कल का वाकया, एक सच........
सरकार का नारा,बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ कहने और सुनने में हर महिला को सुकून देता है पर हक़ीक़त में बेटियो के हालात बद से बदतर से है यह हम सब जानते है।सभ्रांत परिवार से लेकर देश के हर तबके की बेटियां हक़ीक़त में आज भी सिसक ही रही है।महिला उत्पीड़न के बढ़ते ताज़ा मामले इसके उदाहरण है।ऐसा कोई दिन नही जाता जिस दिन हमे यह खबर ना मिले की आज फला जगह फला महिला का सामूहिक बलात्कार हो गया,या किसी बहु को दहेज के लिए घर से निकाल दिया या उसे मार दिया गया है।बेटियों के साथ उनके ससुराल में उनको मानसिक संताप देना एक परम्परा सी हो चली है। बढ़ती हिंसक प्रवर्ति से तो हालात इससे बदतर हो गए है कि बड़े शहरों से लेकर गांव ढाणी तक में छोटी छोटी बच्चियों के साथ सामूहिक कुकृत्य आम बात हो गई है।इसकी विशेष वजह में हमारी न्याय व्यवस्था को मानती हूं।अभी कल ही कोटा के पास के गांव की एक नाबालिक लड़की अपनी दादी के साथ मुझसे मदद मांगने आई।उन्होंने मुझे बताया कि गांव के चार युवकों ने उसे जबरन घर मे पकड़कर कुकृत्य करने की कोशिश की व विरोध करने पर परिवार के सभी महिला पुरुषों को पीटा व पीड़ित परिवारजन को ही थाने में बंद करवा दिवा।ये कैसी न्याय व्यवस्था है की इज्जत ओर न्याय की गुहार लगाने वाले पीड़ित पक्ष को ही पुलिस प्रताड़ित कर रही है।पीड़िता की दादी ने बताया कि वह बहुत गरीब है व दुराचारी प्रभावशाली है जिसके चलते उनकी नही सुनी जा रही।कहने का मर्म सिर्फ इतना है कि प्रभावशाली होने का मतलब क्या किसी मजबूर को कुचलना होता है।सिर्फ इसी मामले में नही बल्कि महिला अत्याचार से जुड़ी हर घटना के लिए जिम्मदार समाज से पूंछना चाहती हु की निर्बल परिवारों की बहू बेटियां सिर्फ खिलौना होती है क्या ?
मेरा यह सवाल तबके के हर उस पुरुष ओर कानून व्यवस्था से है जो महिला सुरक्षा,सम्मान एवं अधिकार की बात तो करते है पर जब इन्ही अधिकारों को निभाने का वक़्त आता है तो अपनी जिम्मदारीयो से मुँह फेर लेते है।
में इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी से महिला होने के नाते विनम्र निवेदन करती हूं कि समाज की हर महिला को वह सम्मान दे जो आप आपकी मां,बेटी के लिये चाहते है।
आपकी अपनी
डॉ एकता धारीवाल
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