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13 अक्तूबर 2020

देश भर में भ्र्ष्टाचार खत्म करने ,, सरकार की गोपनीय पत्रावलियों की आमद खर्च ,बजट , जानकारियां आम जनता तक पहुंचाने के लिए ,, सुचना का अधिकार अधिनियम बनाने वाली कांग्रेस पार्टी को धन्यवाद

देश भर में भ्र्ष्टाचार खत्म करने ,, सरकार की गोपनीय पत्रावलियों की आमद खर्च ,बजट , जानकारियां आम जनता तक पहुंचाने के लिए ,, सुचना का अधिकार अधिनियम बनाने वाली कांग्रेस पार्टी को धन्यवाद , ,, ,राजस्थान के गांधी विचारक मुख्यमंत्री ,अशोक गहलोत ने ,इस अधिकार को आगे बढ़ाते हुए ,,इस क़ानून क तेहरवीं वर्षगांठ पर ,, राजस्थान में 31 दिसम्बर तक ,सुचना के अधिकार के आवेदन ऑन लाइन करने की घोषणा कर , सुचना के अधिकार ,एक्टिविस्टों ,, ज़रूरतमंदों को ,बढ़ी राहत दी है,,, आज ही के दिन कांग्रेस सरकार ने देश की जनता को , सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार , नौकरशाही , लालफीताशाही , पर अंकुश लगाने के लिए जनता को हर जानकारी मांगने का अधिकार दिया था ,और हर संबधित अधिकारी को ऐसी सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए क़ानून बनाकर पाबंद करते हुए इसमें कोताही बरतने के लिए ,, ज़िम्मेदार अधिकारीयों को सज़ा का प्रावधान रखा था ,,कांग्रेस सरकार के इस सूचना के अधिकार अधिनियम को आज ही के दिन 13 अकटूबर को देश भर में लागू किया गया था ,, देश भर में , अलग अलग राज्यों में विभागों में ,कांग्रेस द्वारा लागू किये गये इस क़ानून से एक सुचना क्रान्ति आयी ,एक भ्रष्टाचार के खिलाफ सच्चाई की जंग शुरू हुई ,, कई लापरवाह , गैर ज़िम्मेदार ,,हठ धर्मी अधिकारीयों को इस मामले में जुर्माने से भी दण्डित कर प्रताड़ित किया गया है ,, सेल्यूट है , ,सलाम है ,,कांग्रेस के इस सुचना के अधिकार अधिनियम को , लेकिन हाल ही में भाजपा सरकार ने इसमें गैर ज़रूरी संशोधन किया ,, सुचना आयुक्तों की नियुक्तियां नहीं की ,,मनमानी नियुक्तियों के जब प्रयास हुए ,पद रिक्त रहे ,,लाखों ,शिकायतें , लाखों अपीलें जब पेंडिंग रही तो , सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील , प्रशांत भूषण ने ,,याचिका दायर कर रिक्त पद भरने , और ऐसी सूचना आयुक्त की नियुक्तियों को , सेवानिवृत अधिकारीयों से अलग रखने की मांग की , वर्ष 2019 के विस्तृत आदेशों में सुर्पीम कोर्ट ने इस मामले में सभी रिक्त पद , चाहे वोह केंद्रीय सूचना आयुक्त के हों ,चाहे वोह राज्यों के सुचना आयुक्तों के पद हों उन्हें जनहित में तुरंत भरने के आदेश दिए ,सुप्रीमकोर्ट ने अफसर शाहों को ऐसी नियुक्ति से बचने की भी सलाह दी ,, तेईस साल की वकालत के अनुभवी क़ानून के जानकार को इसमें तरजीह देने की बात कहीं ,, 9 जून 2006 को वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में भी नियुक्ति मामले में नौकरशाहों को अलग रखने सहित महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे ,जबकि केंद्र सरकार द्वारा गठित सरकारिया आयोग की संसद की स्वीकृत सिफारिशों में स्पष्ट है की सूचना आयोगों में सिविल सोसाइटी के श्रेष्ठ जनों में से अधिक से अधिक लोगों को नियुक्त किया जाना चाहिए रिटायर्ड नौकर शाहों में से नहीं , क्योंकि नौकरशाहों की प्रवृत्ति सूचनाए दबाने ,सूचनाएं छुपाने की स्व्भविक प्रवृत्ति होती है , ,सुप्रीमकोर्ट ने कई अन्य मामलों में भी ,, सूचना आयुक्त पद पर ,, नौकरशाहों की नियुक्ति के स्थान पर , योग्य समाजसेवियों , क़ानून के जानकारों को नियुक्त करने का सुझाव दिया है , सुचना के अधिकार अधिनियम के तहत , सुचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए , किसी भी व्यक्ति को ,प्रशासनिक अनुभव ,, पत्रकारिता का अनुभव , सोशल मीडिया एक्टिविस्ट , विधि का ज्ञाता , सुचना के अधिकार अधिनियम के विधिक प्रावधानों के जानकर सहित , इस क्षेत्र में कार्य करने वाला व्यक्ति ही ऐसे पदों पर नियुक्त होगा ,बात साफ़ है ,एक वकील , पत्रकार ,सोशल मीडिया एक्टिविस्ट ,क़ानून ज्ञाता , समाजसेवक , सूचना के अधिकार अधिनियम का ऐटिविस्ट ,आई टी का जानकार हो सकता है ,लेकिन एक अधिकारी ,सेवानिवृत अधिकारी ,सरकारी सेवाओं में रहते , सूचना के अधिकार अधिनियम के विशिष्ट प्रावधाओं का जानकार ,एक्टिविस्ट ,समाजसेवक ,पत्रकारिता का अनुभव वाला ,सोशल मीडिया एक्टिविस्ट नहीं हो सकता , इस मामले में ,, राजस्थान हाईकोर्ट ,, और डबल बेंच ने , राजस्थान वक़्फ़ बोर्ड सदस्य , फिर चेयरमेन की नियुक्ति पर नियुक्त अबूबकर नक़वी सहित चार सदस्यों को निर्योग्य घोषित कर इसलिए बर्खास्त किया ,,क्योंकि अबूबकर नक़वी ,सरकारी कर्मचारी से सीधे समाजसेवा कोटे से ,, वक़्फ़ बोर्ड सदस्य नियुक्त कर दिए गये थे ,,हाईकोर्ट ने साफ माना के कोई भी सरकारी कर्मचारी सेवनियमों के खिलाफ समाजसेवा ,,नहीं कर सकता ,ऐसे में इनके पास समाज सेवा के , क़ानून के जानकार के कोई अधिकृत प्रमाणपत्र भी नहीं है ,,, बात साफ़ है ,,कोई भी नौकर शाह ,सरकारी सेवा में रहते हुए ,, सेवा नियमों के विपरीत सूचना के अधिकार अधिनियम का ऐटिविस्ट नहीं हो सकता ,, हाँ उलटे ,सुचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदकों को चक्कर देने वाला अलबत्ता हो सकता है , जैसा की सरकारिया आयोग ,, वीरप्पा मोइली की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है , इसी तरह से कोई भी नौकरशाह सरकारी सेवाओं में रहकर ,,सोशल मिडिया एक्टिविस्ट नहीं हो सकता ,समाजसेवक नहीं सकता ,, तो फिर इन मामलों में स्वीकृत रूप से अयोग्य होने पर ,, कोई भी नौकरशाह चाहे वोह पुलिस अधिकारी हों ,चाहे प्रशासनिक अधिकारी हो , चाहे न्यायिक अधिकारी हो ,,वोह सुचना के अधिकार अधिनियम के विधिक प्रावधानों के विपरीत ही , नियुक्त होता रहा है ,ऐसे मामले में अबूबकर नक़वी को लेकर , राजस्थान हाईकोर्ट की डबल बेंच ने जो फाइंडिंग दी है , वोह बाधक बन जाती है ,देश भर में किसी भी राज्य में ,,केंद्र में नौकरशाहों की नियुक्ति नियम विरूद्ध , नौकरशाहों को उनकी सेवाओं में वफादारी की रिश्वत प्रसाद देने को लेकर चाहे करने की परम्परा हो ,भविष्य में भी कुछ नौकरशाहों की इन मलाईदार पदों पर ,नियुक्ति के लिए राजनितिक वफदारी कहो , या सांठगांठ कहो राल टपक रही हो ,लेकिन विभिन्न सुप्रीम कोर्ट ,हाईकोर्ट के न्यायिक द्र्स्तांतों के तहत अगर ऐसी नियुक्तियों के खिलाफ कोई हाईकोर्ट ,सुप्रीमकोर्ट गया तो , सरकार की ऐसी नियुक्तियों के खिलाफ ,, सरकार की किरकिरी होने वाले आदेश आना भी संभावित है ,,, कांग्रेस सरकार ने अभी हाल ही में भाजपा सरकार द्वारा सुचना के अधिकार संशोधन अधिनियम का खुला विरोध किया था ,,कांग्रेस ने ही देश की जनता को सूचना का अधिकार दिया ,, कांग्रेस सरकार ही ,,देश में सुचना के अधिकार अधिनियम के प्रति गंभीर है , वोह आम जनता को इस अधिकार के तहत , ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से एक्टिव करने के पक्ष में है ,ताकि नौकरशाहों के भ्रस्टाचार , मनमानी पर अंकुश लगे ,पारदर्शिता ,संवेदनशीलता का सिद्धांत रहे ,और इस मामले में गाँधीवादी राजस्थान के मुख्यमंत्री जो आम जनता को नौकर शाहों के जाल से निकालकर सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रावधान की पैरवी कर ,देश की जनता को इंसाफ दिलाने के पक्ष में रहे है ,वोह संवेदनशीलता के साथ ,हर सरकारी दस्तावेज में , संवेदनशीलता , पारदर्शिता के निर्देश देते रहे है ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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