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19 सितंबर 2021

यक़ीनन साहित्य व्यापार नहीं होता , बेचने के लिए नहीं होता , सिर्फ साहित्य एक सृजन होता है , एक अनुभव होता है , एक दर्पण होता है , पुराने अनुभवों के साथ , भविष्य के बदलाव का ,, भविष्य के सुधार का संकेत होता है , कमोबेश यही सोच , यही विचार , , प्रसिद्ध साहित्यकार ,भाई बृजेन्द्र कौशिक के है

 यक़ीनन साहित्य व्यापार नहीं होता , बेचने के लिए नहीं होता , सिर्फ साहित्य एक सृजन होता है , एक अनुभव होता है , एक दर्पण होता है , पुराने अनुभवों के साथ , भविष्य के बदलाव का ,, भविष्य के सुधार का संकेत होता है , कमोबेश यही सोच , यही विचार , , प्रसिद्ध साहित्यकार ,भाई बृजेन्द्र कौशिक के है , ,जो उनके द्वारा लिखित साहित्यिक पुस्तकों का सृजन करते है , वितरण करते है , लेकिन विक्रय नहीं करते , उनकी पुस्तक पर नोट अंकित है , कौशिक जी का साहित्य बेचने के लिए नहीं है , लेकिन शोधार्थी निशुल्क  प्राप्त कर सकते है , कहने को छोटी सी  बात है , लेकिन साहित्य को व्यवसाय बनाने वाले , प्रकाशकों के लिए , इनके यह वचन ,, इनकी यह सीख , एक बदलाव के संकेत है , यक़ीनन समाज बदल रहा है ,रोज़ नए क़िस्से , नई कहानियां , नए अनुभव् , नए दर्द , नई खुशियां , हर शख्स की ज़िंदगी में  मचल रहे  है , ,लेकिन इन अनुभवों को , छोटे छोटे अल्फ़ाज़ों में , एक अतुकांत कविता के रूप में , एक गद्य , पद्य के रूप में साहित्यिक सृजन बनाकर , आम लोगों के दिलों को झकझोरने वाला प्रकाशन बनाकर पेश करने की कला , सिर्फ , और सिर्फ , भाई बृजेन्द्र कौशिक साहिब की है , उन्हें उनके लेखन के लिए बधाई , मुबारकबाद , अभी एक हफ्ते पहले , फोन की घंटी बजी , बृजेन्द्र कौशिक जी ने ,डाक का पता पूंछा , में विचलित हो गया , क्योंकि डाक का पता पूंछते ही , मेरे  अंदर की घंटियां बजने लगीं , ,सोचने लगा , बहुत दिनों बात , बहुत महीनों बाद , आज के नए हालातों पर , मुझे कुछ ना कुछ , नए अनुभवों की सीख एक पुस्तक के रूप में , एक साहित्य के रूप में मिलने वाली है , मेरी बेचैनियां रोज़ बढ़ रही थीं , नियमित में अपने दफ्तर में , कोई किताब आयी क्या ,, एक सवाल के साथ ,पूंछता था , खेर इन्तिज़ार की घड़ियां खत्म हुईं  ,,, शनिवार को ,दफ्तर में मुझे , एक पुस्तक , कल कभी नहीं आता , के नाम से दिखी ,, मेने सभी काम छोड़कर ,तुरतं उस पुस्तक को झपट लिया , यक़ीन मानिये ,, ना खाना खाया , ना ही पेंडिंग काम किया , , कल कभी नहीं आता ,, पुस्तक को झपट्टा मारा , और पढ़ना  शुरू किया ,, 104 पृष्ठ की इस पुस्तक में , हर एक ज्वलंत मुद्दे पर ,  104  शीर्षक से अलग अलग ,, मुद्दों पर ,, जीवंत साहित्य था ,, रोज़ मर्रा की ज़िंदगी की कहानियां थी , में पढ़ता रहा , मुझे मेरी  आत्मा कभी झकझोरती ,, कभी कोरोना की यादों में ले जाती , कभी लोकडाउन की बेरोज़गारी , भुखमरी ,, बेबसी , लाचारी क  की तरफ हालातों की याद दिलाती , कभी गरीबों  की गरीबी का अहसास होता , तो कभी , पंद्रह अगस्त , छब्बीस जनवरी जैसे पर्व पर , हर ज़िले , हर कस्बे , सहित राजधानियों में आयोजित कार्यक्रमों पर , अरबों  अरब रूपये खर्च के बाद ,, गिनती के लोगों की मौजूदगी में , एक समाज के लिए हिक़ारत की नज़र से देखे जाने वाले व्यक्ति के निर्वाचन के बाद , उसी से इस पर्व के झंडे के लहराने के उन पलों को याद करता , कभी किसान की मजबूरी , तो मज़दूर की तड़प , तो कभी एक पिता का कर्तव्य , तो कभी पति , पत्नी की नोकझोंक , कभी मालिक नौकर के क़िस्से , तो कभी अमीरी , गरीबी के बीच , मानवीयता का फ़र्क़ , तो कभी सूदखोर बनिये का अनुभव , तो कभी मददगार क़र्ज़ा देने वाले , बिना सूद देने वाले मददगार की हैसियत का अहसास होता , कभी भूखों को खाना खिलाकर , सुकून हांसिल करने वाले की तृप्ति , तो कभी सास , बहु की खटखटाहट , तो कभी पिता की पुत्र को सीख , तो कभी एक बेबस लाचार माँ , लाचार बाप की अपने बच्चों के लिए , दो रोटी तलाश का दर्दनाक अहसास , सभी कुछ तो इस पुस्तक में , है , हर क़िस्सा कुछ अल्फ़ाज़ों में ही , जीवंत है , अहसास है ,ज़िंदगी का हर पड़ाव इस पुस्तक की 104 लघु कथाओं में छुपा है , जज़्बात ,  अनुभव ,  होते है , लेकिन अल्फ़ाज़ों में उन्हें उकेरना ,, यक़ीनन साहित्यकार बृजेन्द्र कौशिक साहिब की कारीगरी ही कही जायेगी , बृजेन्द्र कौशिक एक कॉमरेड है , लाल सलाम ज़िंदाबाद हैं , इनकी  लेखनी में , मशहूर साहित्यकार , प्रेमचंद का अक्स है , रोज़ मर्रा की ज़िंदगी है , रोज़मर्रा की ज़िंदगी के अनुभव , कड़वाहट , मिठास , शामिल है ,  व्यवस्थाओं के खिलाफ बगावत है , तो वर्तमान नफरत भरी सियासत के माहौल में , मोहब्बत , प्यार , क़ौमी एकता का पैगाम है , इनकी कहानियों में किरदार कालपनिक हो सकते है , लेकिन ,इन सब में  अधिकतम , इनके अपने नज़दीकी ,,  लोगों के नाम है ,  कमोबेश इनके अनुभव भी इसमें शामिल किये गए है , इनकी इन कहानियों में , रात भी है , दिन भी है , भूख भी है , गरीबी भी है , मदद भी है , तिरस्कार भी है , अनुभवों की सीख भी है , बुज़ुर्गों का सम्मान भी है , गाँव भी है , उद्योग भी है , कॉर्पोरेट सर्विस भी है , शहर का बदलाव भी है , संस्कार भी है , तो बिगड़ैल लोगों की कहानियां भी है , सब कुछ एक ज़िंदगी का सच ,, या यूँ कहे एक ज़िंदगी का अनुभव , कड़वा सच , उसमे बदलाव के लिए संकेत , इनके इस साहित्य , कल कभी नहीं आता , में शामिल है , यक़ीनन यह पुस्तक , बाल मनोविज्ञान , साहित्य के सृजन माध्यम से , लोगों की सोच बदलने , उन्हें मुख्यधारा में जोड़कर , नफरत से मोहब्बत की तरफ खेंचने , एक संवेदना विहीन व्यवस्था से , संवेदनशील व्यवस्था में ले जाने के लिए,  एक टॉनिक , एक दवा है , जो हर स्कूल में , प्रिटेबल माइंड ,, यानी वोह छोटे बच्चे , जिनके दिमाग में जो बात हम बिठाएंगे , वोह आगे ज़िंदगी उसी तरह से जीने में जुट जाएंगे , ऐसे उम्र के बच्चों के लिए इनकी यह पुस्तक , आदर्श समाज , मददगार समाज , हिम्मतवाला समाज , विकासशील समाज , नफरत के माहौल में मोहब्बत की तरफ के नए एहसास का समाज ,, तरक़्क़ी की तरफ , ईमानदारी से काम करने वाला समाज बनाने के लिए काफी है , जन  कवि ब्रजेन्द्र  कौशिक यूँ तो किसी परिचय के मोहताज नहीं ,, इन्होने सर्जना सृजन प्रकाशन केंद्र की 15 जून 1965 में  स्थापना की , इन्होने कोटा  के गली , मोहल्ले , उद्योग  , सियासी लोगों के हर बदलाव को अपनी इस उम्र के पड़ाव में , नज़दीकी से देखा है , अनुभव किया है , , ब्रजेन्द्र कौशिक को जन कवि , जन साहित्यकार , प्रगतिशील साहित्यकार के रूप में यूँ तो सैकड़ों नहीं , हज़ारों सम्मान मिल चुके है , उनके गीत संग्रह श्वेत पत्र , साक्षी है सदी ,,, ओ  सुबह की हवा , जंगलों  के बीच  ,  कविता संग्रह , दूसरों के सहारे नहीं , खोल दी खिडकियां ,, ग़ज़ल संग्रह हम भी नहीं मोम की  मूरत , कहना है जो ज़रूरी , सबके सपने जैसे अपने , सरोकार ,, , काव्य कृतियों में , रूबरू आपसे हज़ार दोहे , किस घाट  उतरें , नए छंद में , हर किसी के मन में  नए छ्ंद,,,  नहीं असंभव  कुछ ,, मुक्त त्रिपदियाँ,,, हाट से ह्ठ कर नए छ्ंद में ,,  गर्म नदियां तेर कर , नए छ्ंद में ,, कहानी संग्रह , उत्तरकाण्ड के बाद , सितंबर 89,,, ओर वोह केसी है ,, नया लघु कथा संग्रह ,, कल  कभी नहीं आता ,, पुस्तकों का प्रकाशन किया है , जो रोज़ पढ़ी जाने वाली पुस्तकें है , ,, जो साहित्य से अलग थलग होकर भी , रोज़ रोज़ हर जिदंगी की कड़वाहट , मिठास , अनुभवों की सांझेदारी है , ज़िम्मेदारी है , ,बदलाव के लिए एक मार्गदर्शक   दस्तावेज़ है , जन कवि ,                                       बर्जेंदर कोशिक जी का पता सर्जना , सृजन   प्रकाशन केंद्र , 2/38  बसन्त बिहार कोटा राजस्थान मोबाइल नंबर 9414596298  है ,, बृजेन्द्र कोशिक की ज्वलंत मुद्दों पर , रोज़ मर्रा की जिदंगी पर , साहित्यकार , मुंशी प्रेम चंद की शेली , के साथ , जो साहित्य की सर्जना है इसके लिए उन्हे बधाई , मुबारकबाद , सेल्यूट , ओर कॉमरेड भाई होने के नाते , लाल सलाम ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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