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23 सितंबर 2021

यूँ तो रीट परीक्षा अव्यवहारिक है ,गैर ज़रूरी है , लेकिन जिसने भी रिट परीक्षा को थोपा है , यक़ीनन उसका शुक्रिया क्यूंकि इस रिट परीक्षा के इन्तिज़ामों ने , ब्यूरोक्रेट्स , अफसरशाह लोगों , और मानवताविहीन धर्म की पोल खोलकर रख दी ,है

 यूँ  तो रीट परीक्षा अव्यवहारिक है ,गैर ज़रूरी है , लेकिन जिसने भी रिट परीक्षा को थोपा है , यक़ीनन उसका शुक्रिया क्यूंकि इस रिट परीक्षा के इन्तिज़ामों ने , ब्यूरोक्रेट्स , अफसरशाह लोगों , और मानवताविहीन धर्म की पोल खोलकर रख दी ,है  ,, जी हाँ दोस्तों , रिट  परीक्षा  को लेकर पुरे राजस्थान में हां हां कार है ,  करोड़ो रूपये फीस देने के बावजूद भी , क़रीब 15 लाख छात्र , छात्राएं , पुरे राजस्थान के अलग अलग ज़िलों में , दर दर भटकेंगे , जबकि प्रशासन    इन सब की तय्यारियों को लेकर सजग , सतर्क है , और चिंतित भी है , मंत्री मंडल की बैठक में इस पर चर्चा हुई , रिट कर्फ्यू के हालात बने हुए है , टीपने से रोकने के लिए , इंटरनेट सुविधाएं बंद करने जैसे फैसले भी हुए है , लेकिन  इस परीक्षा में परीक्षार्थियों की व्यवस्था के जज़्बे ,ने  धर्म , मज़हब , मानवीयता को ताक में रख दिया  ,, यहां समाजों का , अपनों का , तेरे मेरे का जज़्बा खुलकर सामने आया है , यूँ तो सभी को अपने अपने समाज के लोगों की ज़िम्मेदारी निभाने का हक़ है , लेकिन यह भारत देश , जहाँ हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई जैसे मानवीय शिक्षा वाले धर्मों का देश है ,इन धर्मों में ,व्यक्ति , धर्म , धर्म के फॉलोअर से ज़्यादा , मुसाफिर , ज़रूरतमंद , बिमार की सेवा बिना उसका धर्म , जाने किये जाने के धार्मिक निर्देश भी है , और यहां की संस्कृति भी है ,लेकिन रिट  की इस परीक्षा ने , हर ज़िले ,कस्बे को , धर्म से अलग हठ ,कर  मानवीय धर्म से अलग हठ ,कर  धर्म की  शिक्षा से लग हठ कर ,व्यवस्थाओं में , हिन्दू , मुस्लिम ,इनमे भी , सामाजिक व्यवस्था के तहत , अलग अलग समाजों की व्यवस्थाएं , धर्म शालाएं , रहने , ठहरने के इंतिज़ाम से , भारत की मिली जुली मानवीय संस्कृति को धक्का पहुंचाया है , क्या फ़र्क़ पढ़ता है , ,अगर रिट दने आने वाला बेटा या बेटी , उसके परिजन , हिन्दू है , मुसलमान ,है  पठान है , अंसारी है , नीलगर है ,  या फिर ब्राह्मण है ,  मीणा है , बैरवा है , जाट हैं ,  या अलग अलग समाजों के है , कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता , व्यवस्थाएं हर केम्प में हर समाज में , सभी के लिए , धार्मिक निर्देशों के अनुरूप ,  एक जगह होती तो , बिखराव नहीं होता ,  अब सोशल मीडिया पर इस व्यवस्था का मज़ाक़ भी उड़ाया जा रहा है , के , रिट परीक्षा देने आये एक शहर के चार लोग , एक बस से पहुंचेंगे , और पहुंच कर , अपने अपने समाज की धर्मशालाओं में , अलग अलग बिखर जाएंगे , यह मज़ाक़ हो सकता है ,  लेकिन इसे सोचिये ,गंभीर चिंतन कीजिये , हम इस  देश को , इस समाज को , धार्मिक शिक्षाओं के खिलाफ , ज़रूरतमंदों की मदद मामले में , मानवीय मूल्यों के खिलाफ ,  आखिर कब तक जाति समाजों में बांटते रहेंगे , खेर कुछ लोग तो , कुछ कथित राष्ट्रभक्तों की निगाह ,में  गद्दार है ,  हिंसक है ,झगड़ालू है  लेकिन सो कोल्ड राष्ट्रभक्त ,  