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28 नवंबर 2021

यौम ए पैदाइश परवीन शाकिर

 

यौम ए पैदाइश परवीन शाकिर
परवीन शाकिर का नाम मुझे लगता है, हर उस दिल में ताउम्र रहेगा जिसने कभी भी मोहब्बत की होगी और उस दोरान प्रेम पत्र में अपने एहसासों को और मज़बूत बनाने के लिए एक दो मिसरे लिखे होंगे परवीन शाकिर उस नर्म नाज़ुक एहसास का नाम है जो ना तो उनसे पहले और ना तो उनके बाद अभी तक दिखी है उर्दू शायरी में हर मिसरा मन करता है गुनगुना लें हर ग़ज़ल गीत नज़्म इतनी सादगी से लिखी हुई है जैसे लगता है हर लफ्ज़ आपस में गुफ्तगू कर रहे हों पूरा फ़न मोहब्ब्त से ओत प्रोत, जिसमे कोई बनावट नहीं इसलिए वो अपनी ज़िंदगी के इतने करीब लगती है मानो वो शेर परवीन शाकिर नहीं हम कह रहे हैं,
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
दिल पे उतरेंगे वही ख़्वाब अज़ाबों की तरह
राख के ढेर पे अब रात बसर करनी है
जल चुके हैं मिरे ख़ेमे मिरे ख़्वाबों की तरह
साअत-ए-दीद कि आरिज़ हैं गुलाबी अब तक
अव्वलीं लम्हों के गुलनार हिजाबों की तरह
वो समुंदर है तो फिर रूह को शादाब करे
तिश्नगी क्यूँ मुझे देता है सराबों की तरह
ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह
याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन
शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
तेरा मेआ'र बदलता है निसाबों की तरह
शोख़ हो जाती है अब भी तिरी आँखों की चमक
गाहे गाहे तिरे दिलचस्प जवाबों की तरह
हिज्र की शब मिरी तन्हाई पे दस्तक देगी
तेरी ख़ुश-बू मिरे खोए हुए ख़्वाबों की तरह
---परवीन शाकिर



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