यूँ तो रीट परीक्षा अव्यवहारिक है ,गैर ज़रूरी है , लेकिन जिसने भी रिट परीक्षा को थोपा है , यक़ीनन उसका शुक्रिया क्यूंकि इस रिट परीक्षा के इन्तिज़ामों ने , ब्यूरोक्रेट्स , अफसरशाह लोगों , और मानवताविहीन धर्म की पोल खोलकर रख दी ,है ,, जी हाँ दोस्तों , रिट परीक्षा को लेकर पुरे राजस्थान में हां हां कार है , करोड़ो रूपये फीस देने के बावजूद भी , क़रीब 15 लाख छात्र , छात्राएं , पुरे राजस्थान के अलग अलग ज़िलों में , दर दर भटकेंगे , जबकि प्रशासन इन सब की तय्यारियों को लेकर सजग , सतर्क है , और चिंतित भी है , मंत्री मंडल की बैठक में इस पर चर्चा हुई , रिट कर्फ्यू के हालात बने हुए है , टीपने से रोकने के लिए , इंटरनेट सुविधाएं बंद करने जैसे फैसले भी हुए है , लेकिन इस परीक्षा में परीक्षार्थियों की व्यवस्था के जज़्बे ,ने धर्म , मज़हब , मानवीयता को ताक में रख दिया ,, यहां समाजों का , अपनों का , तेरे मेरे का जज़्बा खुलकर सामने आया है , यूँ तो सभी को अपने अपने समाज के लोगों की ज़िम्मेदारी निभाने का हक़ है , लेकिन यह भारत देश , जहाँ हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई जैसे मानवीय शिक्षा वाले धर्मों का देश है ,इन धर्मों में ,व्यक्ति , धर्म , धर्म के फॉलोअर से ज़्यादा , मुसाफिर , ज़रूरतमंद , बिमार की सेवा बिना उसका धर्म , जाने किये जाने के धार्मिक निर्देश भी है , और यहां की संस्कृति भी है ,लेकिन रिट की इस परीक्षा ने , हर ज़िले ,कस्बे को , धर्म से अलग हठ ,कर मानवीय धर्म से अलग हठ ,कर धर्म की शिक्षा से लग हठ कर ,व्यवस्थाओं में , हिन्दू , मुस्लिम ,इनमे भी , सामाजिक व्यवस्था के तहत , अलग अलग समाजों की व्यवस्थाएं , धर्म शालाएं , रहने , ठहरने के इंतिज़ाम से , भारत की मिली जुली मानवीय संस्कृति को धक्का पहुंचाया है , क्या फ़र्क़ पढ़ता है , ,अगर रिट दने आने वाला बेटा या बेटी , उसके परिजन , हिन्दू है , मुसलमान ,है पठान है , अंसारी है , नीलगर है , या फिर ब्राह्मण है , मीणा है , बैरवा है , जाट हैं , या अलग अलग समाजों के है , कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता , व्यवस्थाएं हर केम्प में हर समाज में , सभी के लिए , धार्मिक निर्देशों के अनुरूप , एक जगह होती तो , बिखराव नहीं होता , अब सोशल मीडिया पर इस व्यवस्था का मज़ाक़ भी उड़ाया जा रहा है , के , रिट परीक्षा देने आये एक शहर के चार लोग , एक बस से पहुंचेंगे , और पहुंच कर , अपने अपने समाज की धर्मशालाओं में , अलग अलग बिखर जाएंगे , यह मज़ाक़ हो सकता है , लेकिन इसे सोचिये ,गंभीर चिंतन कीजिये , हम इस देश को , इस समाज को , धार्मिक शिक्षाओं के खिलाफ , ज़रूरतमंदों की मदद मामले में , मानवीय मूल्यों के खिलाफ , आखिर कब तक जाति समाजों में बांटते रहेंगे , खेर कुछ लोग तो , कुछ कथित राष्ट्रभक्तों की निगाह ,में गद्दार है , हिंसक है ,झगड़ालू है लेकिन सो कोल्ड राष्ट्रभक्त , सो कोल्ड हिन्दुस्तानी , सो कोल्ड हिन्दू संकृति के लोग ,जो पुरे देश को हिन्दू संस्कृति कहते है , वोह तो अपने संस्कार बताते , वोह तो हर ज़िले ,में उनके अपने केम्प ,में मदद बिना किसी समाज , बिना किसी धर्म , के सर्वसमाज , सर्वधर्म का मदद केम्प लगाकर , मदद देते , अनूठा