सो कोल्ड हिन्दुस्तानी , सो कोल्ड हिन्दू संकृति के लोग ,जो पुरे देश को हिन्दू संस्कृति कहते है , वोह तो अपने संस्कार बताते  , वोह तो हर ज़िले ,में उनके अपने केम्प ,में मदद बिना किसी समाज , बिना किसी धर्म , के सर्वसमाज , सर्वधर्म का मदद केम्प लगाकर , मदद देते , अनूठा उदाहरण पेश करते , लेकिन जुबां से कहना , इन   जुमलों पर सियासत करना , और वक़्त आने पर , अपने कहे से मुकर जाना , बदल जाना ,रष्ट्रभक्ति नहीं ,  देश और देशवासियों का अपमान है ,उनसे गद्दारी है  , उनके साथ धोखा है ,, और ऐसे ,धोखेबाज़   किसी  भी  धर्म , किसी भी सियासी पार्टी , किसी भी समाज  के हों ,  उनके खिलाफ अब देश की जनता को मोर्चा खोलना होगा , दूसरे प्रशासन , अफसरशाही की तो हदें पार हो  गयीं , रिट के आवेदन ,  फिर रिट  के प्रवेश पत्रों में , नाम  , लिंग , फोटो बदलने की तो प्रथमद्रष्ट्या इस    व्यवस्था की नाकामयाबी का बढ़ा उदाहरण ,है  दूसरी तरफ ,, पुरे राज्य ,में  जब रिट परीक्षार्थियों की संख्या पूर्व निर्धारित है , तो इसे पूर्व     प्रंबधन के तहत , जिलेवार आसानी से करवाई जा सकती थी ,, हर  ज़िले में ,, सरकारी स्कूल चाहे प्राइमरी हों , चाहे , सेकेंडरी , चाहे हायर सेकेंडरी ,   सरकारी स्कूलों की संख्या काफी ,है जबकि निजी स्कूलों की बढ़ी बढ़ी बिल्डिंग , बढे बढे कमरे हैं ,  कॉलेजेज है , यानी हर ज़िले में , प्राइवेट और सरकारी स्कूल मिलाकर कम से कम 400 की संख्या तो है ही सही , जबकि सराय , मुसाफिर खाने , समाजों के जमात खाने , शादीघर , भी है  ,,  इंजीनियरिंग कॉलेज ,  कॉलेज , भी हर ज़िले में ,कमसे कम   बीस से तीस है , जबकि बढे ज़िलों में यह संख्या , सो तक है ,और स्कूलों की स्ख्न्या हज़ार तक भी है ,ऐसे में , एक स्कूल में , व्यस्थाएं बिठाकर ,एवरेज सो बच्चों का भी सेंटर होता , तो एक ज़िले में ,पचास हज़ार कमसे कम बच्चों के एक्ज़ाम करवाए जा सकते थे , बढ़े ज़िलों में यह संख्या बढ़ाई जा सकती थी ,, ऐसे में , हर परीक्षार्थी अपने ही ज़िले ,में थोड़ी बहुत परेशानी झेलकर , ग्रामीण स्कूलों में , कस्बे स्कूलों कॉलेज , पंचायत भवन , मदरसों , मुसाफ़िरख़ानों , कोचिंग , वगेरा में , परीक्षाएं दे सकता था , लेकिन कौन समझाये अफसरों को , ऐसे में जब अधिकतम अफसरों का लक्ष्य , काम करने से ज़्यादा अपने अपने मंत्रियों को खुश करने का हो , बाद ,में   सेवानिवृत्ति के बाद , आयोगों ,  में चेयरमेन , विधायक , ,सांसद , महापौर , बनने का हो , तो उनका टारगेट तो बस यही  है ,  उनका टारगेट अब लोकसेवक , यानी जनता की सेवा नहीं रहा , दफ्तरों में बैठना , पर्ची के बगैर किसी से नहीं मिलना , पर्चियां पहुंचने पर भी ,  चैंबर में , कैमरों से बाहर बैठे लोगों को देखना ,  और अपने अधिकारीयों के साथ गपशप  ,को  मीटिंग का नाम ,देकर साहिब मीटिंग में व्यस्त है ,  साहब बाथरूम में है , इसीलिए तो मंत्रियों की जनसुनवाई में ,छोटी  छोटी परेशानियों को लेकर , हज़ारों की भीड़ उमड़ती है , मुख्यमंत्री पोर्टल ,पर  लाखों लाख शिकायतें  है ,  कलेक्टर ,  की जनसुनवाई में ,हज़ारों की उपस्थिति होती है , पुलिस में तो  ओपन जनसुनवाई का कंसेप्ट खत्म ही हो चुका है ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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