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02 अक्तूबर 2020

वोह गाँधीवादी थे , वोह पत्रकारिता के महात्मा थे , वोह वैचारिक गाँधी थे ,, वोह देश के लिए मर मिटने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे ,वोह स्वदेशी खादी के प्रति समर्पित थे , इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर जब ,देश उनके जन्म दिन की 150 वीं जयंती बना रहा है इसी दिन ,इस हाड़ोती के लाल , हाड़ोती के गौरव , आनंद लक्ष्मण खांडेकर ने ,, दुनिया को अलविदा कह दिया

 

वोह गाँधीवादी थे , वोह पत्रकारिता के महात्मा थे , वोह वैचारिक गाँधी थे ,, वोह देश के लिए मर मिटने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे ,वोह स्वदेशी खादी के प्रति समर्पित थे , इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर जब ,देश उनके जन्म दिन की 150 वीं जयंती बना रहा है इसी दिन ,इस हाड़ोती के लाल , हाड़ोती के गौरव , आनंद लक्ष्मण खांडेकर ने ,, दुनिया को अलविदा कह दिया ,खांडेकर ने 93 वर्ष में आखरी सांस ली ,, ,, जी हाँ दोस्तों ,, हाड़ोती के मुखर , स्वंत्रता ,सेनानी गोवा आंदोलन के प्रमुख आंदोलनकारी कारी , ,, किसी पहचान के मोहताज नहीं , खादी का कुर्ता पायजामा ,, कंधे पर लटका खादी का थैला , मुस्कुराता विनम्र चेहरा ,, कुर्ते की जेब में लगी एक क़लम , बस यही , आनंद लक्ष्मण खांडेकर की पहचान थी ,, कई सालों तक क़लम के सकारात्मक जोहर दिखाने के बाद ,, दैनिक राष्ट्रदूत में आप प्रभारी पत्रकार रहे ,सम्पादक रहे ,, विनम्रता के साथ ,युवाओं को ज्ञान बाटना इनका स्वभाव था , इसीलिए पत्रकारिता के प्रशिक्षु काल में , पत्रकारिता में पारंगत होने के बाद भी , में खुद ,आदरणीय आनंद लक्ष्मण खांडेकर से पत्रकारिता का ज्ञान लेने , इनका आशीर्वाद लेने इनके पास जाता रहा हूँ , में ख़ुशक़िस्मत हूँ ,जब भी में किसी जिज्ञासा ,, किसी जानकारी के लिए इनके पास पहुंचा ,में कभी खाली हाथ नहीं लोटा ,उम्मीद से ज्यादा इन्होने मुझे ज्ञान दिया ,, हाड़ोती की धरोहर , हाड़ोती की संस्कृति , स्वतंत्रता सेनानियों की बाहदुरी के क़िस्सों को यह उजागर करने के हमेशा पक्ष में रहते थे ,हाड़ोती उत्सव कार्यक्रम , इनकी जानकारी ,इनके मार्दर्शन के बगैर अधूरा अधूरा सा रहता था ,पत्रकारिता में होना ,और बेदाग छवि के साथ , आखरी वक़्त तक रहना ,नामुमकिन सी बात है ,लेकिन आनंद लक्ष्मण खांडेकर ,पर किसी ने भी कभी भी ,इनकी क़लम को लेकर ,खबरों के चयन को ,लेकर विज्ञापन व्यवस्था को लेकर कभी उंगली उठाने की हिमाक़त भी नहीं की , आनंद लक्ष्मण खांडेकर हाड़ोती के ही नहीं ,राजस्थान के ही नहीं ,देश भर के ,आदर्श अनुकरणीय पत्रकार , कलमकारों में से प्रमुख है ,,,, आज उनके आकस्मिक देहांत से हाड़ोती रो रहा है ,हाड़ोती अनाथ सा हो गया है ,पत्रकारिता को अपूरणीय क्षति पहुंची है ,क़लमकार रो रहे है ,लेकिन विधि का विधान है ,जो आता है जाता है ,,ख़ुशी इस बात की है के , आननद लक्ष्मण खांडेकर ने , कहावत ,, ,करनी कुछ ऐसी कर चलो ,,जो जग सारा रोये ,, को चरितार्थ अपने आचरण ,अपने सद्कर्मों से कर दिखाया है , आज उनके परलोकगमन के बाद , हाड़ोती रो रहा है ,, उनके आदर्शो , उनकी जीवनशैली को याद कर रहा है ,,,,
