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08 अक्तूबर 2021

दीदी लक्ष्मी शर्मा की वॉल से

 

दीदी लक्ष्मी शर्मा की वॉल से,
नोबल शान्ति पुरस्कार के लिए दो पत्रकारों का चयन लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ के अब तक बने रहने और ढांचे को सम्भाले रहने की उम्मीद जगाती खबर है।
हमारे देश से हर बार की तरह इस बार भी नोबल पुरस्कार के लिए किसी को नहीं चुना गया ये विडम्बना है।
यद्यपि इन पुरस्कारों में राजनीतिक हस्तक्षेप की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता फिर भी विचारणीय है कि किसी भी क्षेत्र में क्या हमारे पास ऐसा कोई है जिसके लिए सोचा जाए?
नहीं है
पत्रकारिता के क्षेत्र में देखें तो इस समय हमारे बहुत से पत्रकार स्वार्थ-सिद्धि के चलते अपने-अपने संरक्षकों की चाटुकारिता में लगे हैं और येन-केन-प्रकारेण अशांति के दूत बने हुए हैं। समाज-सरोकार, प्रतिरोध की आवाज, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर मुँह सिए रहते हैं। इनके लिए वैश्विक मुद्दों से ज्यादा श्रीदेवी डूबी वो टब ज्यादा महत्वपूर्ण है।
यही हाल दूसरे इलाकों में है चाहे साहित्य हो, अर्थशास्त्र, चिकित्सा या विज्ञान।
काम कम, प्रायोजन ज्यादा करने वाले, तिकड़म से पुरस्कार जुटाने वाले, उंगली कटा कर शहीदों
में नाम लिखाने वाले हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के वारिस, जो डिजर्व करते हैं वही तो मिलेगा।

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