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12 दिसंबर 2020

भारतीय लोकतंत्र , विश्व का सबसे बढ़ा लोकतंत्र , इन दिनों , रसातल की तरफ है , ,एक तरफ सियासी पार्टियों की ज़िम्मेदारियाँ बिखर गयी है ,

 भारतीय लोकतंत्र , विश्व का सबसे बढ़ा लोकतंत्र , इन दिनों , रसातल की तरफ है , ,एक तरफ सियासी पार्टियों की ज़िम्मेदारियाँ बिखर गयी है ,, दूसरी तरफ ,लोकतंत्र को इन्साफ दिलाने वाले , सभी संस्थान ,, सरकारों के जेबी संस्थान बन गए है ,, इतना ही हो तो ठीक है , लेकिन नौकरशाहों की  लोकत्नत्र के  अपहरण की जो योजना बनी है , उससे लोकतंत्र की तस्वीर ही बदल गयी है ,, पहले ,, निर्वाचित लोग , जनता के लिए जनता के शासन व्यवस्था के तहत ,नौकरशाहों के  कान उमेठकर , सरकारें चलाते थे , आज उल्टा है , अधिकारी , नौकरी में रहते हुए भी , और नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद भी , नेताओं के कान उमेठ कर सरकारें चला रहे है ,देश में लोकतंत्र की हत्या , अराजकता ,, जनता में त्राहि त्राहि का एक मात्र सबब सिर्फ यही सिर्फ यही है ,,  दोस्तों एक सर्वेक्षण करो , व्यवस्थाएं देखो , इतिहास की तरफ जाइये ,,  बँकिंगम चटर्जी  के ,, बोल , वन्देमातरम के गीत का इतिहास देखिये , सोचिये , एक सरकारी कर्मचारी ,जो डिप्टी कलेक्टर है ,, वोह सरकार के कर्मचारी में रहते हुए ,, सरकार के खिलाफ बगावत के लिए वन्देमातरम का नारा दे और अंग्रेज़   सरकार उस नौकर शाह को नौकरी से तो नहीं हटाए ,, उलटे परमोशन दे दे ,, यह खासियत कुछ ऐसी है ,जो रिसर्च का विषय है , लेकिन अब  देखिये आज कल सरकारें , चुनी हुई सरकारें , हर तरह से , हर तरफ सिर्फ नौकरशाहों पर ही निर्भर है , चुने हुए लोग , नौकरशाहों के अंडर में हैं ,,, प्रधानमंत्री हों , मुख्यमंत्री हों ,,, उनके सलाहकार , विशेषज्ञों की जगह ,, सिर्फ ,सिर्फ नौकरशाह है ,, फिर चाहे उनकी सेवानिवृत्ति हो गयी हो , चाहे वोह बुज़ुर्ग हो गए हो , चाहे वोह वानप्रस्थ आश्रम के युग में हों , लेकिन देश की सुरक्षा सलाह से लाकर , राज्यों की हर सलाह ऐसे ही अधिकारीयों के भरोसे चल रही है ,, अरे सरकारें तो छोड़िये ,, देश की सियासी पार्टियों में भी , इन सेवानिवृत नौकरशाहों की उपस्थिति मज़बूती पर है ,, सरकार में रहते , अपनी वफादारी , सरकार के प्रति गद्दारी के पुरस्कार के रूप में इन्हे राज्य सभा सदस्य ,, लोकसभा सदस्य , आयोग ,, वगेरा सहित कई जगह पर महत्वपूर्ण पदों की ज़िम्मेदारी मिलती है ,,, इतना हो तो कोई बात नहीं ,, अधिकतम पार्टियां तो नौकरशाहों के भरोसे पार्टी के दफ्तर भी चलाती हुई बर्बादी की तरफ है ,  नौकरशाह ही जिनकी कार्ययोजनाएं तैयार करें ,, कार्यर्कताओं से  मिलने जुलने की व्यवस्थाएं देखे , भाषण लिखे , सभाओं में उनके एक्शन की व्यवस्थाएं दे ,, तो वोह ज़मीन से दूर रहते है , गरीबों से , देश की आमा जनता से , उनके महत्वपूर्ण मुद्दों से , उनके मनोविज्ञान से दूर , कोसों दूर रहते है , और ऐसे लोग जब किसी भी सियासी पार्टी , या सरकार के सलाहकार बनाते है तो , उन्हें देश , जनता के जज़्बात नहीं , सिर्फ अपने आक़ा को खुश  