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07 जनवरी 2021

*बंद थीं ऑंखें मेरी*

 

*कुछ यूं हुआ कि*......
*शौक़ सारे छिन गये*,
*दीवानगी जाती रही*
*आयीं ज़िम्मेदारियाँ*,
*तो आशिकी जाती रही*
*मांगते थे ये दुआ*
*हासिल हो हमको दौलतें*
*और जब आयी अमीरी*,
*शायरी जाती रही*
*मय किताब-ए-पाक़ मेरी*,
*और साक़ी है ख़ुदा*
*महफिलों से भर गया दिल*,
*मयकशी जाती रही*
*रौशनी थी जब मुकम्मल*,
*बंद थीं ऑंखें मेरी*
*खुल गयी आँखें मगर*
*फिर रौशनी जाती रही*
*ये मुनाफ़ा, ये ख़सारा*,
*ये मिला, वो खो गया*
*इस फेर में निनयानबे के*
*ज़िन्दगी जाती रही*
*सिर्फ़ दस से पांच तक*,
*सिमटी हमारी ज़िन्दगी*
*दफ़्तरी आती रही*,
*आवारगी जाती रही*
*मुस्कुरा कर वो सितमग़र*,
*फिर से हमको छल गया*
*भर गया हर ज़ख्म*
*तो नाराज़गी जाती रही*
*उम्र बढ़ती जा रही है*
*तुम बड़े होते नहीं*
*ऐसे तानों से हमारी*,
*मसख़री जाती रही*!!!

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