हत्या “हिंदू” की हो या “मुसलमान”की मरता तो इंसान है, लेकिन अफ़सोस जो “पालघर” पे रोते हैं वो “हाथरस” पे चुप हैं और हाथरस पे रोने वाले “राजस्थान” पे चुप हैं और राजस्थान पे रोने वाले "हापुड़" पे चुप है आख़िर ये माजरा क्या है, क्या इस देश के नेता इतने गिर गये हैं जो चिता की “लपटों” में भी “सियासत” देखते हैं. लेकिन यह खुद को पत्रकार कहने वाले पार्टी नेताओं के दोहिते , पुत्र , भाई , रिश्तेदार , पैकेज पे काम करने वाले लोग , सोशल मीडिया के पेड वर्कर अजीब ही खेल खेलते है ,,
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