आनद लक्ष्मण खांडेकर कहते थे ,,आज़ादी . किसी एक शख्स की लड़ाई नहीं थी वो... पूरा देश लड़ा था उसके लिए... सिर्फ अंग्रेजों को भगाकर हिंदुस्तानियों को सत्ता सौंपने का सवाल नहीं था... आने वाली नस्लों को भ्रष्टाचार और व्यभिचार मुक्त राष्ट्र सौंपने के लिए हुआ था वह संघर्ष, लेकिन आजादी के 74 साल बाद गरीब और गरीब, कमजोर को और कमजोर होता देखकर दुख होता है। वर्तमान पत्रकारिता के बदले हालातों ,, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की नफरतबाज़ी से वोह बहुत दुखी थे ,,,,,,वोह रुहांसा होकर कहते थे ,, कलेजा छलनी हो जाता है जब मुल्क को धर्म और जाति के नाम पर बंटते हुए देखता हूं,,आठ जून 1926 को बारां में जन्मे आनंद लक्ष्मण खांडेकर ने महज 13 साल की उम्र में ही खादी बाना ओढ़ लिया था। खांडेकर बताते हैं कि जब उन्होंने होश संभाला तो पूरा मुल्क मां भारती को अंग्रेज हुक्मरानों से आजाद कराने के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए लालायित था। वोह कहते थे ,,उन्होंने भी अपना जीवन मातृभूमि को अर्पित करने की शपथ ली और किसान आंदोलनों से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की। 1939 का साल आते-आते वह प्रजामंडल से जुड़ गए और आजादी के लिए हाड़ौती में होने वाले आंदोलनों में शिरकत करने लगे। खांडेकर बताते थे कि उस दौर में हाड़ौती का इलाका क्रांतिकारियों की शरण स्थली बना हुआ था। यहां के लोग उन्हें न सिर्फ छिपने के लिए जगह देते थे, बल्कि आर्थिक तौर पर भी पूरी मदद करते थे। सन 1942 में कोटा कोतवाली पर तीन दिन तक तिरंगा फहराने की घटना ने उनमें नई ऊर्जा भर दी और वह पहले से ज्यादा सक्रिय हो गए। खांडेकर बताते थे कि उनका संघर्ष 15 अगस्त 1947 के बाद भी जारी रहा और वह गोवा मुक्ति आंदोलन से जुड़ गए। गोवा को आजाद कराने के लिए वह कई सालों तक वहीं डेरा जमाए रहे।देश की दिशा से निराश एक माह पहले 93 वां बसंत देखने वाले आनंद लक्ष्मण खांडेकर देश के वर्तमान हालातों से खासे दुखी भी नजर आए। बोले, सरकार और अफसरों पर सत्ता का नशा ऐसा चढ़ा है कि वह खुद को जनता का सेवक मानने के बजाय हिंदुस्तान का नया शासक समझने लगे हैं। निजी स्वार्थ लोगों पर इस कदर हावी हो चुके हैं कि राष्ट्रप्रेम काफी पीछे छूट गया है। मुल्क की तरक्की और आवाम की खुशहाली के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाली भावनाओं का आभाव हो चुका है।वह कहते थे कि विषमताएं तो हमेशा रहेंगी, लेकिन इन सबके बावजूद आम आदमी के लिए आजादी को कितना बेहतर बना सकते हैं इसके लिए सबको साझा प्रयास करना होगा, नहीं तो 73 साल पहले लड़ी गई लड़ाई और उसके लिए दी गई कुर्बानियां जाया चली जाएंगी,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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