रखने के रास्ते तलाशना पढ़ते है , नतीजन ,, ऐसी  सियासी पार्टियां जिन पर नौकरशाहों , सेवानिवृत नौकरशाहों के प्रबंधकीय क़ब्ज़े है , ऐसी सरकारें , जहाँ नौकरशाही का बोलबाला और कार्यकर्ताओं का तिरस्कार है , वोह कभी भी दुबारा लौटकर फिर से जीत कर नहीं आते ,,, पार्टियां टूट रहे है , बर्बाद हो रही हैं ,, दूसरी तरफ ,, जो पार्टियां नौकरशाहों से मुक़ाबला कर रही है , उनके भ्रष्टाचारों को उजागर कर रही है , उनकी कार्यव्यवस्था जनहित  में नहीं होने पर प्रश्नगत कर रही है , , वोह पार्टियां स्थानीय पार्टी से क्षेत्रीय पार्टियों , और फिर राष्ट्रिय पार्टियों के रूप में अपनी पहचान दर्ज कराकर , राष्ट्रीय पार्टियों के मुक़ाबिल होती जा रही है ,, सवाल सीधे मनोविज्ञान का है ,, एक नौकरशाह , नौकर नहीं ,शाह है ,, ,वोह आम जनता से कैसा सुलूक करता है , उसकी नौकरी किस तरह की होती है ,,, कुछ एक अपवादों को छोड़ दें , तो पूरा देश जानता है , एक नौकर शाह , पूरी ताक़त अपनी मन चाहे नियुक्ति के लिए ,, नेताओं की खुशामदगी में लगा देता है ,वोह कामयाब भी होता है ,, फिर उस नेता से कार्यकर्ता दूर होते चले जाते है ,और लोकतंत्र के पतन के साथ , फिर उस विभाग में , उस सरकार में नौकरशाही के नए युग की शुरुआत होती है ,, लहजा वही अफसरी , कार्यशैली वही , कार्यर्कताओं को आम जनता की तरह तिरस्कृत कर , ठुकराना , उपेक्षित करना , पैर की जूती , समझकर कार्यवाही करना ,, निर्वाचित लोगों के दिलों में  डर का माहौल बनाकर , चुगलीबाज़ी कर , उन्हें जनता से दूर करना , इनकी लोकतान्त्रिक प्राथमिकताएं होती है ,, ,क्योंकि इन्हे खुद के लिए ,, खुद के दूसरे कोकस बने साथियों के लिए  ,, कार्यकर्ताओं , के सियासी पदों को हथियाने की साज़िशें भी करना होती है ,, मंत्री हो ,मुख्यमंत्री हो ,, प्रधानमंत्री हों ,,   कार्यकर्ताओं से ज़्यादा अधिकारी उन्हें अपनी तरफ बना कर रखते हे , हालात यह होते है , के कोई भी नेता अधिकारी की ज़्यादा कार्यकर्ताओं  की कम सुनवाई की प्रवृत्ति बना रहा है ,  हालात यह है ,के कोई भी अधिकारी , अपनी मनचाही पोस्टिंग करता है , मनचाहा काम करता है ,, सिर्फ मंत्री जी को खुश कर लो , मुख्यमंत्री जी को खुश कर लो ,प्रधानमंत्री जी को खुश कर लो , और कार्यकर्ता , आम जनता पर जैसा चाहे ज़ुल्म करो , ना कोई जांच , न कोई सुनवाई ,, क्योंकि निचले नौकरशाह के लिए भी अब मंत्री कार्यालय हो ,, मुख्यमंत्री कार्यालय हों ,, ,पधानमत्री कार्यालय हो ,, सभी जगह सेवानिवृत हों , या नौकरी पर हो ,, नौकरशाह जो बैठे है ,,, इतना ही नहीं कई ,,आयोग ,प्राधिकरण ,, ट्रस्ट , समितियां , जहाँ जन प्रतिनधियों की चेयरमेन शिप , या कार्यप्रभार व्यवस्था होना चाहिए , वहां चुनी हुई सरकारें , कई  सालों तक , या कभी कभी तो पुरे कार्यकाल तक , किसी भी जन प्रतिनिधि की नियुक्ति नहीं करते है ,, नतीजा , नौकरशाह ही उस विभाग के प्रभारी रहते है ,चेयरमेन रहते है , और नतीजा फिर सरकारें घर बैठती है ,, दूसरी सरकारें आती है ,फिर वही खेल शुरू ,, नौकरशाही हावी , कार्यकर्ताओं की सुनवाई में फ़िसड्डीपन ,,, नौकरशाह अपनी