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20 नवंबर 2021

सियासत में कुर्सी की भूख में गिरावट की पराकाष्ठा ही कहेंगे , जिस तरह से गुरुपर्व पर ,, एक प्रधानमंत्री ने

 सियासत में कुर्सी की भूख  में गिरावट की पराकाष्ठा ही कहेंगे , जिस तरह से गुरुपर्व पर  ,, एक प्रधानमंत्री ने किसानों के काले क़ानूनों पर खुद की गलती माने बगैर ,, किसानों को नासमझ बता कर ,, खुद को उन्हें नहीं समझाने के लिए माफ़ी मांगते हुए ,, तीनों कृषि क़ानून वापस लेने की , संदिग्ध घोषणा की है ,, कहते हैं , अंग्रेज़ों के वक़्त भी ,आंदोलन कुचलने के लिए जो इस किसान आंदोलन को कुचलने के लिए गंदगी फैलाई गयी , हत्याएं की गयीं , गाड़ियों से , किसानों को रोंदा गया  , यह सब होता रहा है ,, लेकिन इस तरह की चोरी और सीना जोरी के चुनावी सियासत , वोटों की चोट की हक़ीक़त जानकर , कृषि क़ानून वापस लेते वक़्त जो टिप्पणियां है , वोह अंग्रेज़ों के ज़ुल्म ज़्यादतियों के वक़्त भी नहीं हुई ,, एक प्रधानमंत्री की टिप्पणी , में हठधर्मिता देखिये , में देश वासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से कहना चाहता हूँ , कि शायद हमारी तपस्या में कमी रही होगी ,, जिसके चलते दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसने भाइयों को हम समझा नहीं पाए ,, कहावत रस्सी जल गयी ,, लेकिन बल नहीं निकला ,, चरितार्थ होती है ,, प्रधानमंत्री का यह कथन  ,कितना कुंठा वाला , किसानों को अपमानित करने वाला है , वोह इस कृषि क़ानून के खिलाफ ,, कुछ नहीं बोले , खुद के क़ानून की बुराई नहीं की , उलटे आंदोलनकारियों को , कुछ किसान , कहकर सम्बोधित किया , उन्होंने किसानों से माफ़ी नहीं मांगी ,  उन्होंने किसानों की हत्या ,, किसानों की अकाल मौतों पर , आंसू बहाना तो दूर , श्रद्धांजलि देकर , अपना कर्तव्य भी निर्वहन नहीं किया ,, उलटे बोलते है , हम , इस दीये की तरह सच को , कुछ किसान , यानी यह मानते हुए के ,,अधिकतम किसान तो इस क़ानून के पक्ष में है ,बाक़ी कुछ किसानों को हम समझाने में असर्मथ रहे ,, उन्होंने माफ़ी  भी किसानों से नहीं मांगी , इन कुछ किसानो से भी माफ़ी नहीं मांगी , ,सिर्फ खुद की गलती , के वोह कुछ किसानों को इस सच को समझा नहीं पाए ,, इस पर माफ़ी मांगी है ,, तो जनाब , एक प्रधानमंत्री को , इतना बातों की लफ़्फ़ाज़ी के साथ , किसानो के साथ , छल कपट नहीं करना चाहिए , और पंजाब के उन पूर्व मुख्यमंत्री केप्टिन अमरिदंर सिंह साहिब को देखिये , वोह भी , इसे खुद की जीत बता रहे है , तो क्या कैप्टेन अमरेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़ते ही , भाजपा का अप्रत्यक्ष दामन थामंते ही ,, किसानों के प्रति अपने विचार बदल लिए ,, क्या अमरिंदर सिंह ,, पहले जब कांग्रेस में थे तब गलत थे , के सभी किसान इस कृषि क़ानून के तीनों बिलों के खिलाफ रहे है , क्या अब कैप्टेन अमरिंदर सिंह , ,आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय की उस बात से सहमत है , के कुछ किसान ,, जिन्हे प्रधानमंत्री समझा पाने में असफल रहे , क्या सिर्फ कुछ किसान ही इस क़ानून के खिलाफ थे , और अगर बहुमत किसानों का उनके साथ था तो फिर , कुछ किसानों के आगे झुकने की ज़रूरत क्या थी ,, खेर शुक्र है खुदा का , ,के प्रकाश पर्व पर भी ,, ,अँधेरा फैलाने वाले , अँधेरा फैलाने में नाकामयाब रहे , हाँ , मिडिया  को मैनेज करके , हक़ीक़त की पोल खोलने से ज़रूर मीडिया को रोक