उदाहरण पेश करते , लेकिन जुबां से कहना , इन जुमलों पर सियासत करना , और वक़्त आने पर , अपने कहे से मुकर जाना , बदल जाना ,रष्ट्रभक्ति नहीं , देश और देशवासियों का अपमान है ,उनसे गद्दारी है , उनके साथ धोखा है ,, और ऐसे ,धोखेबाज़ किसी भी धर्म , किसी भी सियासी पार्टी , किसी भी समाज के हों , उनके खिलाफ अब देश की जनता को मोर्चा खोलना होगा , दूसरे प्रशासन , अफसरशाही की तो हदें पार हो गयीं , रिट के आवेदन , फिर रिट के प्रवेश पत्रों में , नाम , लिंग , फोटो बदलने की तो प्रथमद्रष्ट्या इस व्यवस्था की नाकामयाबी का बढ़ा उदाहरण ,है दूसरी तरफ ,, पुरे राज्य ,में जब रिट परीक्षार्थियों की संख्या पूर्व निर्धारित है , तो इसे पूर्व प्रंबधन के तहत , जिलेवार आसानी से करवाई जा सकती थी ,, हर ज़िले में ,, सरकारी स्कूल चाहे प्राइमरी हों , चाहे , सेकेंडरी , चाहे हायर सेकेंडरी , सरकारी स्कूलों की संख्या काफी ,है जबकि निजी स्कूलों की बढ़ी बढ़ी बिल्डिंग , बढे बढे कमरे हैं , कॉलेजेज है , यानी हर ज़िले में , प्राइवेट और सरकारी स्कूल मिलाकर कम से कम 400 की संख्या तो है ही सही , जबकि सराय , मुसाफिर खाने , समाजों के जमात खाने , शादीघर , भी है ,, इंजीनियरिंग कॉलेज , कॉलेज , भी हर ज़िले में ,कमसे कम बीस से तीस है , जबकि बढे ज़िलों में यह संख्या , सो तक है ,और स्कूलों की स्ख्न्या हज़ार तक भी है ,ऐसे में , एक स्कूल में , व्यस्थाएं बिठाकर ,एवरेज सो बच्चों का भी सेंटर होता , तो एक ज़िले में ,पचास हज़ार कमसे कम बच्चों के एक्ज़ाम करवाए जा सकते थे , बढ़े ज़िलों में यह संख्या बढ़ाई जा सकती थी ,, ऐसे में , हर परीक्षार्थी अपने ही ज़िले ,में थोड़ी बहुत परेशानी झेलकर , ग्रामीण स्कूलों में , कस्बे स्कूलों कॉलेज , पंचायत भवन , मदरसों , मुसाफ़िरख़ानों , कोचिंग , वगेरा में , परीक्षाएं दे सकता था , लेकिन कौन समझाये अफसरों को , ऐसे में जब अधिकतम अफसरों का लक्ष्य , काम करने से ज़्यादा अपने अपने मंत्रियों को खुश करने का हो , बाद ,में सेवानिवृत्ति के बाद , आयोगों , में चेयरमेन , विधायक , ,सांसद , महापौर , बनने का हो , तो उनका टारगेट तो बस यही है , उनका टारगेट अब लोकसेवक , यानी जनता की सेवा नहीं रहा , दफ्तरों में बैठना , पर्ची के बगैर किसी से नहीं मिलना , पर्चियां पहुंचने पर भी , चैंबर में , कैमरों से बाहर बैठे लोगों को देखना , और अपने अधिकारीयों के साथ गपशप ,को मीटिंग का नाम ,देकर साहिब मीटिंग में व्यस्त है , साहब बाथरूम में है , इसीलिए तो मंत्रियों की जनसुनवाई में ,छोटी छोटी परेशानियों को लेकर , हज़ारों की भीड़ उमड़ती है , मुख्यमंत्री पोर्टल ,पर लाखों लाख शिकायतें है , कलेक्टर , की जनसुनवाई में ,हज़ारों की उपस्थिति होती है , पुलिस में तो ओपन जनसुनवाई का कंसेप्ट खत्म ही हो चुका है ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 सितंबर 2021
यूँ तो रीट परीक्षा अव्यवहारिक है ,गैर ज़रूरी है , लेकिन जिसने भी रिट परीक्षा को थोपा है , यक़ीनन उसका शुक्रिया क्यूंकि इस रिट परीक्षा के इन्तिज़ामों ने , ब्यूरोक्रेट्स , अफसरशाह लोगों , और मानवताविहीन धर्म की पोल खोलकर रख दी ,है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)