मर्ज़ी से पोस्टिंग लेते है ,, कभी मंत्री , मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्री के हथियार के रूप में काम करते है , कभी चमचागिरी , चापलूसी से मिस्फीडिंग करते है , नतीजा खुलकर वोह , राज का मज़ा लेते है , कभी रिश्वत में पकड़े जाते है , कभी सरकारों को बदनाम करते है ,, मंत्री की सिफारिश पर कोई कलेक्टर लगे , फिर रिश्वत खोरी करे , तो हालात  आप हम खुद समझ सकते है ,, किसी भी आयोग , लोकपाल ,सुचना आयुक्त , जहां से नौकरशाहों को लताड़ मिल सकती है ,, ऐसे पदों को यह खुद हथियाने की साज़िशे रचते ,, है , ऐसे पदों के चयन के लिए ,,, समिति होती है ,जिसमे एक मुख्यमंत्री , प्रतिपक्ष नेता , मुख्य सचिव होते है बस ,, नौकरशाह जाता है ,, मुख्यमंत्री से निकटता बढ़ाता है , फिर ,मुख्य सचिव तो खुद नोकरशाह होने से उनके हैं ही सही ,,, प्रतिपक्ष नेता , खुद सत्ता में रहा होता है , आगे फिर उसे सत्ता में आने की उम्मीद होती है ,, प्रतिपक्ष नेता को नोकरशाह पढ़ाते है , साहिब अगर ,, मुख्यमंत्री ने उनकी पार्टी का विचारक , कार्यकर्ता इस पद पर नियुक्त कर दिया , तो पार्टी का जनाधार बढ़ेगा ,, कामकाज होंगे , आपको दिक़्क़तें बढ़ेंगी , इसलिए हमारी , नौकरशाहों की नियुक्ति से , दो फायदे ,, एक तो सत्ता पार्टी में कार्यकर्ताओं के पद नौकरशाहों को देने से बगावत का माहौल बनेगा ,, जो प्रतिपक्ष के लिए सकारात्मक होगा ,,, दूसरे , नौकरशाहों की नियुक्ति से उनके कोई काम नहीं रुकेंगे ,,,, फोन पर ही कामा हो जायेंगे ,, यही हाल ,, केंद्र सरकार का है ,,, लोकतंत्र में यह एक घिनौनी साज़िश है ,, जो अब कोढ़ से भी बुरी बीमारी बन गयी है ,,, सियासी पार्टियों की कमान भी अब तो नौकरशाहों के ही क़ब्ज़े है ,  इसलिए कई बार लगता है , लोकतंत्र का टेटुआ ,, चाहे वोह मंत्री के रूप  में हो ,चाहे मुख्यमंत्री के रूप में हो ,, चाहे प्रतिपक्ष के नेता के रूप में ,,हो चाहे प्रधानमंत्री के रूप में हो ,, इन नौकरशाहों की मुट्ठी में है , और पार्टियां ,हों , पार्टी के पदाधिकारी हों , विधायक हों ,सांसद हो , विभाग , प्रकोष्ठ के लोग हो ,,कार्यकर्ता हों ,, वोटर्स हों , सभी इस नए नौकरशाहों के क़ब्ज़े में चल रहे लोकतंत्र के आगे बिलख रहे है ,, कभी नोटबंदी की बेवक़ूफ़ी , कभी जी एस टी , कभी बिजली के दामों की वृद्धि ,कभी पेट्रोल , डीज़ल , गैस के दामों की वृद्धि ,, वगेरा वगेरा जैसी हिमाक़तों को भुगत रहे है ,क्योंकि नौकरशाह अपनी मर्ज़ी से काम करता है , उसकी माफ़िक़ सरकार , विचारधारा , उसे झेलने वाले पॉलिटिशियन राज्यों में होते है , तो वोह ठाठ से राज्यों में नौकरी करते है , वर्ना फिर अपनी मर्ज़ी से , या चहेते नेताओं की सिफारिश पर ,, वोह केंद्र में चले जाते है ,, ,क्योंकि मर्ज़ी नेताओं की नहीं ,निर्वाचित लोगों की नहीं ,, आम जनता की नहीं , सिर्फ नौकरशाहों की ही चलती है ,, लेकिन यह पब्लिक है सब जानती है , इसका खीमियाज़ा , तख्ता पलट हर बार , हर बार से भुगतना पढ़ता है , ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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