दिया गया ,, जो हमेशा होता है , शायद होता भी रहे ,, किसानों को इस गुरु पर्व पर , अपने गुरु का आदेश याद रहा , वोह , केप्टिन अमरिंदर सिंह , और आदरणीय प्रधानमंत्री के जुमलों के षड्यंत्र में नहीं आये , उन्होंने बढे गर्व से , अपने अनुभवों के आधार पर , इस घोषणा को , रिजेक्ट करते हुए , इसके सुबूत के तोर पर , लोकसभा , राज्य सभा में , इस क़ानून को रिपील करने तक , आंदोलन करने का लक्ष्य रखा है , देश में नहीं , विश्व में पहली बार इतना बढ़ा ,, लोकतान्त्रिक तरीके से किया जा रहा आन्दोलन , अपना एक इतिहास रच रहा है , जिसे लाठी के बल पर , गोली के बल पर , लोगों को रोंदे जाने के बल पर , गाड़ियों से कुचलने के बल पर , आपसी फुट फुटव्वल के बल पर , मुखबीरों के बल पर ,, किसी भी तरह से यह लोग ,, आन्दोलन कुचलने में नाकामयाब रहे है , झुके तो है , लेकिन फिर किसी एक षड्यंत्र के साथ ,सियासी मजबूरी , वोटों की मजबूरी के साथ ,,जो गलत था , उसे गलत स्वीकार कीजिये ,, सीधा अपनी गलती मानिये , जो लोग ,, जो किसान , इस ज़िद्द के आगे शहीद हुए हैं , जिनके परिजन अनाथ हो गये ,, उनसे माफ़ी मांगिये  ,, मृतक किसानों को श्रद्धांजलि दीजिए ,, जिस गृहमंत्री ने , पहले चेतावनी दी ,फिर षड्यंत्र रच  कर अपने बेटे के ज़रिये ,  किसानों को कुचलवाकर , गोलियों से , ह्त्या करवाई है , उस ग्रह मंत्री को तुरंत पद से बर्खास्त कर जेल भेजा जाना चाहिए था , जो नहीं किया ,, क्योंकि ,, जिसने दुनिया कर लो मुट्ठी का नारा दिया , वोह इस सरकार को अपनी मुठ्ठी में रखता है , और उसी मुट्ठी में , देश के कुछ बुद्धिजीवी अपने अक़्ल गिरवी रखकर ,भटक जन बन गये है , कुछ नहीं अधिकतम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , प्रिंट मिडिया सभी तो , उनकी मुट्ठी में है , जो ऐसे मुद्दों पर , पोलखोल , डिबेट नहीं करवा रहे हैं , जो सच नहीं दिखा रहे है , ,लेकिन सत्यमेव जयते  ,सच की जीत होती है , कोई भी ज़ालिम ,, कोई भी षड्यंत्र ,, कोई भी प्रधान , कोई भी ताक़त , कोई भी पूंजीपति , सत्य से बढ़ा नहीं हो सकता ,और फिर किसान , अन्नदाता , जय जवान , जय किसान , इस देश के धरती पुत्रों से ,, उनकी अहिंसात्मक गाँधीवादी आंदोलन से  कभी कोई जीता है , ना कभी कोई जीतेगा , अफ़सोस तो यह है के , ज़ालिमों को अभी भी सद्बुद्धि नहीं आयी है , वर्ना केंद्रीय ग्रह मंत्री के पुत्र और साथियों द्वारा , केंद्रीय ग्रह मंत्री के पूर्व धमकी को चरितार्थ करते हुए ,, जलियावाला बाग़ के जनरल डायर बनकर जो नरसंहार करने की कोशिश की थी  , उसके लिए तत्काल एक्शन होता , उसके लिए सार्वजनिक माफ़ी होती , लेकिन , सिर्फ चुनाव में हार जाने के डर से यह दिखावा करने वाले लोग , किसी भी हद तक गिरकर , सिर्फ वोट हांसिल कर सरकार बनाने वाले लोग , देश चलाना क्या जाने , देश की संवेदनाये , भूख ,गरीबी , रोटी , कपड़ा मकान , रोज़गार ,, महंगाई , जैसी समस्याओं के साथ , किसान मज़दूरों का दर्द किया जाने ,, लेकिन अब जैसे श्वान के ,, बच्चों की आँखे बंद होने के बाद कुछ दिन  वोह अंधे रहते है , फिर कुछ दिन बाद जब वोह आखें खोलते है , तो फिर वोह सच देखते है , दुनिया देखते  है  और वहां से चले जाते है , कमोबेश अब देश में इसी तरह का एक नया इतिहास बनने जा रहा है ,भटकजनों की राह भटकने के बाद वोह फिर से राह पर आ रहे है ,,, ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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