एफ. करने के बाद यू.पी.एस.सी. की तैयारी में जुट गई, पहली ही कोशिश में 420 वीं रैंक के साथ यू.पी.एस.सी. का इम्तिहान क्लियर किया इन्हें भारतीय राजस्व सेवा में जाने का मौका मिला फिलहाल असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में कार्यरत हैं..
क़ौम सौदागरान (अन्सारी) विकास समिति जोधपुर फ़ख्र महसूस करती है उम्मुल खेर जैसी शख्सियतों पर जिन्होंने मुश्किल राहों पर चलते हुए अपनी मंज़िल को हासिल किया.
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