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28 नवंबर 2020

अमूमन कहा जाता,है,कि- रिश्तें-पहाड़ियों की,तरह *खामोश * होते,है

 

**सु-प्रभातम*** अमूमन कहा जाता,है,कि- रिश्तें-पहाड़ियों की,तरह *खामोश * होते,है,जब तक इधर से *ना, पुकारा* जाय,उधर से आवाज,सुनाईं नहीं देती,। मगर,हमारी अपनी *सोच *के अनुसार,*रिश्तों-का-स्थाई-*रूप से निरन्तर-बनें रहना,तब ही *सम्भव* हैं, जब-दौनों और-*समान विचार/मानसिकता/आदर्श/और उदार ह्रदय* के-लोग-*निस्वार्थ भावना*-से प्रभावित होकर,*लालच-और आकांशा*-की,कल्पना,से,कोसों-दूर रह कर, एक ही* प्लेटफ़ॉर्म* पर साथ साथ खड़े,रहने को *सहमत *हों? जहां रिश्तों में,*छोटा-बड़ा-ऊंच-नीच, निर्धन-अमीर-अधिकारी-कमर्चारी*-आदि किसी भी प्रकार कि, *असमानताएं-*उपस्थित हुईं*?/*महसूस हुईं/जाग्रत हुईं*उन्हें,आप **रिश्ते/सम्बंध/सम्पर्क*-कि, श्रेणी-में,रखनें कि, *गलती मत कीजियेगा*, इस प्रकार के रिश्तों-में,*एक तरफ*-*गरूर की गर्मी*-और दूसरी और-*निर्धनता कि नरमी* बीच कि दूरियों को *कभी कम*नहीं होने देती। बस-*औपचारिकता वश* गतिहीन *स्पीड पर,रेगतें *हुये,अपनीं आखिरी *सांसों *पर आ जाते हैं,और,धीरे धीरे *स्वतः ही-समाप्त *भी हो जाते हैं। **स्वस्थ-सुखी-और-खुश-रहो** **आप ही के अपनें*पंडित कौशिकजी**


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