आपका-अख्तर खान

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10 दिसंबर 2020

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया

 

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है,

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